जीवन अनमोल है , इसे आत्महत्या कर नष्ट नहीं करें !
सुबह की शुरुआत माता-पिता के चरण स्पर्श से करें !
संस्कार सृजन @ राम गोपाल सैनी
जयपुर (संस्कार सृजन) बाल विवाह यानि कम उम्र में लड़के लड़की को शादी के बंधन में बांधकर उन्हें ताउम्र बेड़ियों में जकड़ने जैसी और उनके जीवन को अंधकारमय बनाने जैसी सामाजिक विकृति है । इस चलन से समाज में अनैको समस्याओं और विकृतियों को जन्म मिलता है जो एक सभ्य समाज के लिए दंश है । उम्र से पहले लड़के लड़कियों को परिणय सूत्र में बांधकर, उन पर असमय बोझ डालना और उनका बचपन छीनना एक सामुहिक सामाजिक अपराध है । जिन नाजुक हाथों में कलम होनी चाहिए थी, उनमें जिम्मेदारियों का झाड़ू बेलन अथवा फावड़ा पराती थमा देना और सामाजिक रस्मों रिवाजों के तले दबा देना, उन नाबालिको के साथ किया गया घोर अपराध है । अतः अब वक्त आ चुका है कि हम सरकारी आंकड़ों की बजाए, धरातल पर सामाजिक कुरीति बाल विवाह को रोकने के लिए सामूहिक व समन्वित प्रयास करने होंगे ताकि सभ्य समाज को इस दंश से बचाया जा सके ।
शिक्षा का अंधियारा जहां, बाल विवाह का प्रचलन वहां :-
जिन समुदायों में बाल विवाह प्रथा प्रचलित है वहां छोटी उम्र में लड़के लड़की की शादी करना उन समुदायों की सामाजिक दृष्टिकोण का हिस्सा है। बाल विवाह के मामलों का गहराई से अध्ययन करने पर मालूम चलता है कि प्रदेश के जिन वर्गों में अशिक्षा व जागरूकता का अभाव है, उन समाजों में बाल विवाह का प्रचलन ज्यादा है ।राजस्थान के विशेषकर आदिवासी अंचल में जहां शिक्षा रूपी सूर्य का उजियारा होना बाकी है, उन क्षेत्रों में अक्सर बाल विवाह के मामले ज्यादा देखे जाते हैं । इन मामलों में सभ्य समाज व शासन प्रशासन की चुप्पी, इस बुराई या कुप्रथा को बढ़ावा देने का काम कर रही है । इसलिए बाल विवाह जैसी कुप्रथा पर अंकुश लगाने के लिए हर जनमानस में जागरूकता पैदा करनी होगी । खासतौर पर उन गूढ़ नकारात्मक सामाजिक प्रथाओं को चुनौती देकर, इस समस्या का समाधान ढूंढना होगा ।
बाल विवाह जैसी कुप्रथा में राजस्थान का प्रथम स्थान :-
संपूर्ण विश्व में भारत का बाल विवाह जैसी कुप्रथा को कायम रखने में दूसरे स्थान पर है । वहीं इसी रिकॉर्ड को ओर आगे बढ़ाते हुए समूचे देश भर में सबसे अधिक बाल विवाह राजस्थान में होते हैं । अकेले राजस्थान में 16 ऐसे जिले हैं जहां बाल विवाह की संख्या पिछले 5 सालों में और अधिक बढ़ी है, जिनमें दोसा, जयपुर, भीलवाड़ा, चूरु, झालावाड, टोंक, उदयपुर, करौली, चित्तौड़गढ़, नागौर, पाली, अलवर, बारा, सवाई माधोपुर, राजसमंद, आदि शामिल है । इस स्थिति को लेकर शासन-प्रशासन के साथ सभी सरकारी कर्मचारियों, जनप्रतिनिधियों एवं गैर सरकारी संगठनों को मिलकर, विशेषकर अबूझ सावो जैसे अक्षय तृतीया, पीपल पूर्णिमा, फलाहारा दूज, जानकी नवमी, देवउठनी ग्यारस आदि के अवसर पर विशेष सतर्कता दल गठित कर, उनकी प्रभावी निगरानी रखने की जरूरत है, ताकि इस कुप्रथा पर अंकुश लगाया जा सके ।
बाल विवाह रोकथाम के लिए कड़े कानून, फिर भी सफलता न्यून :-
बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 के तहत बाल विवाह करना या करवाना गैरकानूनी व दंडनीय अपराध है । जिसके तहत 21 वर्ष से कम उम्र के लड़के और 18 वर्ष से कम उम्र की लड़की की शादी बाल विवाह की श्रेणी में आती है । इस कानून की अवहेलना करने पर 2 साल का कारावास और 1,00,000 रुपए तक का जुर्माना वसूलने का प्रावधान है । बाल विवाह रोकथाम के लिए राजस्थान में अब बाल विवाह का भी रजिस्ट्रेशन अनिवार्य कर दिया गया है । इस राजस्थान अनिवार्य बाल विवाह पंजीकरण (संशोधन) विधेयक 2021 के तहत वर वधू के माता-पिता या अभिभावकों को शादी के 30 दिनों के भीतर जानकारी देनी होगी । ताकि इस प्रकार के परिवारों को राज्य सरकार की विभिन्न योजनाओं के लाभ से वंचित रखा जा सके ।
बाल विवाह एक सामाजिक अभिशाप, इसे रोकने के करने होगे प्रयास :-
प्रदेश में बाल विवाह रोकथाम के लिए ग्राम पंचायत स्तर से जिला स्तर तक सभी सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थाओं का सहयोग लेकर समन्वित प्रयास से अबूझ सावों की सीजन के समय स्पेशल टास्क फोर्स का गठन कर और सतर्कता बरत कर इस सामाजिक कुप्रथा से समाज को मुक्ति दिलाई जा सकती है । बाल विवाह को बढ़ावा देने वाले दोषी व्यक्तियों के खिलाफ गैर जमानती अपराध मानकर, उसके खिलाफ़ पोक्सो अधिनियम की विभिन्न धाराओं में मामले दर्ज किए जाने चाहिए । साथ ही बाल विवाह रोकथाम के लिए सभी ब्लॉक मुख्यालयों पर टोल फ्री नंबर जारी कर, उसकी प्रभावी मॉनिटरिंग करनी होगी । आमजन, धर्मगुरु, पंच पटेलों, जनप्रतिनिधियों, सरकारी और गैर सरकारी कर्मचारियों व पुलिस प्रशासन को इस अभियान में शामिल करते हुए, सभी की सहभागिता व जिम्मेदारी सुनिश्चित करनी होगी तथा सामाजिक संगोष्ठी, कला जत्थों, नाटक मंचन, काउंसलिंग, समझाइश, आदि के माध्यम से भी बाल विवाह के मामलों में कमी लाने के प्रयास किए जा सकते हैं।
बचपन में परिणय सूत्र का बंधन जहां, जीवन भर दुष्परिणाम वहां :-
विभिन्न सामाजिक संवर्गों में व्याप्त अंधविश्वास, रूढ़िवादिता, शिक्षा अभाव, निम्न आर्थिक स्थिति, लड़की की शादी को माता-पिता द्वारा अपने ऊपर एक बोझ समझने की स्थिति के चलते, बाल विवाह ज्यादा प्रचलन में है, जिसके दुष्परिणाम उनके प्रजनन स्वास्थ्य में गिरावट, शिशु व माता की मृत्यु दर में बढ़ोतरी, यौन उत्पीड़न के मामले, पारिवारिक हिंसा व झगड़े, महिला प्रताड़ना, तलाक, शारीरिक एवं मानसिक अत्याचार, बाल श्रम, आदि के रूप में देखने को मिलते हैं । इस प्रकार बचपन में बांधे गए परिणय सूत्र के यह धागे, उनके संपूर्ण जीवन में दुष्परिणामों के रूप में दृष्टिगोचर होते हैं ।
लेखक : कैलाश सामोता "रानीपुरा", पर्यावरणविद शिक्षक (ये लेखक के अपने विचार हैं)
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