Maa Katyayani नवरात्रि के छठे दिन करें मां कात्यायनी की पूजा

जीवन अनमोल है इसे आत्महत्या कर नष्ट नहीं करें !

सुबह की शुरुआत माता-पिता के चरण स्पर्श से करें !

संस्कार सृजन राम गोपाल सैनी

जयपुर (संस्कार सृजन) चैत्र नवरात्रि का छठा दिन माँ कात्यायनी को समर्पित है। 14 अप्रैल के दिन पूरे विधि-विधान से दुर्गा माता के छठे स्वरूप माँ कात्यायनी की पूजा करने से सुख, समृद्धि, आयु और यश की प्राप्ति होती है। मान्यता है माँ कात्यायनी का व्रत रख विधिवत उपासना करने पर मनचाहे वर की प्राप्ति होती है।

जानिए अंतर्राष्ट्रीय भविष्यवक्ता पंडित रविन्द्राचार्य से नवरात्रि के छठे दिन का पूजा मुहूर्त, माता कात्यायनी की पूजा विधि, स्वरूप, भोग, प्रिय रंग, पुष्प, कथा, मंत्र और आरती:-


पूजा का मुहूर्त

ब्रह्म मुहूर्त- 04:27 ए एम से 05:12 ए एम

प्रातः सन्ध्या- 04:49 ए एम से 05:56 ए एम

अभिजित मुहूर्त- 11:56 ए एम से 12:47 पी एम

विजय मुहूर्त- 02:30 पी एम से 03:21 पी एम

गोधूलि मुहूर्त- 06:45 पी एम से 07:08 पी एम

सायाह्न सन्ध्या- 06:46 पी एम से 07:53 पी एम

अमृत काल- 03:16 पी एम से 04:55 पी एम

निशिता मुहूर्त- 11:59 पी एम से 12:43 ए एम, अप्रैल 15

त्रिपुष्कर योग- 01:35 ए एम, अप्रैल 15 से 05:55 ए एम, अप्रैल 15

रवि योग- 05:56 ए एम से 01:35 ए एम, अप्रैल 15

राहुकाल- 05:10 पी एम से 06:46 पी एम

प्रिय भोग:- मां कात्यायनी को शहद का भोग प्रिय है। ऐसे में पूजा के समय मां कात्यायनी को शहद का भोग लगाना चाहिए। कहते हैं कि ऐसा करने से भक्त का व्यक्तित्व निखरता है।

मां कात्यायनी मंत्र

ॐ देवी कात्यायन्यै नम:॥

मां कात्यायनी का प्रार्थना मंत्र

चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।

कात्यायनी शुभं दद्याद् देवी दानवघातिनी॥

मां कात्यायनी का प्रिय पुष्प व रंग:- मां कात्यायनी को लाल रंग प्रिय है। इस दिन लाल रंग के गुड़हल या गुलाब के फूल मां भगवती को अर्पित करना शुभ रहेगा। मान्यता है कि ऐसा करने से मां भगवती की कृपा बरसती है।

मां कात्यायनी स्तुति मंत्र:-

या देवी सर्वभूतेषु मां कात्यायनी रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

मां कात्यायनी का स्वरूप: मां कात्यायनी की सवारी सिंह यानी शेर है। माता की चार भुजाएं हैं और उनके सिर पर हमेशा मुकुट सुशोभित रहता है। दो भुजाओं में कमल और तलवार धारण करती हैं। मां एक भुजा वर मुद्रा और दूसरी भुजा अभय मुद्रा में रहती है। मान्यता है कि अगर भक्त विधि-विधान से माता की पूजा करें तो उनके विवाह में आ रही अड़चनें खत्म हो जाती हैं।

मां कात्यायनी कवच मंत्र:-

कात्यायनौमुख पातु कां स्वाहास्वरूपिणी।

ललाटे विजया पातु मालिनी नित्य सुन्दरी॥

कल्याणी हृदयम् पातु जया भगमालिनी॥

पूजा-विधि

1- सुबह उठकर स्नान करें और मंदिर साफ करें

2- दुर्गा माता का गंगाजल से अभिषेक करें।

3- मैया को अक्षत, लाल चंदन, चुनरी, सिंदूर, पीले और लाल पुष्प अर्पित करें।

4- सभी देवी-देवताओं का जलाभिषेक कर फल, फूल और तिलक लगाएं।

5- प्रसाद के रूप में फल और मिठाई चढ़ाएं।

6- घर के मंदिर में धूपबत्ती और घी का दीपक जलाएं

7- दुर्गा सप्तशती और दुर्गा चालीसा का पाठ करें

8 - फिर पान के पत्ते पर कपूर और लौंग रख माता की आरती करें।

9 - अंत में क्षमा प्रार्थना करें।

मां कात्यायनी की कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, ऋषि कात्यायन देवी मां के परम उपासक थे। एक दिन मां दुर्गा ने इनकी तपस्या से प्रसन्न होकर इनके घर पुत्री के रुप में जन्म लेने का वरदान दिया। ऋषि कात्यायन की पुत्री होने के कारण ही देवी मां को मां कात्यायनी कहा जाता है। मान्यता है कि मां कात्यायनी की उपासना से इंसान अपनी इंद्रियों को वश में कर सकता है। मां कात्यायनी ने ही महिषासुर का वध किया था। इसलिए ही मां कात्यायनी को महिषासुर मर्दनी भी कहा जाता है। इसके अलावा माता रानी को दानव और असुरों का विनाश करने वाली देवी कहते हैं।

भगवान श्री कृष्ण ने भी की थी पूजा:-

पौराणिक कथाओं के अनुसार, मां कात्यायनी की पूजा भगवान राम और श्रीकृष्ण ने भी की थी। कहते हैं कि गोपियों ने भगवान श्रीकृष्ण को पति के रूप में पाने के लिए मां दुर्गा के इस स्वरूप की पूजा की थी। मां दुर्गा ने सृष्टि में धर्म को बनाए रखने के लिए यह अवतार लिया था।

मां कात्यायनी की आरती

जय-जय अम्बे जय कात्यायनी

जय जगमाता जग की महारानी

बैजनाथ स्थान तुम्हारा

वहा वरदाती नाम पुकारा

कई नाम है कई धाम है

यह स्थान भी तो सुखधाम है

हर मंदिर में ज्योत तुम्हारी

कही योगेश्वरी महिमा न्यारी

हर जगह उत्सव होते रहते

हर मंदिर में भगत हैं कहते

कत्यानी रक्षक काया की

ग्रंथि काटे मोह माया की

झूठे मोह से छुडाने वाली

अपना नाम जपाने वाली

बृहस्‍पतिवार को पूजा करिए

ध्यान कात्यायनी का धरिए

हर संकट को दूर करेगी

भंडारे भरपूर करेगी

जो भी मां को 'चमन' पुकारे

कात्यायनी सब कष्ट निवारे।।

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