कोरोना से भी घातक है यह बीमारी

जीवन अनमोल है इसे आत्महत्या कर नष्ट नहीं करें !

हम सब मिलकर ऑक्सीजन,बेड,इंजेक्शन और वेंटीलेटर दिलाएं !

मास्क लगाकर रहें ! सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखें !

संस्कार न्यूज़ राम गोपाल सैनी

दिल्ली (संस्कार न्यूज़) अस्थमा (दमा) एक आनुवांशिक रोग है जिसमें रोगी की सांस की नलियां अतिसंवेदनशील हो जाती हैं एवं कुछ कारकों के प्रभाव से उनमें सूजन आ जाती है जिससे रोगी को सांस लेने में कठिनाई होती है। ऐसे कारकों में धूल (घर या बाहर की) या पेपर की डस्ट, रसोई का धुआं, नमी, सीलन, मौसम परिवर्तन, सर्दी-जुकाम, धूमपान, फास्टफूड, मानसिक चिंता, व्यायाम, पेड़ पौधों एवं फूलों के परागकण, वायरस एवं बैक्टीरिया आदि के संक्रमण प्रमुख होते हैं।

बचपन में ही हो जाता है हावी: ग्लोबल बर्डन ऑफ अस्थमा रिपोर्ट के अनुसार, विश्व में लगभग 30 करोड़ लोग अस्थमा से पीड़ित हैं। भारत में यह संख्या तीन करोड़ के लगभग है। दो तिहाई से अधिक लोगों में अस्थमा बचपन से ही प्रारंभ हो जाता है। इसमें बच्चों को खांसी होना, सांस फूलना, सीने में भारीपन, छींक आना व नाक बहना तथा बच्चे का सही शारीरिक विकास न हो पाना जैसे लक्षण होते हैं। शेष एक तिहाई लोगों में अस्थमा के लक्षण युवावस्था में प्रारंभ होते हैं। इस तरह अस्थमा बचपन या युवावस्था में प्रारंभ होने वाला रोग है।

अस्थमा के इलाज में इनहेलर चिकित्सा सर्वश्रेष्ठ है, क्योंकि इसमें दवा की मात्रा का कम इस्तेमाल होता है। इसका असर सीधा एवं शीघ्र होता है एवं दवा के दुष्प्रभाव बहुत ही कम होते हैं। जब अस्थमा के कारक मरीज के संपर्क में आते है तो शरीर में मौजूद विभिन्न रसायनिक पदार्थ (जैसे हिस्टामीन) स्रावित होते हैं जिनसे सांस नलिकाएं संकुचित हो जाती हैं और इनकी भीतरी दीवार में लाली और सूजन आ जाती है और उनमें बलगम बनने लगता है। इन सभी से अस्थमा के लक्षण पैदा होते हैं तथा बार-बार कारकों के संपर्क में आने से इन नलिकाओं में स्थायी रूप से बदलाव हो जाते हैं।

तो हो जाएं सावधान

  • खांसी आना, रात में समस्या और गंभीर हो जाती है।
  • सांस लेने में कठिनाई, जोकि दौरों के रूप में तकलीफ देती हो।
  • सीने में कसाव/जकड़न।
  • सीने से घरघराहट जैसी आवाज आना।
  • गले से सीटी जैसी आवाज आना।
  • बार-बार जुकाम होना।

लापरवाही पड़ेगी भारी: अस्थमा के रोगी जो अपनी इनहेलर चिकित्सा ठीक से व नियमित रूप से नहीं लेते है, उनका अस्थमा अनियंत्रित रहता है। ऐसे मरीजों को कोरोना संक्रमण होने का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे लोग जो अस्थमा के साथ-साथ कोरोना संक्रमित भी हैं, उनको कोरोना की गंभीर समस्याएं हो जाती है। चूंकि अस्थमा एक सांस की नलियों एवं फेफडे़ की बीमारी है तथा कोरोना संक्रमण भी इन्हीं को प्रभावित करता है, जिससे ऐसे रोगियों में निमोनिया व एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्टेंर्स ंसड्रोम (ए.आर.डी.एस.) का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे रोगियो का अॉक्सीजन स्तर भी तेजी से कम होता है तथा वेंटीलेटर व आई.सी.यू. में इलाज की आवश्यकता भी बढ़ जाती है। इसके साथ ही गंभीर प्रभावों के कारण मृत्यु होने की आशंका भी बढ़ जाती है। अत: अस्थमा के रोगियों को अपनी चिकित्सा ठीक से करनी चाहिएव कोरोना संक्रमण के बचाव के सभी नियमों का पालन करना चाहिए।


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