अब कोरोना के कैशलेस इलाज से हॉस्पिटल मना करे तो ये करें

जीवन अनमोल है इसे आत्महत्या कर नष्ट नहीं करें !

मास्क लगाकर रहें ! सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखें !

संस्कार न्यूज़ राम गोपाल सैनी

नई दिल्ली (संस्कार न्यूज़ ) अब कोरोना होने पर आप किसी भी हॉस्पिटल में कैशलेस इलाज करवा सकते हैं। बस आपके पास हेल्थ इंश्योरेंस होना चाहिए और वह हॉस्पिटल आपकी बीमा कंपनी से लिंक्ड हो।

कैशलेस यानी बिना पैसे दिए कोरोना का इलाज करवाया जा सकता है। ये आदेश इंश्योरेंस रेगुलेटर इरडा (IRDAI) ने दिया है। आदेश के मुताबिक, कोई नेटवर्क हॉस्पिटल अगर ऐसा नहीं करता है तो हेल्थ इंश्योरेंस कंपनियों पर कार्रवाई होगी।

इरडा ने यह भी साफ किया कि इंश्योरेंस कंपनियों का जिन अस्पतालों के साथ कैशलेस का करार है, उन्हें कोविड के साथ दूसरी बीमारियों का इलाज भी करना जरूरी है। अगर ऐसा नहीं होता है, तो इंश्योरेंस कंपनियों को ऐसे अस्पतालों से बिजनेस एग्रीमेंट खत्म करना चाहिए।

आमतौर पर हॉस्पिटल अपना कैश मैनेज करने के लिए कैशलेस फैसिलिटी नहीं देते हैं, क्योंकि मरीजों को कैशलेस फैसिलिटी देने के बदले इंश्योरेंस कंपनियों से मिलने वाला पैसा उन्हें अगले 10-15 दिनों में मिलता है। ऐसे में हॉस्पिटल्स मरीज से ही इलाज का पैसा वसूलते हैं और उन्हें रिएंबर्समेंट कराने की सलाह दे देते हैं।

कैशलेस इलाज न होने पर ये करें -
मुंबई के बीमा लोकपाल यानी इंश्योरेंस ओम्बड्समैन मिलिंद खरत ने बताया कि अगर हॉस्पिटल ने ग्राहकों को कैशलेस इलाज की सुविधा नहीं दी, तो सबसे पहले ग्राहक को अपनी इंश्योरेंस कंपनी के ग्रीवांस रिट्रेशनल ऑफिसर के पास शिकायत दर्ज करनी होगी। 

अगर 15 दिन के भीतर संतुष्ट जवाब नहीं मिलता, तो आप ओम्बड्समैन के पास अपनी शिकायत लेकर जा सकते हैं। खास बात यह है कि यहां सुनवाई के दौरान वकील की जरूरत नहीं, बल्कि खुद ग्राहक या उसका रिश्तेदार उपस्थित हो सकता है और बीमा कंपनी की ओर से भी अधिकारी आएगा।

बीमा लोकपाल के फैसले से इंश्योरेंस कंपनी इनकार नहीं कर सकती है। लेकिन अगर ग्राहक फैसले से असंतुष्ट है तो वह कंज्यूमर कोर्ट भी जा सकता है। भारत के 17 शहरों में इंश्योरेंस ओम्बड्समैन हैं। केवल महाराष्ट्र राज्य ऐसा है जहां मुंबई और पुणे दो शहरों में इंश्योरेंस ओम्बड्समैन हैं।

वहीं वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी 22 अप्रैल को इरडा के चेयरमैन एस सी खुंटिया से कहा था कि इंश्योरेंस कंपनियों द्वारा कैशलेस सुविधा न देने वाली शिकायतों पर सख्त एक्शन लें।

क्या कैशलेस क्लेम के अलावा ग्राहक के पास कोई अन्य उपाय है?
पॉलिसी की तहत ग्राहक को इलाज का पूरा पेमेंट किया जाता है। लेकिन कैशलेस सुविधा नहीं मिलने पर इलाज का खर्च ग्राहक को भरना होगा। बाद में इससे जुड़े सभी वाजिब डॉक्यूमेंट्स इंश्योरेंस कंपनी के पास जमा करने होंगे। उन्हीं डॉक्यूमेंट्स को इंश्योरेंस कंपनी क्रॉस चेक करती है, फिर पॉलिसी के तहत इलाज में खर्च रकम को ग्राहक के बैंक खाते में भेज देती है।

सही हेल्थ इंश्योरेंस का चुनाव ऐसे करें-
- पॉलिसी लेते समय अपनी हेल्थ यानी स्वास्थ्य से जुड़ी जानकारी बिल्कुल न छिपाएं।

- इंश्योरेंस कंपनी की ओर से मिलने वाले नेटवर्क हॉस्पिटल आपके आस-पास हैं या नहीं इस पर भी ध्यान दें।

- पॉलिसी में सब लिमिट पर ध्यान देना चाहिए। इसके तहत इंश्योरेंस कंपनियां डॉक्टर फीस, ICU चार्जेज सहित रूम रेंट पर लिमिटेड पैसे ही देते हैं। यानी अलग-अलग लिमिट लगी होती है।

 - पॉलिसी में को-पे का भी ध्यान रखना चाहिए। इसके तहत कुल खर्च का कुछ हिस्सा ग्राहक और कुछ इंश्योरेंस कंपनी को पेमेंट करना होता है।

ये होती है कैशलेस फैसिलिटी -
अगर आप अस्पताल में भर्ती होते हैं तो दो तरीके से क्लेम मिल सकता है। पहला कि आप पूरा खर्च खुद से ही भरें और फिर बिल या उससे जुड़े सभी डॉक्युमेंट इंश्योरेंस कंपनी के पास जमा कर दें। कंपनी इसकी जांच पड़ताल कर आपको पेमेंट करती है।

दूसरा उपाय होता है कि इंश्योरेंस कंपनी का नेटवर्क अस्पतालों के साथ एग्रीमेंट होता है, जिसके तहत इंश्योरेंस कंपनी अस्पताल को एक क्रेडिट देती है। इससे ग्राहक के इलाज का खर्च अस्पताल और इंश्योरेंस कंपनी के बीच सेटल हो जाता है। यानी इलाज के बाद ग्राहक को पेमेंट नहीं करना होगा। इसे ही कैशलेस फैसिलिटी कहा जाता है।

इंश्योरेंस तीन प्रकार के होते हैं-

1- जनरल इंश्योरेंस: इसमें मोटर, गाड़ी सहित बिल्डिंग का इंश्योरेंस होता है। इस सेगमेंट में कंपनियां लाइफ इंश्योरेंस नहीं बेचती हैं, जबकि हेल्थ इंश्योरेंस बेच सकती हैं। इनमें HDFC अर्गो, ICICI लोंबार्ड, टाटा AIG सहित न्यू इंडिया जैसी कंपनियां शामिल हैं।

2- हेल्थ इंश्योरेंस: इसके तहत आने वाली कंपनियां केवल हेल्थ इंश्योरेंस बिजनेस करती हैं। इस सेगमेंट में स्टैंडर्ड हेल्थ इंश्योरेंस कंपनियों में मैक्स बूपा, रेलिगेयर (केयर), मणिपाल सिग्ना सहित स्टार हेल्थ जैसे नाम शामिल हैं।

3- लाइफ इंश्योरेंस: इस सेगमेंट की कंपनियां केवल लाइफ इंश्योरेंस प्रोडक्ट बेचती हैं। इनमें LIC (जीवन बीमा निगम), ICICI प्रुडेंशियल, HDFC लाइफ जैसे नाम शामिल हैं।

महामारी के दौर में इंश्योरेंस क्लेम करीब 50% बढ़ा
एक्सपर्ट्स के मुताबिक कोरोनाकाल में इंश्योरेंस इंडस्ट्री में क्लेम करीब 50% बढ़ा है। अब तक कोविड से जुड़े करीब 14,287 करोड़ रुपए के क्लेम हुए हैं, जिसमें से 7,561 करोड़ रुपए का सेटलमेंट हो गया है। वित्त मंत्री ने भी गुरुवार को बताया था कि इंश्योरेंस कंपनियों ने 8,642 करोड़ रुपए के कोविड से जुड़े 9 लाख से ज्यादा क्लेम का निपटारा किया है।

भारत में कुल 57 इंश्योरेंस कंपनियां
इंश्योरेंस इंडस्ट्री में 57 इंश्योरेंस कंपनियां शामिल हैं। इनमें से 33 नॉन-लाइफ इंश्योरेंस और बाकी लाइफ इंश्योरेंस कंपनियां हैं। ओवरऑल मार्केट साइज की बात करें तो यह 2020 में करीब 280 अरब डॉलर का रहा।

इरडा के मुताबिक लाइफ इंश्योरेंस बिजनेस में भारत दुनिया के 88 देशों की लिस्ट में 10वें नंबर पर है। 2019 के दौरान ग्लोबल लाइफ इंश्योरेंस मार्केट में भारत की भागीदारी 2.73% रही। नॉन-लाइफ इंश्योरेंस मार्केट में भारत का 15वां नंबर है


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