श्रीलता स्वामीनाथन : कम्यूनिस्ट आन्दोलन की जुझारू प्रेरणता (5 वीं पुण्यतिथि विशेष )

जीवन अनमोल है इसे आत्महत्या कर नष्ट नहीं करें !

मास्क लगाकर रहें ! सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखें !

संस्कार सृजन राम गोपाल सैनी

जयपुर (संस्कार सृजन) भारतीय की कम्युनिस्ट  पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) की वरिष्ठ नेता एवं अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन (ऐपवा) की पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष कामरेड श्रीलता क्रांतिकारी  आन्दोलन की उन अग्रणीय साथियों मेंसे एक थी जिन्होंने अपने जीवन  को एक ऐसे समाज के निर्माण के सपने को साकार करने केलिए समर्पित कर दिया , जहाँ महिलाओं और श्रमजन को वह सम्मान,बराबरी व न्याय मिले जो उन्हें उस समाज की निर्माणक इकाई होने के नाते मिलना चाहिए | 

श्रीलता स्वामीनाथन

इस दिशा में ठोस कदम उठाते हुए ताउम्र पूरी निष्ठा,जीवंतता और प्रतिबद्ता के साथ लोगों से  सीखते - सीखाते व संगठित करते हुए लड़ती रही | श्रीलता ने अपना कार्य-क्षेत्र मुख्यतः दक्षिण राजस्थान के सुदूर जनजातीय बहुल इलाके  बाँसवाड़ा,डूंगरपुर,प्रतापगढ़,चितौडगढ जिलों को बनाया | इस क्षेत्र के तमाम किस्म के सवालों को - बंधवा मजदूरी, विस्थापन , पूरी मजदूरी,सामंती ज्यादतियां,पुलिस-प्रशासन की दादागिरी,साम्प्रदायिक-भूमाफिया ताकतों का आतंक,के खिलाफ़ पूरी दृढ़ता,साहस व जोश  के साथ उठाया और उनके लिए  संघर्ष करते हुए अनेक बार जेल गई | 

उनका केलु से बना घर दक्षिण राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले के छोटे से गाँव घंटाली में था जहाँ सड़क,बिजली,स्कूल जैसी बुनियादी जरूरतों का नामोनिशान न था| कच्ची सड़क- उबड़ खाबड़ रास्तों पर चलना,पहाड़ी पर घर जहाँ पैदल चलकर ही पहुंचा जा सकता था,गुप्प अँधेरे में लालटेन की रोशनी में पढना-पार्टी क्लास चलाना,स्वयं खाना बनाना, झाड़ू-बर्तन  साफ करना,नदी से पीने का पानी लाना, पहाड़ी क्षेत्र में मीटिंग केलिए दूर-दूर तक पैदल चलना  इत्यादि  उनकी दिनचर्या के हिस्से थे| 

बात-चीत के दौरान अपने शुरुआती दिनों के बारे में चर्चा करते हुए बताती थी कि किस तरह से लोग उसके पास आने –मिलने से घबराते थे जिसके चलते काफी विरोध झेलना पड़ा|वो कहती थी कि लोगों का विश्वास जीतने में हमें  20 वर्ष लग गये| धीरे –धीरे उनकी ऐसी  ‘बहनजी’ बन गई  जो उनके सुख-दुःख को अपना सुख-दुःख समझती थी | गाँव में सड़क बनाने , बिजली का कनेक्शन करवाने,स्कूल खुलवाने केलिए उन्होंने अनेक पहल व प्रयास किये| प्रकृति प्रिय कामरेड हमेशा कहती थी कि प्रकृति हमें बहुत सीखती है क्योंकि उसका कोई स्वार्थ नहीं है,इन्सान तो अपने अनुभव-ज्ञान को भी बिना स्वार्थ के किसी से साझा नहीं करता है|

सन 1985 में मेरी उनसे पहली मुलाकात हुई| उनके  आकर्षक और आत्मविश्वास से भरपूर व्यक्तित्व को देख कर जीवन जीने का एक नया दर्शन मिल गया | रातभर पार्टी क्लास और उसमें हो रही बहस को जमीनी हकीकतों से जोड़ते हुए पार्टी लाईन पर चलने का उनका तरीका बेहद अनूठा एवं तार्किक था | वो हमेशा इस बात पर बल देती थी कि विचार को पकड़ो,व्यक्ति पूजा पार्टी के जीवन के लिए घातक है | पार्टी साहित्य पढ़ो,उसे जीवन के साथ जोड़ते हुए अपनी समझदारी बनाओं,यही दृष्टि तुम्हें पार्टी में अपना योगदान देने की ऊर्जा देगी | हर परिस्थिति से  सीखते हुए क्रांतिकारी मंजिल की तरफ आगे बढ़ो | 

कामरेड के जीवन, पार्टी कार्यक्रमों, संवाद, बहस  में महिलाओं के मुद्दे प्रमुख रहते थे | पार्टी के भीतर और बाहर महिला विरोधी विचारों और पितृसतात्मक प्रवृतियों की  पूरजोर खिलाफ़त करती रही | महिलाओं की राजनीतिक चेतना को बढ़ाने  के लिए हर पार्टी कार्यक्रम में उनकी बढचढ कर भागीदारी हो,इसके लिए पार्टी कामरेड्स को प्रेरित करती थी|  ऐपवा साथियों की मीटिंग्स में वह उनको सम्मान के साथ जीने व गलत का विरोध करने की समझदारी बनाने की कोशिश की | जब भी वे महिलाओं के किसी मुद्दे या सवाल को उठाती तो उनको साथ रखती थी ताकि वो सीख जाये कि आगे कैसे चलना है | 


प्रदेशभर में महिलाओं के साथ होनेवाले हर अपराध के लिए लड़ती रही | 4 सितम्बर,1987 में राजस्थान के सीकर जिले में जब रूप कंवर नाम की राजपूत लड़की को सती के नाम पर पति की चिता के साथ जला दिया था तो कामरेड ने अन्य महिला-संगठनों एवं जनतांत्रिक प्रतिरोधी ताकतों के साथ मिलकर जबर्दस्त आन्दोलन चलाया और दोषियों को सजा देने केलिए विधानसभा मार्च निकाला | इसी तरह 1992 में सामाजिक कार्यकर्त्ता और महिलाओं की आजादी केलिए संघर्षशील साथीन भंवरी भटेर जब  अपने गाँव में बाल-विवाह रुकवाने गई तो उसके साथ उच्च जाति के लोगों ने सामूहिक बलात्कार किया,तब श्रीलता ने भंवरी को न्याय दिलाने के लिए अन्य महिला संगठनों के साथ मिलकर प्रदेशभर में  जुझारू आन्दोलन-प्रदर्शन  किये और अपराधियों को जेल भिजवाया|

2003 में  अजमेर जिले की बीसलपुर परियोजना में काम  करनेवाली महिला मजदूर का उसके ठेकेदार द्वारा बलात्कार कर थ्रेसर से काट दिये जाने से हुई मौत के खिलाफ़ ऐपवा साथियों के साथ जयपुर तक आन्दोलन-धरना-घेराव किये और अपराधियों को सजा दिलवाई | उनके नेतृत्व में राजस्थान ऐपवा ने 10 वर्ष तक विधवा पेंशन संबंधी कानून में बदलाव (जिसमें बेटा यदि 20 वर्ष का है तो विधवा को पेंशन नहीं मिलेगी) हेतु विधानसभा के सामने कई बार प्रदर्शन-घेराव किया और सरकार को 20 वर्ष के बेटे की शर्त को हटाना पड़ा |


पिछले कुछ सालों से उन्होंने घर में काम करनेवाली महिलाओं के वेतन सम्बन्धी कानून बनाने की मांग  ऐपवा कार्यकर्मो का अभिन्न हिस्सा बनाया| वे  राज्यभर में महिलाओं के साथ किये जाने वाले हर तरह के भेदभाव के खिलाफ लड़ती रही| नरेगा में पूरी व बराबर की मजदूरी,कार्य –स्थल पर होनेवाले यौन शोषण केलिए कड़ा संघर्ष किया |  वे जिस इलाके में रहती थी उसमें महिलाऐं डायन जैसे अपराध की शिकार थी जिसको खत्म करने केलिए ठोस  क़दम उठाये | महिलाओं को डायन कहकर प्रताड़ित करना एक तरह से उसका सामाजिक कत्ल करना है | जिसको धर्म के माध्यम से सही ठहराया जाता है. वह हर मीटिंग में महिलाओं को धर्म के कुहासे से बाहर  निकलकर सही  सोच को बढ़ाने पर जोर देती थी. देवदासी, सती और डायन के अपराधों में समानता(तीनों की जड़ में धर्म) बताते हुए महिलाओं को समझाती कि धार्मिक पाखंड उनके ऊपर होनेवाले जुल्मों को पुनर्जन्म-प्रारब्ध –किस्मत –भाग्य का खेल मानकर उनसे बाहर निकलने के रास्ते सख्ती से बंद कर देता है और पितृ सत्ता को मजबूत करने में खाद-पानी का काम करता है| जिस भी महिला को डायन बनाया जाता उसमें दोषी लोगों के खिलाफ सख्त कार्यकाही करती जिसके कारण इलाके में  डायन जैसे सामाजिक व सामूहिक अपराध से महिलाऐं काफी हद तक मुक्त हुई हैं| 


वो शराब पीने के सख्त खिलाफ थी और इसे महिलाओं के साथ एक तरह का अपराध मानती थी उन्होंने देखा कि  पति शराब पी कर महिला को पीटता-गाली-गलोज करता, पैसे छीन लेता है| वे आदिवासी महिलाओं की तकलीफों के प्रति बहुत ही संवेदनशील थी| इलाके की  महिलाओं में डिलीवरी के समय चिकित्सकीय सहायता न मिल पाने के कारण स्वयं श्रीलता ने दाई का प्रशिक्षण प्राप्त किया,उनके ईलाज केलिए होम्योपेथी का अध्ययन किया और आदिवासी महिलाओं की डाक्टर बहनजी बन गई, उनके रोजगार के साधन बढाने केलिए दरी बनाने केलिए उनको हथकरघा प्रशिक्षण प्रदान किया| | 

जनता के जीवन को अपनी पाठशाला माननेवाली  कामरेड  का नजरिया बेहद दार्शनिक दृष्टिकोण वाला रहता था| अच्छे साहित्य का अध्ययन करना और उसके माध्यम से जीवन को समग्रता में समझने केलिए प्रयास करते रहना उनकी सोच  का अभिन्न हिस्सा था|  वो बौद्ध दर्शन से काफी प्रभावित थी | काफी सालों तक बौद्द दर्शन की प्रयोगधर्मी रही | उनका मानना था कि बुद्ध ने कोई पाखंड, झूठ का सहारा नहीं लिया| बुद्ध जिन्दगी में जो चीज जैसी है वैसी समझने पर बल देते थे और उसकी द्वन्द्वात्मक प्रकृति को जानने की शिक्षा देते थे| उनकी सोच एवं सक्रियता का दायरा बहुत ही व्यापक था| इस समझदारी के चलते उनमें प्रतिकूलताओं से लड़ने की अलग सकारात्मक ऊर्जा  थी| इस संबध में वह  मार्क्स और बुद्ध में काफी निकटता देखती थी| पुस्तकें खरीदने,पढ़ने, पढ़े हुए का जीवन और पार्टी निर्माण में इस्तेमाल करने की उनकी कमाल की प्रतिभा थी| घंटाली और जयपुर दोनों जगह महत्वपूर्ण व हर तरह की पुस्तकों की बहुत ही समृद्ध लाइब्रेरी बनाई| जिसमें पार्टी के क्लासिक साहित्य से लेकर वर्तमान तक की महत्त्वपूर्ण रचनाओं का संग्रह मिलता है. उनकी रचनात्मक दुनिया का क्षितिज बहु आयामी था जिसका उपयोग वो पार्टी को आगे बढाने, कार्यक्रमों को सफल बनाने में करती थी| 


90 के दशक में जब अमेरिकी साम्राज्यवाद के खिलाफ पार्टी का जयपुर की सड़कों पर प्रदर्शन हुआ तब कामरेड ने एक नुकड़ नाटक का अभ्यास व निर्देशन किया था,इस दौरान भाग लेनेवाले सभी साथी उनके कौशल, एक्शन से आश्चर्यचकित थे| लेखन उनके कार्यकर्मों का अभिन्न हिस्सा था| उनका रचना संसार  समसामयिक विषयों से लेकर क्लासिक मार्क्सवादी साहित्य तक विस्तारित था| धर्म,संस्कृति,द्वंदवाद, विवाह, परिवार,जाति, पितृसता, एन जी ओ की क्रांति विरोधी भूमिका, भूमंडलीकरण और महिला, जैसे तमाम विषयों पर उनके आलेख मिलते हैं| राजनैतिक इच्छाशक्ति से भरपूर श्रीलता जैसा सोचती थी वैसा ही वे करती थी| साहस,उत्साह,निडरता,समझौतेविहीन संघर्ष एवं स्पष्टवादिता उनका स्वभाव था| जिसने  पार्टी लाईन से न कभी समझौता किया और न कभी भटकी|  पार्टी निर्माण या लिये गये कार्यक्रमों में ढिलाई, एक –दूसरे की पीठ पीछे बुराई, अपनी कमजोरियों को छुपाने केलिए उनके आचरण को हथियार बनाने, पार्टी का गलत इस्तेमाल करने जैसे वामविरोधी मनोविज्ञान के सख्त खिलाफ थी. जिसके चलते उसे  कामरेड्स की  काफी नाराजगी व आलोचना का सामना करना पड़ता था | उसका हर प्रयास, अनुभव, ज्ञान, संबध, संवाद,बहस,बातचीत,लड़ाई –झगड़ा का उपयोग साथियों को सिखाने,पार्टी बनाने,वैचारिक भटकाव, मनोवादी आदतों  को रोकने  की भावना से ओतप्रोत रहता था| बच्चों से लेकर बड़ों तक वह  बेहद प्रिय थी| बच्चों के साथ बच्चा बनकर उनको बातों-बातों में अनेक काम की बातें सीखने और समझाने की उनकी शैली बच्चों में एक नई  ऊर्जा भर देती थी |


उनके मन में तमाम उन लोगों और संघर्षों के प्रति अत्यंत सम्मान था जो  एक बेहतर भविष्य और दुनिया के निर्माण में मजबूती देते हैं| उनको देश के विभिन्न हिस्सों में चल रहे आंदोलनों से काफी आशाएं थी| पार्टी साथियों के बारे में काफी सोचती थी| उनका कहना था कि हर कार्यकर्ता एक पौधे की तरह है जिसकी सार-संभाल करते हुए सही दिशा में विकसित करने व वैचारिक रूप से समृद्ध करने की जिम्मेदारी पार्टी के वरिष्ठ साथियों की है | पिछले कुछ वर्षों से जब वे बीमारी के कारण  बाहर नहीं जा पाती थी तो ऊन की टोपियाँ बनानी सीखकर जरुरतमन्द  कामरेड्स को दी | उनका यह जज्बा, जीवन दर्शन,ऊर्जा और  संघर्ष पार्टी-ऐपवा को आगे बढानें में सदैव हमारा मार्ग-दर्शन करेंगे| ऐसे अनुकरणीय साथी को लाल सलाम !     

लेखक : सुधा चौधरी


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