महान वैज्ञानिक डॉ.जगदीश चन्द्र बसु बोस

जीवन अनमोल है , इसे आत्महत्या कर नष्ट नहीं करें !

सुबह की शुरुआत माता-पिता के चरण स्पर्श से करें !

संस्कार सृजन राम गोपाल सैनी 

उत्तराखंड (संस्कार सृजन) डॉ.जगदीश चन्द्र बसु बचपन से चिन्तन शील एवं वैज्ञानिक एवं प्रकृतिक प्रेमी थे | भौतिक विज्ञान रिडियो तरंग एवं वनस्पति विज्ञान पादय् पेड-पौधों, क्रिया विज्ञान क्रेस्कोग्राफ का अविष्कार-जैसे क्षेत्र में वैज्ञानिक उपलब्धियाँ प्राप्त की | सम्पूर्ण विश्व में पहली बार सिद्ध कर दिया कि पौधो में जीवन, उत्तेजनाओं के प्रतिक्रिया करने की क्षमता होती है। पौधों में भी जीवन चक्र एवं प्रजनन प्रणाली होती है, भारत के प्रथम वैज्ञानिक माने जाते हैं । डॉ.जगदीश चन्द्र बसु 19वीं शताब्दी के अन्त में माइ‌क्रोवेब के अस्तित्व का प्रदर्शन किया।

जीवन परिचय :-

पिता भगवान चन्द्र बसु, माता का नाम बामा सुन्दरी देवी थे | पिता भगवानचन्द्र बोस एक डिप्टी मजिस्ट्रेट थे। समाज के लोकप्रिय नेता भी थे | इनका जन्म 30 नवम्बर 1858 को बिक्रमपुर में हुआ था जो ढाका, बंगलादेश का हिस्सा है | अपनी भाषा के प्रति लगाव था | प्रारंभिक शिक्षा भी बंगाली विद्यालय से हुई थी |



बोस का मतलब :-

मूल नाम जगदीश था , पारिवारीक नाम था बसु | बोस शब्द एक अग्रेजी शब्द है जो डच भाषा से लिया गया है | बोस का अर्थ मुखिया, स्वामी आदि है। डॉक्टर जगदीश चन्द्र को 1896 में लन्दन में विज्ञान में डॉक्टरेट की उपाधि मिली | उन्होंने भौतिक और जीव विज्ञान के क्षेत्र में अपना योगदान दिया | पौधा की प्रतिक्रियाओं का अध्ययन किया और जीवित होने का प्रमाण दिया।

 डॉ. अशोक पाल सिंह
शिक्षा :- 

इनकी शिक्षा कलकत्ता के सेंट जेवियर्स कॉलेज से हुई थी। लन्दन विश्वविद्यालय और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में पढाई की और 1884 में दोनों संस्थान से विज्ञान डिग्री हासिल की | कुछ दिनो चिकित्सक विज्ञान का अध्ययन भी किया | स्वास्थ्य ठीक न होने के कारण मध्य में छोडना पड़ा।

वृक्षों में चेतना शक्ति है :-

वृक्षों में चेतना शक्ति है, यह प्रत्यक्ष रूप से प्रदर्शन किया | जीव जन्तुओं के समान वृक्षों में भी जीवन शक्ति विद्यमान है | एक यन्त्र का निर्माण किया, जिसका नाम "केस्को ग्राफ है। इस यन्त्र द्वारा अति सूक्ष्म पदार्थो को भी देखा जा सकता है। 1929 ईस्वी में एक महत्वपूर्ण यन्त्र निर्मित किया। इसके द्वारा वृक्षों में क्षणिक विकास भी देखना सम्भव था। सभी वैज्ञानिकों ने इनके द्वारा प्रत्यक्ष दिखाया कि जिस विष से मेंढक मरता है। उस विष से वृक्ष भी मरता है | जैसे ओषधि विशेष से मनुष्य रोग मुक्त होता है। वैसे ही वृक्ष भी रोग मुक्त होते हैं । जैसे मनुष्य में पाचन क्रिया होती है |

वैसे ही वृक्षों में भी खाद्य रसों का पाचन और संवर्धन होता है। समानुभूति उन्हे पौधो के जीवन के प्रति गहरी समानुभूति है। उत्तेजनाओं के प्रति उनकी प्रतिक्रिया का सूक्ष्म अध्ययन किया |

विदेश में भी भेद-भाव के खिलाफ संघर्ष किया :- 

यूरोप में प्रोफेसरो की तुलना में उन्हे कम वेतन मिलता था | एक वर्ष तक वेतन नही लिया | बसु ने 1905 में भौतिक का नोबल पुरस्कार मिला।

उपलब्धि डॉ. जगदीश चन्द्र बसु ने 1906 में प्लाट रिस्यांस एज अ मीन्स ऑफ फिजियो लॉजि कल इन्वेस्टिगेश्न नामक ग्रन्थ प्रकशित किया। जिसमें उन्होंने पौधो की आंतरिक प्रक्रियाओ का शोध प्रस्तुत किया था। बोस को बंगाली विज्ञान कथा साहित्य का जनक माना जाता है। पादप शरीर क्रिया विज्ञान Plant, Physiolohgy में महत्वपूर्ण योगदान किया।

सन् 1906 में जगदीश चन्द बोस का ग्रन्थ Plant Response as a Medns of Physiological Investigantion प्रकाशित हुआ। यह पुस्तक पौधो की शारीरिक प्रतिक्रियाओं पर उनके शोध को प्रस्तुत करती है। जिसे उन्होंने क्रिस्को ग्राफ का उपयोग करके मापा थ।

डॉ.बसु ने कलकत्ता में विज्ञान मन्दिर की स्थापना की | इस मन्दिर का नाम 'बसु विज्ञान मन्दिर रखा गया। इनके कार्य हम भारतीयो के मध्य आज भी प्रेरणा के शब्द है। डॉ.जगदीशचन्द्र बसु का निधन 23 नवम्बर 1937 को हुआ।

लेखक : डॉ. अशोक पाल सिंह, शिक्षक (राजकीय उ.मा.वि.बिझौली, तहसील रूडकी, जनपद हरिद्वार,उत्तराखण्ड)

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