जीवन अनमोल है , इसे आत्महत्या कर नष्ट नहीं करें !
सुबह की शुरुआत माता-पिता के चरण स्पर्श से करें !
संस्कार सृजन @ राम गोपाल सैनी
अहा ! देखो तो सही बासन्ती बहार !
फागुनी मस्ती अभी से छाई है
उन्मत्त बसन्त गा रहा है
पंचम राग में कोयलिया भी गा रही है
पलाश के दहकते फूलों को देख
बसन्त कितनों के तन मन में आग लगा रहा है
आज तो उदास व्यक्तियों की
समाधियाँ भी भंग हुई हैं भोले शंकर
की समाधि की मानिंद
मस्तमौला हवाएँ अनगिन फूलों
और भौरों को छेड़ छेड़ कर
मदहोश कर रही हैं
कुछ ऐसी प्रतीति कि लाल चुन्दरी ओढकर
नाच रही है प्रकृति रानी
कितने इतरा रहे हैं आम्र मन्जर और पीली सरसों
अनेक चिडियाए और तितलियाँ भी
उल्लसित हो बसन्त की अगवानी कर रही हैं
फागुनी मस्ती में मन मयूरा नाच उठा है
मस्त मलंगों की टोलियाँ अभी से झूमने लगी हैं
जिनके मन में मधुमास की गहन चाहत
वे प्रसन्न चित्त दिख रहे हैं
उधर साजन की खातिर सजनिया
सोलह श्रृंगार करने में लगी है
विरहणियो के मन मयूर को भी
हठीला बसन्त हौले हौले जगा रहा है |
लेखक : प्रमोद झा, मुरादाबाद
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