जीवन अनमोल है , इसे आत्महत्या कर नष्ट नहीं करें !
सुबह की शुरुआत माता-पिता के चरण स्पर्श से करें !
संस्कार सृजन @ राम गोपाल सैनी
तन से बाल मन से बाल, हैं रतन-धन बाल।
नटखट प्रवृत्ति होती, करते रहते हैं कमाल।।
करते क्षण में ही विवाद, क्षण में ही संवाद।
क्षण में ही धक्का-मुक्की ,क्षण मे पूछें हाल।।
इनमें भी वर्चस्व होता,अश्व सी होती चाल।
आगे बढ़ने की होंड़ में , कर लेते हैं बवाल।।
चलते राह हैं भिड़ जाते , ये ठोंक के ताल।
कलम ही तलवार है होती,बस्ता होता ढाल।।
आपसी शिकायतों में , बजता रहता गाल।
गुरूजन डाँट लगाते बिन जाने उनकी चाल।।
चुगलखोरी रहती जारी , बदले का तकताल।
मैम पढ़ाते और समझाते , हो जाती बेहाल।।
छुटकारा पाने को इससे , लगे बाल-चौपाल।
प्रेम सौहार्द का पाठ पढ़ायें और करें शवाल।।
कुछ भी हो भाई ये सब हैं देश के नौनिहाल।
अभिभावक,शिक्षक बहन भाई रखें खयाल।।
चाचा नेहरू जी की स्मृति में,लगे बाल चौपाल।
14 नवम्बर बाल दिवस मनाएं,सम्मानित हों बाल।।
लेखक - विजय मेहंदी, जौनपुर(उ.प्र.)
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