जीवन अनमोल है , इसे आत्महत्या कर नष्ट नहीं करें !
मास्क लगाकर रहें ! सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखें !
संस्कार न्यूज़ @ राम गोपाल सैनी
नई दिल्ली (संस्कार न्यूज़ ) केंद्र के नए कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली सीमा पर डटे किसानों को हटाने से संबंधित याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में आज फिर सुनवाई हो रही है। गुरुवार को प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे ने कहा कि एक विरोध तब तक संवैधानिक है जब तक वह संपत्ति या जीवन को नुकसान नहीं पहुंचता। केंद्र और किसानों को बात करनी होगी। हम एक निष्पक्ष और स्वतंत्र समिति बनाने के बारे में सोच रहे हैं, जिसके समक्ष दोनों पक्ष अपनी बात रख सकें। समिति एक निष्कर्ष देगी, जिसका पालन किया जाना चाहिए। इस बीच विरोध जारी रह सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि स्वतंत्र समिति में पी साईनाथ, भारतीय किसान यूनियन और अन्य सदस्य हो सकते हैं। किसान हिंसा को भड़का नहीं सकते और न ही इस तरह एक शहर को अवरुद्ध कर सकते हैं।
केंद्र और पंजाब सरकार का पक्ष
अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने गुरुवार को सुनवाई के दौरान कहा कि प्रदर्शनकारी किसानों में से कोई भी फेस मास्क नहीं पहनता है। वे बड़ी संख्या में एक साथ बैठते हैं। कोरोना वायरस एक चिंता का विषय है। वे गांवों जाएंगे और इसे वहां फैलाएंगे। किसान दूसरों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं कर सकते। पंजाब सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ वकिल पी चिदंबरम कई किसान पंजाब से हैं। कोर्ट के इस सुझाव पर राज्य को कोई आपत्ति नहीं है कि लोगों का एक समूह किसानों और केंद्र के बीच संवाद की सुविधा प्रदान कर सकता है। यह किसानों और केंद्र को तय करना है कि समिति में कौन होगा।
इससे पहले बुधवार को सुनवाई के दौरान किसान और सरकार में विवाद सुलझाने के लिए शीर्ष अदालत ने कमेटी गठित करने का संकेत दिया। कमेटी में सरकार और किसान संगठनों के प्रतिनिधि शामिल होंगे। अदालत ने इस संबंध में केंद्र, हरियाणा व पंजाब सरकारों एवं किसान संगठनों को नोटिस जारी कर संबंधित पक्षों से एक दिन में जवाब देने को कहा है। प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने रिषभ शर्मा, रीपक कंसल और जीएस मणि की याचिकाओं पर सुनवाई की। इस मामले में कोर्ट ने आठ किसान संगठनों को भी पक्षकार बनाते हुए नोटिस जारी किया है।
कई दौर की बातचीत रही है बेनतीजा
उल्लेखनीय है कि किसानों के साथ सरकार कई दौर की वार्ता कर चुकी है, लेकिन अभी तक कोई हल नहीं निकला है, क्योंकि किसान तीनों कानून वापस लेने की जिद पर अड़े हैं। सरकार की ओर से पहले कमेटी बनाने की बात कही गई थी। उस पर किसान संगठन राजी नहीं हुए तो सरकार की ओर से ऐसे प्रावधानों में संशोधन भी सुझाए गए, जिन्हें लेकर किसानों में आशंका हो सकती है। सरकार के संशोधन प्रस्ताव के बाद भी किसानों की तरफ से अब तक वार्ता के लिए हामी नहीं भरी गई है।
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