जीवन अनमोल है , इसे आत्महत्या कर नष्ट नहीं करें !
सुबह की शुरुआत माता-पिता के चरण स्पर्श से करें !
संस्कार सृजन @ राम गोपाल सैनी
मैं चुपचाप रोऊंगी
चुपचाप हंसो
फिर कभी मत कहना
एक बार मुझे रोते हुए देखो !
मैं चुपचाप जल जाऊंगी
मैं चुपचाप मर जाऊंगी
मैं नहीं कहूंगी कि कब
मरते समय इस प्यासे होंठ पर
एक बूँद पानी देना !
मैं इसे चुपचाप सह लूंगी
मैं चुपचाप देखूंगी
फिर कभी मत कहना
जले हुए दिल पर एक नज़र डालें !
मैं खामोशी से प्यार करूंगी
मैं इसे अपने दिल में रखूंगी
फिर कभी मत कहना
देखो मैं तुमसे कितना प्यार करती हूँ !
मैं चुपचाप सोचूंगी
मैं इसे चुपचाप पास रखूंगी
फिर कभी मत कहना
करीब आओ और मेरा चेहरा देखो !
मैं चुपचाप गायब हो जाऊंगी
मैं चुपचाप चली जाऊंगी
फिर कभी मत कहना
मैं हमेशा के लिए जा रही हूं,
अब अलविदा कहो !
लेखक : देबांजलि अधिकारी
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