पत्रकार सुरक्षा कानून पत्रकारों की न्यायोचित मांग कठोर कानून के साथ लागू हो

जीवन अनमोल है , इसे आत्महत्या कर नष्ट नहीं करें !

सुबह की शुरुआत माता-पिता के चरण स्पर्श से करें !

संस्कार सृजन राम गोपाल सैनी

जयपुर (संस्कार सृजन) पत्रकारिता को लोकतन्त्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है यहां पत्रकारिता समाज के विभिन्न पहलुओं को उजागर करने, सच्चाई सामने लाने और सत्ता के विभिन्न स्तरों की जिम्मेदारी तय करने का काम  करती है। पत्रकारों की सुरक्षा के लिए एक मजबूत कानून की तत्काल आवश्यकता है। यह कानून पत्रकारों को हिंसा, उत्पीड़न और धमकियों से बचाने के साथ-साथ उनकी स्वतंत्रता और निष्पक्षता की रक्षा करेगा। पत्रकारों की सुरक्षा पत्रकारों और मीडिया पेशेवरों की शारीरिक या नैतिक खतरों का सामना किए बिना सूचना प्राप्त करने, उत्पादन करने और साझा करने की क्षमता है।  दुनिया भर के पत्रकारों को अपने काम के परिणामस्वरूप गंभीर खतरों का सामना करना पड़ता है। सरकारें और अन्य शक्तिशाली लोग, जाँच से बचने और असहमति को दबाने के लिए, अक्सर आलोचनात्मक रिपोर्टिंग या सक्रियता का जवाब उन्हें चुप कराने की कोशिशों के साथ देते हैं।

पत्रकारों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर हमलों को रोकने, उनसे सुरक्षा प्रदान करने और उन पर मुकदमा चलाने की ज़िम्मेदारी राज्यों की है। उनके काम के लिए एक सुरक्षित और सक्षम वातावरण बनाने के लिए कानूनी सुधार, विशेष सुरक्षा तंत्रों का निर्माण और हमलों के मामलों में प्रभावी जाँच और अभियोजन के लिए प्रोटोकॉल आवश्यक हैं।

पत्रकारों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अपने मौलिक अधिकार का प्रयोग करने के लिए हिंसा और धमकी का सामना करना पड़ सकता है । उनके सामने आने वाले खतरों में हत्या, अपहरण , बंधक बनाना, ऑफलाइन और ऑनलाइन उत्पीड़न, धमकी, जबरन गायब कर दिया जाना, मनमाने ढंग से हिरासत में लेना और यातना शामिल हैं। महिला पत्रकारों को भी विशिष्ट खतरों का सामना करना पड़ता है और वे विशेष रूप से यौन उत्पीड़न की चपेट में आती हैं, चाहे वह लक्षित यौन उल्लंघन के रूप में हो, जो अक्सर उनके काम के बदले में होता है; सार्वजनिक कार्यक्रमों को कवर करने वाले पत्रकारों के खिलाफ भीड़ द्वारा की जाने वाली यौन हिंसा; या हिरासत या कैद में पत्रकारों का यौन शोषण। इनमें से कई अपराध शक्तिशाली सांस्कृतिक और पेशेवर कलंक के परिणामस्वरूप रिपोर्ट नहीं किए जाते हैं।

भारत में पत्रकारों पर हमले बढ़ते जा रहे हैं। सरकारी अधिकारियों, शक्तिशाली नेताओं, माफिया और अन्य असामाजिक तत्वों द्वारा पत्रकारों को धमकी दी जाती है, उनकी स्वतंत्रता को कुचला जाता है और उन्हें शारीरिक हमलों का सामना करना पड़ता है। यह घटनाएँ न केवल पत्रकारों की व्यक्तिगत सुरक्षा को खतरे में डालती हैं, बल्कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया और समाज में स्वतंत्र विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता को भी चुनौती देती हैं।

पत्रकारों और विशेष रूप से महिला पत्रकारों को ऑनलाइन दुर्व्यवहार और उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है, जैसे कि अभद्र भाषा, साइबर-धमकी, साइबर-स्टॉकिंग, डॉक्सिंग, ट्रोलिंग, सार्वजनिक रूप से शर्मसार करना, धमकी और धमकी इत्यादि का सामना करना पड़ता है। स्वतंत्र और निष्पक्ष पत्रकारिता लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है। पत्रकारों को बिना किसी डर के काम करने में सक्षम बनाने के लिए, उन्हें सुरक्षा प्रदान करना आवश्यक है।

पत्रकारों पर हमले, उत्पीड़न और धमकियों की घटनाएं बढ़ रही हैं, जिससे उनके काम में बाधा आ रही है और जनता को सही जानकारी मिलने में मुश्किल हो रही है। भारत में पत्रकारों की सुरक्षा के लिए कोई विशिष्ट कानून नहीं है, जिससे उन्हें कानूनी सुरक्षा की कमी महसूस होती है। कई देशों में पत्रकारों की सुरक्षा के लिए कानून मौजूद हैं, और भारत को भी ऐसा कानून बनाना चाहिए ताकि वह अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप हो सके सुरक्षा कानून पत्रकारों को आत्म-सेंसरशिप से बचने और बिना किसी डर के सच बोलने के लिए प्रोत्साहित करेगा। 

जब पत्रकारों को अपनी जान का खतरा महसूस होगा, तो वे अपनी रिपोर्टिंग में डर और संकोच करेंगे, जिससे मीडिया की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर सवाल उठेंगे। एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत को "विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक" में 161वें स्थान पर रखा गया है। यह इस बात का संकेत है कि पत्रकारों के खिलाफ हिंसा और उत्पीड़न की घटनाओं में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। पत्रकार सुरक्षा कानून लागू होने से उन पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकेगी, जो जीवन को खतरे में डालकर पत्रकारिता कर रहे हैं। भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों, माफिया, नेताओं और अपराधिक तत्वों को उजागर करने वाले पत्रकारों के लिए सुरक्षा आवश्यक है।

हमेशा से ही मीडिया में घोटाले उजागर होने के बाद अखबारों के दफ्तरों पर हमला होते रहे हैं अभी हाल ही में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में तो पुलिस खुद पत्रकार की हत्या में लिप्त पाई गई। पत्रकार के जीवन पर छाये हर पल खतरे को देखते हुए एक विशिष्ट कानून की जरूरत है जिससे कानून और व्यवस्था से जुड़े अधिकारी डर के बिना अपनी जिम्मेदारी निभा सकें। देश में मीडिया की वर्तमान स्थिति का अध्ययन करने के लिए मीडिया आयोग के गठन की मांग की गई। 1978 में गठित द्वितीय प्रेस आयोग के बाद से मीडिया में बहुत बदलाव आया है। टीवी न्यूज चैनलों, ऑनलाइन मीडिया, मोबाइल फोन आदि ने पूरी तरह से देश में मीडिया का परिदृश्य बदल दिया है। मीडिया और पत्रकारों के सामने आज जो चुनौतियां है वह बहुत बदल गई हैं। आधिकारिक तौर पर वास्तविक स्थिति को समझने के लिए अभी तक किसी प्रकार का अध्ययन नहीं किया गया है।

 इस समय देश मीडिया काउंसिल के गठन की जरूरत महसूस की जा रही है। भारतीय प्रेस परिषद (पीसीआई) मीडिया से संबंधित मुद्दों से निपटने के लिए अप्रभावी साबित हो रहा है पीसीआई मीडिया की बदलती जरूरतों को पूरा करने में नाकाम रही है यह एक बूढ़े बिना दांत वाले शेर की तरह है। देश की तत्काल चुनौतियों और बदलते मीडिया के लिये एक शक्तिशाली मीडिया काउंसिल की जरूरत है।

पत्रकारों को शारीरिक और ऑनलाइन हमलों से बचाने के लिए सुरक्षा उपाय शामिल होने चाहिए। धमकी और उत्पीड़न के खिलाफ पत्रकारों को धमकी और उत्पीड़न के खिलाफ कानूनी सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए। पत्रकारों के खिलाफ अपराधों की त्वरित और प्रभावी जांच और अभियोजन सुनिश्चित किया जाना चाहिए पत्रकारों के संवैधानिक अधिकारों, जैसे कि भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा की जानी चाहिए। पत्रकारों को नियमों और विनियमों का पालन करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, लेकिन यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि ये नियम उनके काम में बाधा न बनें। 

पत्रकार सुरक्षा कानून एक आवश्यक कदम है जो पत्रकारों को सुरक्षित और स्वतंत्र रूप से काम करने में सक्षम बनाएगा, जिससे लोकतंत्र मजबूत होगा और जनता को सही जानकारी मिलेगी। यह कानून पत्रकारों के साथ-साथ आम जनता के लिए भी फायदेमंद होगा। यह कानून पत्रकारों के बीच विश्वास और आत्मविश्वास पैदा करेगा। यह कानून प्रेस की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को सुनिश्चित करेगा। यह कानून भारत को एक मजबूत और स्वस्थ लोकतंत्र बनाने में मदद करेगा। सरकार इस बारे में सक्रियता से और पत्रकारों के प्रति संवेदीय दृष्टिकोण रखते हैं तुरंत कठोरतम पत्रकार सुरक्षा कानून लागू करे।

आलेख : डॉ राकेश वशिष्ठ, वरिष्ठ पत्रकार एवं संपादकीय लेखक 

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