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संस्कार सृजन @ राम गोपाल सैनी
जयपुर (संस्कार सृजन) कला साहित्य संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग और रविंद्र मंच की ओर से संचालित टैगोर थिएटर योजना के तहत नाटक कफन का मंचन किया गया। मुंशी प्रेमचंद लिखित कहानी कफन का नाट्य रूपांतरण एवं निर्देशन जयपुर के युवा निर्देशक विपिन शर्मा ने किया। नाटक समाज में व्याप्त गरीबी, शोषण और मानवता के पतन की एक मार्मिक तस्वीर प्रस्तुत करता है। यह नाटक उन लोगों की दुर्दशा को उजागर करता है, जिनके जीवन में गरीबी और भूख इतनी हावी हो जाती है कि मानवीय संवेदनाएं गौण हो जाती हैं। नाटक समाज में व्याप्त गरीवी, शोषण और मानवता के पतन की एक मार्मिक तस्वीर प्रस्तुत करता है।
कहानी का केंद्र बिंदु एक गरीब परिवार है जिसमें घीसू और उसका बेटा माधव शामिल हैं। वे दोनों मजदूर हैं, लेकिन काम करने की बजाय आलस और निकम्मेपन में अपना जीवन बिता रहे हैं। उनकी दयनीय स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके पास दो वक्त की रोटी जुटाने के लिए भी साधन नहीं है।
कहानी में माधव की गर्भवती पत्नी बुधिया जो 13 साल की है और प्रसव पीड़ा से गुजर रही होती है, लेकिन घीसू और माधव उसकी चिंता करने की बजाय पास के गांव से आलू चुराकर खाने में मशगूल हो जाते हैं। बुधिया की मृत्यु हो जाती है, लेकिन पिता पुत्र पर इसका कोई असर नहीं होता। यह नाटक उन लोगों की दुर्दशा को उजागर करता है, जिनके जीवन में गरीबी और भूख इतनी हावी हो जाती है कि मानवीय संवेदनाएं गौण हो जाती हैं। बुधिया की मृत्यु के बाद, गांव के लोग कफन के लिए चंदा इकट्ठा करते हैं। लेकिन, पीसू और माधव उस पैसे का उपयोग कफ़न खरीदने की बजाय शराब पीने और अच्छे खाने में कर देते हैं। यह दृश्य नाटक में एक गहरे व्यंग्य के साथ प्रस्तुत किया गया है। जहां एक तरफ एक इंसान की मृत्यु हो चुकी है, वहीं दूसरी तरफ घीसू और माधव इस पैसे से अपनी भूख और लालच को संतुष्ट कर रहे हैं। इस कहानी का यह मोड़ मानवता के पतन और संवेदनहीनता की चरम सीमा को दर्शाता है।
नाटक के माध्यम से प्रेमचंद ने न केवल गरीबी और भूख की भयावहता को उजागर किया है, बल्कि यह भी दिखाया है कि जब इंसान पर गरीबी और शोषण का बोझ हद से ज्यादा बढ़ जाता है, तो उसकी नैतिकता और मानवता मर जाती है। घीसू और माधव जैसे पात्रों के माध्यम से लेखक ने यह संदेश दिया है कि जब इंसान के पास भूख मिटाने के साधन नहीं होते, तो उसकी संवेदनाएं और मानवीय मूल्य धीरे-धीरे क्षीण हो जाते हैं।
कफन का मंचन न केवल एक कहानी का प्रदर्शन है, बल्कि यह समाज के उन अंधेरे कोनों की ओर इशारा करता है जहां इंसान केवल जीवित रहने के लिए ही संघर्ष करता है। यह नाटक हमें हमारे समाज में व्याप्त असमानताओं, गरीबी और सामाजिक शोषण पर सोचने को मजबूर करता है। नाटक में महेश योगी, आसिफ शेर अली खान, संजय कुमार शर्मा, रिया सैनी, यशोदा सेन, शेफाली, विपिन शर्मा, तन्मय जैन, निकिता जैन, वेद प्रकाश, संजय कुमार सेन, हरीश वर्मा ने अभिनय किया है ।
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