रक्षा बंधन : भाई-बहन के परस्पर स्नेह और सुरक्षा का प्रतीक

जीवन अनमोल है इसे आत्महत्या कर नष्ट नहीं करें !

सुबह की शुरुआत माता-पिता के चरण स्पर्श से करें !

संस्कार सृजन राम गोपाल सैनी        

जयपुर (संस्कार सृजन) भारत त्योहारों का देश है। एक ऐसा देश जहां विभिन्न संस्कृक्तियाँ, धर्म, संप्रदाय एक साथ फल-फूल रहे हैं। रक्षाबंधन का त्योहार भाई-बहन के परस्पर प्रेम स्नेह और सुरक्षा का प्रतीक पर्व है। तमाम विविधताओं के बावजूद रक्षाबंधन एक ऐसा त्योहार है, जो धर्म, संप्रदाय और संस्कृतियों की सभी दीवारों को तोड़ कर सभी त्योहारों के बीच एक अलग ही स्थान रखता है।


अपने सांस्कृतिक मूल्यों और प्रेमभाव की वजह से देशभर में रक्षाबंधन को सभी उत्साह से मनाते हैं। रक्षा बंधन का त्योहार हर साल सावन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। रक्षां बंधन का त्योहार भाई बहन के अनमोल प्रेम का प्रतीक है। इसलिए हर साल रक्षा बंधन के दिन बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी बांधकर उनके लंबी उम्र और कुशलता की कामना करती हैं। रक्षा बंधन के दिन भाई भी अपनी बहन को रक्षा का वचन देता है।

एक कथा के अनुसार द्रौपदी ने भगवान कृष्ण के हाथ पर चोट लगने पर, अपने साड़ी का एक हिस्सा फाड़‌कर उनके हाथों पर बांध दिया था, जिसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने द्रौपदी को उसकी रक्षा का वचन दिया था। ऐसे में जब द्रौपदी चीरहरण किया जा रहा था, तब भगवान श्री कृष्ण ने द्रौपदी की रक्षा कर, अपना वचन पूरा किया। 

एक अन्य लोकप्रिय कहानी यह है कि इस दिन चित्तौड़ की रानी कर्णावती ने मुगल सम्राट हुमायूँ को रक्षाबंधन भिजवाया था, जिसके बाद हुमायूँ ने अपने भाई होने का कर्तव्य निभाते हुए गुजरात के सम्राट से चित्तौड़ की रक्षा में रानी कर्णावती की मदद की थी। हालांकि रक्षाबंधन के बारे में कहा जाता है कि यह प्रमुख तौर पर हिंदुओं का त्योहार है, लेकिन इस त्योहार की उत्पत्ति की एक कहानी जैन धर्म से भी जुड़ी है जिसके अनुसार विष्णुकुमार नामक मुनिराज ने इस दिन 700 जैन मुनियों की रक्षा की थी जिसके बाद से ही सभी समाजों में रक्षाबंधन मनाने का सिलसिला शुरू हुआ। ऐसा भी कहा जाता है कि युद्ध के लिए जाने से पहले रक्षा के लिए राजा और उनके सैनिकों के हाथों में उनकी पत्नी और बहनें अनिवार्य रूप से राखी बांधा करती थी। ऐसी मान्यता है कि राखी बांधने से भाइयों के उपर आने वाला संकट टल जाता है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार भद्राकाल का समय अशुभ होता है क्योंकि भद्रा शनिदेव की बहन हैं। ऐसी मान्यता है जब माता छाया के गर्भ से भद्रा का जन्म हुआ तो समूची सृष्टि में तबाही होने लगी और वे सृष्टि को तहस-नहस करते हुए निगलने लगीं। सृष्टि में जहां पर भी किसी तरह का शुभ और मांगलिक कार्य संपन्न होता भद्रा वहां पर पहुंच कर सब कुछ नष्ट कर देती। इस कारण से भद्रा काल को अशुभ माना गया है। ऐसे में भद्रा काल होने पर राखी नहीं बांधनी चाहिए। इसके अलावा भी एक अन्य कथा है। रावण की बहन ने भद्राकाल में राखी बांधी जिस कारण से रावण के साम्राज्य का विनाश हो गया है। इस कारण से जब भी रक्षा बंधन के समय भद्राकाल होती है उस दौरान राखी नहीं बांधी जाती है। यह पर्व न सिर्फ भाई और बहनों के बीच मौजूद प्रेम को और भी गहरा करता है, बल्कि जीवन भर उनके साथ इसकी यादें भी जडी रहती हैं, जिसकी वजह से उन्हें कभी भी अकेलेपन का एहसास नहीं होता है और सामाजिक समरसता का भाव बना रहता है।

आलेख : डॉ. राकेश वशिष्ठ 

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