जीवन अनमोल है , इसे आत्महत्या कर नष्ट नहीं करें !
सुबह की शुरुआत माता-पिता के चरण स्पर्श से करें !
संस्कार सृजन @ राम गोपाल सैनी
आज बुलंद आवाज में हर कोई नारी सशक्तिकरण का नारा लगाता नजर आता है। लेकिन सशक्तिकरण क्या है उसके मायने नहीं जानता। क्या आर्थिक रूप से आत्मनिर्भरता सशक्तिकरण है अथवा स्वच्छंद होकर आगे बढ़ने की ललक? यह ऐसा प्रश्न है जो वर्तमान समय मैं अपना सिर उठाए जवाब की प्रतीक्षा में खड़ा है।
संसार की लगभग आधी आबादी में आने वाली महिलाओं का सफर सशक्तिकरण की तलाश में आज भी निरंतर जारी है। पिछले कुछ दशकों की ओर पलट कर देखा जाए तो पता चलता है कि महिलाओं की सोच में बडा बदलाव आया है तथा जागरूकता के स्वर भी तेजी से उठे हैं । वह सशक्त है निर्बल नहीं उसे अधिकार दिए गए हैं, अब वह शोषित नहीं की जा सकती। यह बात वह जान चुकी है। इसके उपरांत भी वह अपने अधिकारों के प्रति आज भी संघर्षों से जूझ रही है ।जो स्थान समाज में उसे मिलना चाहिए, वह न देकर उसकी उपेक्षा की जाती है। वह आज भी कई जगहों पर असहाय और हारी हुई महसूस करती है । उसकी यह लड़ाई केवल समाज से नहीं बल्कि अपनों से भी है। उसे आज भी अपने अस्तित्व की तलाश है। इन सभी बातों के साथ जब हम गहनता से विचार करते हैं तो पाते हैं।केवल सशक्तिकरण का नारा लगाकर अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होना या उन्हें हासिल करना ही महिला सशक्तिकरण नहीं है। हमारे समाज में ऐसी बहुत सी महिलाएं हैं । जो अधिक शिक्षित नहीं हैं । वे न तो अपने अधिकारों के बारे में जानती हैं ,ना ही उन्हें स्वतंत्रता का कोई अर्थ ज्ञात है । उन्हें तो जो सिखाया जाता है उसका चुपचाप बिना किसी प्रश्न के निर्वाह करती हैं। उनके लिए स्व अस्तित्व कोई मायने नहीं रखता।
दूसरी ओर ऐसी महिलाएं भी हैं जो आधुनिक दृष्टिकोण रखती हैं उनके लिए उनका करियर हर मायने में महत्वपूर्ण होता है। वे जागरुक है, सशक्त हैं और अपने कर्तव्यों का भी बखूबी निर्वाह करती हैं। घर और बाहर दोनों ही जगह अपने दम पर अपना नाम ऊंचा करती हैं। अपने परिवार का सम्मान बढ़ती हैं। जीवन मार्ग में आने वाली बाधाओं को पार करके अपनी मंजिल की ओर सधे कदमों से आगे बढ़ती हैं। वे आर्थिक ,सामाजिक और मानसिक तौर पर मजबूत होती हैं ।अपने रिश्तों को निभाती हैं। अपने बच्चों की आदर्श होती हैं ।समाज में उसकी पहचान उसे सम्मान दिलाती है। आने वाला समय इन महिलाओं की संख्या को बढ़ाएगा। जो अपना जीवन स्वाभिमान, स्वावलंबन, साहस और सशक्तता से जीना सिखाएगा।
इन सबके साथ ही समाज में एक ऐसा महिला समूह भी है जो अपना अलग दृष्टिकोण रखती है । वे अधिकार मांगती नहीं अपितु छीन लेती हैं। वे कानून जानती हैं तो उसका फायदा उठाना भी उन्हें आता है। वे स्वतंत्रता से अधिक स्वच्छंदता की ओर ढलने लगती हैं । यह स्वच्छंदता समाज, परिवार और स्वयं का भी विनाश कर देती है। ऐसे में आवश्यक है की एक संतुलित जीवन शैली और संतुलित दृष्टिकोण को अपनाते हुए आज की नारी अपनी पहचान बनाएं। वह अपने विचार स्वतंत्र रखें परंतु स्वच्छंद होकर विनाश की ओर अपने कदम ना बढ़ाएं। उसकी सोच विकृत न हो।
भारतीय समाज में विवाह एक ऐसा संस्कार है ,जिसमें विश्वास रखने पर वह पवित्र बंधन जीवन को आदर्श बनाता है। अपने जीवन में उचित मार्ग का अनुकरण कर अनुचित का त्याग कर दे। अति महत्वाकांक्षा से स्वयं को बचाते हुए,उसे स्वावलंबी बनकर आगे बढ़ना है । समाज में फैली सड़ी –गली मान्यताओं और अंधविश्वासों को अपने जीवन से दूर कर आर्थिक रूप से सुदृढ़ होना है। परंतु इसके साथ ही परिवार को भी उतना ही महत्व देना है। नारी को अपनी दिशा और दशा दोनों ही स्वयं तय करनी होगी। राह से भटक कर सम्मान ही नहीं अपितु वह अपना अस्तित्व ही समाप्त कर लेगी ।नारी को शोषण की स्थिति के खिलाफ अपनी आवाज को बुलंद करना ही होगा । साथ ही अहंकार की परिधि से भी बचना होगा।शिक्षा के महत्व को समझकर आगे बढ़ना होगा।
उसे अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए अधिक भ्रमित ना होकर किसी की प्रशंसा अथवा मिथ्या बातों में ना फंसकर एक छल कपट से दूर स्वाभिमान की सीढ़ी पर आगे चलना होगा। छल कपट की आहट स्वयं पहचाननी होगी । दृढ़ता से सामना कर अपना अस्तित्व बचाना होगा। अभी सफर जारी है और लक्ष्य बहुत दूर ,उसे अपने लक्ष्य और जीवन की प्राथमिकताएं स्वयं तय करनी होगी। तभी वह सशक्त नारी कहलाएगी।
लेखक - डॉ. निर्मला शर्मा
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