निर्जला एकादशी के दिन कहां जलाने चाहिए दीपक

जीवन अनमोल है इसे आत्महत्या कर नष्ट नहीं करें !

सुबह की शुरुआत माता-पिता के चरण स्पर्श से करें !

संस्कार सृजन राम गोपाल सैनी

जयपुर (संस्कार सृजन) ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को पड़ने वाला यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है। मान्यता है कि निर्जला एकादशी का व्रत रखने से साल की सभी 24 एकादशियों का फल प्राप्त होता है। ऐसा कहा जाता है कि इस व्रत के करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं, वो बैकुंठ धाम को जाता है।


अंतर्राष्ट्रीय भविष्यवक्ता पंडित रविन्द्राचार्य के अनुसार सूर्योदय से सूर्यास्त तक बिना जल के व्रत करने से वर्ष भर की सभी एकादशियों का फल प्राप्त होता है। इस एकादशी को भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। यह एकादशी का व्रत जितना फलदायी है, उतना ही कठिन भी है।निर्जला एकादशी व्रत का पूरे सालभर तक लोग इंतजार करते हैं, क्योंकि यह व्रत पूरे साल की एकादशी का फल एकबार में दे देता है।
अंतर्राष्ट्रीय भविष्यवक्ता पंडित रविन्द्राचार्य

 
निर्जला एकादशी व्रत पर कहां जलाए दीपक:-

इस दिन पहले व्रत का संकल्प लेना चाहिए और फिर व्रत कथा का पाठ करना चाहिए। इस दिन शाम के समय चार दीपक जलाने चाहिए। पहला दीपक अपने मंदिर में श्री हरि के सामने जलाएं। दूसरा दीपक पितरों का जलाना चाहिए। यह दीपक आप मंदिर में पीपल के पेड़ के नीचे भी जला सकते हैं। तीसरा दीपक अपनी देहरी पर जलाना चाहिए। इसके बाद तुलसी में भी शाम के समय दीपक जलाना चाहिए |

निर्जला एकादशी व्रत की तिथि पर कंफ्यूजन क्यों:-

एकादशी का व्रत ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी तिथि को रखते हैं। लेकिन कई बार तिथि और हरिवासर समय की वजह से एकादशी व्रत दो दिनों का हो जाता है। इस वजह से लोगों में संशय की स्थिति बन जाती है। इस साल निर्जला एकादशी तिथि आज 6 जून शुक्रवार सुबह 2:15 बजे से शुरू हो चुकी है जोकि 7 जून शनिवार को सूर्योदय से पूर्व ही 4:47 पर समाप्त हो जाएगी। ऐसे में उदयातिथि एवं दशमी भेदी न होने के कारण गृहस्थ एवं वैष्णव जनों का निर्विवाद रूप से निर्जला एकादशी का व्रत आज 6 जून को रहेगा। 

निर्जला एकादशी व्रत पर क्या दान करें:- 

निर्जला एकादशी के दिन जल का विशेष महत्व होता है। इस दिन मिट्टी या तांबे के पात्र में जल भरकर दान देना अत्यंत पुण्यदायी माना गया है। आपकी जितनी सामर्ध्य हो, उसके हिसाब से जल दान करें। जल को जीवनदाता और पापनाशक कहा गया है। जलदान से प्यासे प्राणियों की सेवा होती है और व्यक्ति के जीवन में शांति और सुख की वृद्धि होती है। गर्मी के मौसम में इसका दान करना उत्तम रहता है।

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