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संस्कार न्यूज़ @ राम गोपाल सैनी
लाडनूं (संस्कार न्यूज़) स्थानीय प्राच्यविद्या एवं जैन संस्कृति संरक्षण संस्थान के तत्वावधान में एक दिवसीय राष्ट्रीय वेबीनार का आयोजन किया गया।
वेबिनार मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय उदयपुर के प्रो. जिनेन्द्र जैन की अध्यक्षता में हुए इस वेबिनार में मुख्य अतिथि महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्वविद्यालय अजमेर के पूर्व कुलपति एवं जयनारायण विश्वविद्यालय जोधपुर के डा. कैलाश सोडाणी रहे ।
प्रो. सोडाणी ने वेबिनार में कहा कि वायु और जल जीवन का आधार हैं। मानवीय लालच और बढ़ते परिग्रह के कारण ही पर्यावरण प्रदूषण का संकट है। जरूरी है कि संसाधनों का शोषण न हो। हम पर्यावरण संरक्षण को जीवनशैली का हिस्सा बनाएं तथा उसका कानूनी रूप से अमलीकरण हो। समाज को संवेदनशील बनाने के लिए ईमानदारी से प्रयास करना होगा। उन्होंने उपभोग वृत्ति को संयमित करने पर बल देते हुए कहा कि जैन मुनियों की 24 घंटे की समग्र दिनचर्या में अतिअल्प मात्रा में संसाधनों का उपयोग होता है, इससे प्रेरणा लेकर हमें संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग सुनिश्चित करना चाहिए।
विद्यमान हैं पर्यावरण की जीवन्त परम्पराएं
विशिष्ट अतिथि रामचन्द्र चन्द्रवंशी विश्वविद्यालय, विश्रामपुर पलामू (झारखण्ड) के कुलसचिव डॉ. गुलाब सिंह आजाद ने कहा कि भारतीय संस्कृति में पर्यावरण संरक्षण की विविध जीवंत परंपराएं विद्यमान हैं, जिनमें हमें विश्वास को दृढ़ बनाते हुए उसे कार्यरूप में परिणित करना है। जैन दर्शन भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है इसमें जीवों के प्रति वनस्पति के प्रति असीम करुणा हैं। इन सबका पारस्परिक अस्तित्व ही पर्यावरणीय संतुलन का आधार है। आप प्रकृति का ध्यान रखें तो प्रकृति आपके जीवन को कभी मायूस नहीं होने देगी आपको सदैव प्रफुल्लित रखेगी।
प्राचीन मान्यताओं का वैज्ञानिक रूप से समाधान आवश्यक
वेबिनार के अध्यक्ष डॉ. जिनेन्द्र जैन ने जैन दर्शन के अहिंसक पक्ष की व्याख्या करते हुए कहा कि पर्यावरण का क्षेत्र वृक्ष आदि तक मर्यादित नहीं है, अपितु हमारे जीवन को जो कुछ भी प्रभावित करता है वह समन्वित रूप से हमारा पर्यावरण है। तकनीकी सत्र के मुख्य अतिथि सुरेश जैन पूर्व आई.ए.एस. भोपाल ने कहा कि हमारा पर्यावरण अत्यन्त प्रदूषित हो रहा है। प्राचीन मान्यताओं का वैज्ञानिक रूप से विवेकपूर्ण रूप से समाधान करना आवश्यक है। अहिंसा आणविक युद्ध के लिए प्रभावी कवच प्रदान करती है। जैविक संतुलन को बनाए रखने के लिए ऋषभ देव ने सैद्धान्तिक अवाधरणा रखी। हम सभी भावना भाएं कि सभी सुखी हों, वर्षा समय पर हो, संसाधनों का दुरुपयोग और अति उपयोग न हो, इससे पर्यावरण संरक्षण हो सकता है। जैन साधु अपने जीवन में ईको जैनिज्म और एप्लाइड जैनिज्म को धारण करते हैं। वे अपने काष्ठ निर्मित कमंडल और मोर-पिच्छी रखते हैं, जो प्रकृति से सीधा सरोकार रखते हैं। प्रकृति संरक्षण में जैन संस्कृति की महत्वपूर्ण भूमिका है। जैन तीर्थंकर प्रकृति व पर्यावरण संरक्षण के विशेषज्ञ हैं।
अहिंसा के बिना संभव नहीं पर्यावरण संरक्षण
प्रो. अनेकान्त जैन नई दिल्ली ने अहिंसा की अनिवार्यता पर बल देते हुए कहा कि हम अहिंसा के बिना हम पर्यावरण संरक्षण की कल्पना नहीं कर सकते। हम वैचारिक मानसिक-वाचिक स्तर पर पर्यावरण को सुधारे ताकि समस्या के मूल में जाकर मानवीय मूल्य आधारित उपायों को खोजे। कोविड जैसी महामारी में अवसरवादियों द्वारा अनुचित व्यवहार धड़ल्ले से किया गया इस पर रोक लगाने की आवश्यकता है। डॉ. समुत कुमार जैन, राजेन्द्र महावीर ‘सनावत’, डॉ. अरविन्द जैन, डॉ. निर्मल कुमार जैन आदि ने भगवान महावीर की शिक्षा और संदेशों को पर्यावरण संरक्षण के लिए कारगर बताया। संस्थान के उपाध्यक्ष प्रो. लोकेश कुमार जैन ने प्रारम्भ में स्वागत एवं परिचय प्रस्तुत किया। डाॅ. रीना जैन ने मंगलाचरण प्रस्तुत किया। अंत में डाॅ. अशीष जैन ने आभार ज्ञापित किया।
वेबिनार में 250 लोग हुए शामिल
वेबीनार में देश भर से लगभग 250 प्रतिभागियों ने हिसा लिया। प्रो. सुषमा सिंघवी जयपुर, प्रो. प्रतिभा जे. मिश्रा बिलासपुर, डॉ. दिनेश कुमार मिश्रा पाली, डॉ. ज्योति बाबू जैन उदयपुर, डॉ सुधा जैन बनारस, डॉ. तारा डागा जयपुर, प्रो. सतीश जैन जबलपुर, डॉ नरेश चंद्र गोयल, डॉ. आनंद कुमार जैन बनारस, डॉ नजिया प्रवीण, डॉ अशोक गुप्ता, विकास जैन ललितपुर, डॉ प्रेमचंद जैन उदयपुर, डॉ. संतोष गुप्ता, डाॅ गजेंद्र जैन जयपुर, कैलाश चंद्र जैन जयपुर, राहुल जैन जयपुर, डॉ. गिरधारी लाल शर्मा, डॉ विजेंद्र प्रधान, प्रवीणा भाटी, डा. भारती कंवर, अब्दुल हमीद, एम.के. राणा, डी.के. जैन खतौली वेबिनार में उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन डाॅ मनीषा जैन व डाॅ. वीरचन्द्र जैन ने किया।
- Report - Jagdish Yayawar
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