डाक टिकट इतिहास, संस्कृति और संग्रहण की अनमोल धरोहर :- अजय गर्ग

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संस्कार सृजन राम गोपाल सैनी 

जयपुर (संस्कार सृजन) डाक टिकट केवल डाक सेवा का हिस्सा नहीं, बल्कि यह राष्ट्र की पहचान, गौरव और इतिहास का जीवंत दस्तावेज़ है। भारत जैसे विविधताओं से भरे देश में डाक टिकटों की दुनिया बेहद रंगीन और विशाल है। हर टिकट एक कहानी कहता है, हर टिकट में इतिहास की छवि झलकती है।

भारतीय डाक टिकट का इतिहास - भारत में डाक टिकट का इतिहास 1852 से शुरू होता है, जब सिंध प्रांत (कराची क्षेत्र) में “सिंधे डॉक नामक टिकट जारी किया गया। यह एशिया का पहला डाक टिकट माना जाता है। इसके बाद 1854 में पूरे भारत के लिए टिकट जारी हुए, जिन पर महारानी विक्टोरिया का चित्र अंकित था। यही भारत के पहले नियमित डाक टिकट थे। 

स्वतंत्रता से पहले तक भारतीय डाक टिकटों पर अंग्रेज शासकों की छवियाँ छपती थीं। लेकिन 15 अगस्त 1947 को आज़ाद भारत का पहला डाक टिकट जारी हुआ, जिसमें भारत का राष्ट्रीय ध्वज दर्शाया गया था। यही टिकट स्वतंत्र भारत की नई पहचान बना।

स्वतंत्र भारत के डाक टिकट - आज़ादी के बाद भारतीय डाक विभाग ने कई महत्वपूर्ण विषयों पर टिकट जारी किए – राष्ट्रीय नेता और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, महान वैज्ञानिक और साहित्यकार, प्राकृतिक धरोहर और वन्यजीवन, खेल-कूद और ओलंपिक, अंतरिक्ष और तकनीकी उपलब्धियाँ इन टिकटों के जरिए भारत ने अपनी समृद्ध संस्कृति, परंपरा और उपलब्धियों को पूरी दुनिया के सामने रखा।

11 फरवरी 2023 “आज़ादी का अमृत महोत्सव” भारत की 75वीं आज़ादी के अवसर पर जारी किया गया विशेष स्मृति डाक टिकट। 

14 सितंबर 2024 हिंदी भाषा को राजभाषा के रूप में स्वीकार किए जाने की 75वीं वर्षगांठ इस अवसर पर डाक विभाग ने एक विशेष स्मृति डाक टिकट जारी किया। 

23 अगस्त 2023 चंद्रयान -3 अभिलाषा बेंगलुरु काल से एक विशेष आवरण (विशेष कवर) जारी किया गया था, ताकि चंद्रयान-3 की सफलता को सम्मानित किया जा सके। 

मार्च 2023 भारत-लक्ज़मबर्ग 75 वर्ष राजनयिक संबंध भारत और लक्ज़मबर्ग के बीच राजनयिक संबंधों की 75वीं वर्षगांठ पर संयुक्त स्मृति डाक टिकट जारी किया गया। 

2021–2025 का काल विभिन्न विषयों पर जारी डाक टिकट भारत में 2021–2025 के बीच कई नए डाक टिकट जारी हुए, जैसे “जियोमेट्रिकल इंडिकेशन्स (भौगोलिक संकेत)”, “225 गौरवशाली वर्ष – द्वितीय बटालियन पैराशूट रेजिमेंट”,आदि। 

समकालीन की झलक — हाल की स्मृति टिकटें

आज भी भारतीय डाक विभाग समय-समय पर ऐसे विषयों पर स्मृति टिकट / विशेष आवरण जारी करता है, जो इतिहास, विज्ञान, भाषा और अंतरराष्ट्रीय संबंधों को दर्शाते हैं। 75वीं आज़ादी, हिंदी राजभाषा, चंद्रयान-3 की सफलता, भारत-लक्ज़मबर्ग संबंध जैसी विषयों पर जारी ये टिकट इस शौक को नई ऊर्जा देते हैं और यह दिखाते हैं कि यह क्षेत्र आज भी विकसित हो रहा है।

दुर्लभ और ऐतिहासिक टिकट - कुछ भारतीय डाक टिकट अपनी ऐतिहासिक और दुर्लभता के कारण आज संग्रहकर्ताओं के लिए बहुमूल्य धरोहर हैं।

सिंध प्रांत (1852): मोम जैसी सामग्री से बना यह टिकट एशिया का पहला टिकट था, जो आज बेहद दुर्लभ है।

उल्टा सिर चार आना (1854): इसमें रंग छपाई की गलती के कारण सिर उल्टा छप गया था, और यही इसे दुर्लभ और कीमती बनाता है।

भारत का पहला स्वतंत्रता टिकट (1947): राष्ट्रीय ध्वज वाला टिकट आज भी हर संग्रह का गौरव है।

फिलैटलिक प्रदर्शनी और संग्रहण - भारतीय डाक विभाग समय-समय पर फिलैटलिक प्रदर्शनी (डाक टिकट प्रदर्शनियाँ) आयोजित करता है, जहां संग्रहकर्ता अपने संग्रह को प्रदर्शित करते हैं। यह आयोजन नई पीढ़ी को डाक टिकटों की जानकारी देने और उनमें रुचि जगाने का बेहतरीन माध्यम है।

डाक टिकट संग्रह का महत्व - डाक टिकट संग्रह (फिलाटेली) केवल शौक नहीं, बल्कि यह व्यक्ति के व्यक्तित्व को भी निखारता है:

यह ज्ञानवर्धक है, क्योंकि इसमें इतिहास, कला, भूगोल और संस्कृति का अध्ययन जुड़ा है। यह तनाव से मुक्ति देता है और संग्रहकर्ता को एक नई दुनिया में ले जाता है | यह अंतरराष्ट्रीय जुड़ाव कराता है, क्योंकि टिकट एक देश को दूसरे देश से जोड़ते हैं। यह निवेश का साधन है, क्योंकि दुर्लभ टिकट समय के साथ अत्यधिक मूल्यवान हो जाते हैं।

अजय गर्ग: डाक टिकट संग्रह की प्रेरणा - भारतीय डाक टिकट संग्रह की दुनिया में बाड़ी धौलपुर के अजय गर्ग एक प्रमुख नाम हैं। उनका मानना है कि – “डाक टिकट केवल कागज का टुकड़ा नहीं, बल्कि राष्ट्र की आत्मा का दर्पण है।”

उनके पास स्वतंत्रता संग्राम, आज़ादी से पहले और बाद के दौर, तथा अंतरराष्ट्रीय डाक टिकटों का समृद्ध संग्रह है। वे नई पीढ़ी को इस शौक से जोड़ने और इसके महत्व को समझाने में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं |

सरकार से अपेक्षा - आज डिजिटल युग में डाक सेवाएँ बदल रही हैं और पत्र-व्यवहार की जगह ईमेल और मैसेज ने ले ली है। लेकिन डाक टिकट का महत्व आज भी कम नहीं हुआ। सरकार को चाहिए कि वह कम मूल्य वर्ग के डाक टिकट जारी करे ताकि आम लोग और बच्चे आसानी से इन्हें खरीदकर संग्रह कर सकें।

हर वर्ष स्मृति डाक टिकट कम संख्या में जारी हों, ताकि वे संग्रहकर्ताओं के लिए मूल्यवान बनें। स्कूलों और कॉलेजों में फिलैटलिक क्लब बनाए जाएँ, जिससे नई पीढ़ी में इस शौक की रुचि बढ़े।

निष्कर्ष - भारतीय डाक टिकट हमारी संस्कृति, विरासत और उपलब्धियों का आईना हैं। यह सिर्फ कागज नहीं, बल्कि इतिहास की जीवंत तस्वीर है। इस शौक को बचाए रखना हम सबकी जिम्मेदारी है। सरकार, समाज और संग्रहकर्ताओं के सहयोग से डाक टिकटों की यह परंपरा नई पीढ़ी तक पहुँचेगी।

और जब इस धरोहर की बात आती है तो अजय गर्ग जैसे संग्रहकर्ता नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा हैं, जिन्होंने अपने जुनून और समर्पण से डाक टिकट संग्रह को एक नई ऊँचाई दी है।

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