चैत्र शुक्ल प्रतिपदा भारतीय संस्कृति का प्रतीक हिन्दू नववर्ष विक्रम संवत् 2082

जीवन अनमोल है इसे आत्महत्या कर नष्ट नहीं करें !

सुबह की शुरुआत माता-पिता के चरण स्पर्श से करें !

संस्कार सृजन राम गोपाल सैनी

जयपुर (संस्कार सृजन) आज से हिंदू कैलेंडर का नया वर्ष विक्रम संवत 2082 की शुरुआत होने जा रही है। हिंदू विक्रम संवत 2082 अंग्रेजी कैलेंडर के वर्ष 2025 से 57 वर्ष आगे होगा। नववर्ष के दिन प्रत्येक इंसान चाहे कहीं भी हो अपने आपको को उत्साहित, प्रफुल्लित व नई उर्जा से ओतप्रोत महसूस करता है। अधिकतर देशवासी 1 जनवरी को ही नववर्ष की शुरुआत मानते हैं लेकिन अपनी संस्कृति व इतिहास के प्रति हमारी उदासीनता के चलते यह सत्य नहीं है। 1 जनवरी से शुरू होने वाला कैलेंडर तो ग्रिगोरियन कैलेंडर है। इसकी शुरूआत 15 अक्टूबर 1582 को इसाई समुदाय ने क्रिसमस की तारीख निश्चित करने के लिए की थी क्योंकि इससे पहले 10 महीनों वाले रूस के जूलियन कैलेंडर में बहुत सी कमियां होने के कारण हर साल क्रिसमस की तारीख निश्चित नहीं होती थी। इस उलझन को सुलझाने के लिए 1 जनवरी को ही इन लोगों ने नववर्ष मनाना शुरू कर दिया।


क्या हम भारतीयों ने भी यह सोचा की हमारा नववर्ष कबसे शुरू होता है? हमारा अपना क्या इतिहास है? ठीक है किसी को भी कोई भी उत्सव जब मर्जी मनाने की स्वतंत्रता होनी चाहिए यह उसका अपना निजी अधिकार है लेकिन क्या हम अपनी संस्कृति व अपने संस्कारों की तिलांजलि दे कर उत्सव मनाएं? आज जिस भारतीय संस्कृति का अनुसरण विदेशी लोगों ने करना शुरू किया है उसी भारतीय संस्कृति व सभ्यता को हम तहस-नहस करने पर तुले हैं।

भारतीय कैलेंडर के अनुसार नववर्ष का आगाज 1 जनवरी से नहीं बल्कि चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से नवसंवत्सर आरंभ होता है जो अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार अक्सर मार्च-अप्रैल माह में आता है। पौराणिक मान्यता है कि पतझड़ के बाद बसंत ऋतु का आगमन भारतीय नव वर्ष के साथ ही होता है। बसंत में पेड़-पौधे नए फूल और पत्तियों से लद जाते हैं। इसी समय किसानों के खेतों में फसल पक कर तैयार होती है। पौराणिक तथ्यों के अनुसार, इसी शुभ दिन प्रभु श्री राम का राज्याभिषेक भी हुआ था। शरद ऋतु की कड़कड़ाती सर्दी में प्रायः सभी पेड़ों के पत्ते गिर जाते है ऐसे में बसंत के आगमन पर पेड़ों पर नए पत्ते एवं नवीन कोपलें आने लगती है। इस काल में प्रायः चारों ओर हरे भरे पेड़ पौधे एवं हरियाली दिखाई देने लगती है। यह पेड़-पौधों पर नए फल आने का समय होता है। इस समय चारों ओर रंग-बिरंगे सुन्दर फूल खिलने लगते है एवं पेड़ की शाखाओं पर पक्षी गाने लगते है। इस समय पूरी प्रकृति ही नए रंग में रंगी हुई प्रतीत होती है। चारों ओर वसंत ऋतु में जीवन की नवीनता दिखाई देने लगती है। ऐसे में प्रकृति भी हिन्दू नववर्ष का स्वागत करती हुई प्रतीत होती है। भारतीय हिंदू कैलेंडर की गणना सूर्य और चंद्रमा के अनुसार होती है। दुनियाँ के तमाम कैलेंडर किसी न किसी रूप में भारतीय हिंदू कैलेंडर का ही अनुसरण करते हैं। 

भारतीय पंचांग और काल निर्धारण का आधार विक्रम संवत ही हैं। जिसकी शुरुआत मध्य प्रदेश की उज्जैन नगरी से हुई। यह हिंदू कैलेन्डर राजा विक्रमादित्य के शासन काल में जारी हुआ था तभी इसे विक्रम संवत के नाम से भी जाना जाता है। विक्रमादित्य की जीत के बाद जब उनका राज्यारोहण हुआ तब उन्होंने अपनी प्रजा के तमाम ऋणों को माफ करने की घोषणा करने के साथ ही भारतीय कैलेंडर को जारी किया इसे विक्रम संवत नाम दिया गया। यही नहीं यूनानियों ने नकल कर भारत के इस हिंदू कैलेंडर को दुनियाँ के अलग-अलग हिस्सों में फैलाया। भले ही आज दुनिया भर में अंग्रेजी कैलेंडर का प्रचलन बहुत अधिक हो गया हो लेकिन फिर भी भारतीय कलैंडर की महत्ता कम नहीं हुई। आज भी हम अपने व्रत-त्यौहार, महापुरुषों की जयंती-पुण्यतिथि, विवाह व अन्य सभी शुभ कार्यों को करने के मुहूर्त आदि भारतीय कलेंडर के अनुसार ही देखते हैं। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही वासंती नवरात्र भी प्रारंभ होते हैं। सबसे खास बात इसी दिन ही सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की थी। ताज्जुब होता है जिस भारतीय कैलेंडर ने दुनियाँ भर के कैलेंडर को वैज्ञानिक राह दिखाई आज हम उसे ही भूलने लग गए हैं।

भारतीय हिंदू नववर्ष के दिन शुभकामनाएं देने से हिचकिचाते हैं शायद इसलिए की कहीं हम पर रूढ़ीवादी का टैग न लग जाए? जबकि अपनी संस्कृति संस्कारों का अनुसरण करना रूढ़िवादीता नहीं। यह तो वह बहुमूल्य धरोहर है जिससे एक तरफ पूरा विश्व सीख रहा है तो दूसरी ओर हम इस धरोहर को खोते जा रहें हैं। दुनिया को राह दिखाने वाली संस्कृति आज खुद राह से भटकने को मजबूर है। भले ही आज सोशल मीडिया पर हिंदू नववर्ष को मनाने के लिए हम सब संदेशों को प्रचारित प्रसारित कर रहे हों लेकिन हकीकत में उस दिन को भूल जाते हैं। अपने धर्म व संस्कृति के उत्सवों को मनाने का सभी में लगाव होना चाहिए। 

हमारे महापुरुषों व वीर योद्धाओं ने धर्म व संस्कृति की रक्षा के लिए बहुत बलिदान दिया है क्या वह बलिदान इसलिए ही दिया था की एक दिन हम अपनी संस्कृति व धर्म को ही भूल जाएं? अभी भी समय है सभी को मिलजुलकर ऐसा प्रयास करना चाहिए जिससे विश्व में हमारी संस्कृति का एक ऐसा संदेश जाए की हम भारतीय अपनी संस्कृति को संरक्षित रखने के लिए एकजुट हैं। क्या अब भी हमें अपने हिंदू कैलेंडर के अनुसार नववर्ष को नहीं मनाना चाहिए? जिसमें पूरे ब्रह्माण्ड की रचना है। आओ इस हिंदू नववर्ष को धूमधाम से मनाएं और आपसी भाईचारे व प्रेम को विश्वभर में ले जाएं।

लेखक : डॉ राकेश वशिष्ठ 

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