राधास्वामी सत्संग सहजो में हुआ विशाल सत्संग एवं भंडारे का आयोजन

जीवन अनमोल है इसे आत्महत्या कर नष्ट नहीं करें !

सुबह की शुरुआत माता-पिता के चरण स्पर्श से करें !

संस्कार सृजन राम गोपाल सैनी

चौमूं / जयपुर (संस्कार सृजन) राधास्वामी सत्संग सहजो चौमूं ट्रस्ट डेरा बाबा मेघादास महाराज तपोभूमि के तत्वावधान में आज परम संत सहजो बाई महाराज की 22वीं पुण्यतिथि पर विशाल सत्संग एवं भंडारे का आयोजन किया गया | जिसमें संत सेवादास महाराज ने अपने प्रवचनों में सहजो बाई महाराज के जीवन पर प्रकाश डाला |


उन्होंने बताया कि बाईजी महाराज का जन्म सन 1910 में मध्य प्रदेश के इंदौर जिला में हुआ था | जब आपका नामकरण रखा गया तब ज्योतिषी ने बताया था कि यह बाई जी तो आगे चलकर एक महान संत का रूप धारण करेंगी | बाई जी महाराज का परमार्थ की तरफ बचपन से ही झुकाव था | आपके माता-पिता साधु संतों की अटूट सेवा किया करते थे | थोड़ी सांसारिक शिक्षा भी अपने प्राप्त की जब आप 14 वर्ष की अवस्था हुई तब आपका विवाह कर दिया था लेकिन आपका मन गृहस्थ में नहीं लगता था जिसके कारण ससुराल वाले प्रसन्न नहीं थे | लेकिन आप इन परिस्थितियों से बिल्कुल भी नहीं घबराये, बाबा मेघादास महाराज आपके माता-पिता के परिवार में भी आया जाया करते थे, इसलिए आपको पहचानने में देर नहीं लगी और बाबा  ने कहा यहां के काम के साथ-साथ तुझे परमार्थ का भी कार्य करना होगा लेकिन यह भाषा आप समझ नहीं पाए, एक-दो साल बीतने पर फिर अचानक बाबा मेघा दास महाराज पधारे तो आपने उस समय नाम की दीक्षा ली और शब्द खुला तो एकदम वैराग्य उत्पन्न हो गया | आपको गृहस्थ जीवन से भी मोह भंग हो गया | 

अपनी लगन एवं श्रद्धा से लोगों व संगत में सदउपदेश देने लगे धीरे-धीरे आपकी ख्याति दूर-दूर तक फैलने लगी | सन 1940 में अपने ससुराल से भी मुख मोड़ लिया | उस समय आपकी आयु 32 वर्ष के करीब थी आप दूर जाकर लोगों को शिक्षा देने लगे तथा राधा स्वामी नाम का प्रचार प्रसार करने लगे | तब अपने गुरु बाबा मेघादास के शरण में आ गए | जब बाबा ने देखा तो मुस्कुरा कर कहा हमने तो पहले ही कहा था कि तुम्हें आध्यात्मिक कार्य के वास्ते ही यहां इस लोक में आना पड़ा है | आप सत्संग के माध्यम से यह कहा करते थे कि जग में कैसे रहना चाहिए | आप सत्संग प्रवचनों में कहा करते थे, सहजो जग में यूं रहो, ज्यों जिव्हा मुख माही, घी घनों भक्षण करे तो भी चिकनी नाहीं | जिस प्रकार ग्रीष्म ऋतु में बादल अपनी बरसात करके धरती पर शीतलता की फुहार छोड़कर धरती व वहां निवास करने वाले जीवो  को  ठंडक प्रदान करते हैं ,उसी प्रकार संत महात्मा भी समय-समय पर जब जीवों को आज के इस भौतिक युग की चकाचौंध में जीव असंतुलित एवं भ्रमित हो रहे हैं उन्हें परमात्मा की दया से सत्संग रूपी शीतलता की फुहारो द्वारा, परम संतों का सत्संग सुनने का शुभ अवसर मिलता है | ऐसे सभी जीव परम सौभाग्यशाली हैं, बड़े भाग मानुष तन पावा, कोटी जन्म जब भटका खावा |

इस संसार में 84 लाख योनियों के पश्चात मानव जन्म का शुभ अवसर मिलता है जिससे हम पाकर बहुत धन्य होते हैं इस मानव जन्म के लिए देवी देवताओं को भी परमात्मा से विनती करनी पड़ती है क्योंकि इसमें वह मालिक की भक्ति का पूरा लाभ उठा सकता है जो अन्य योनियों में सुलभ नहीं है | आध्यात्मिकता में प्रवेश के लिए सत्संग एक रास्ता है जिसमें होकर हम मालिक की भक्ति का मार्ग अपना सकते हैं जिसके लिए वक्त गुरु की शरण में जाकर नाम दीक्षा लेनी होती है उसके पश्चात गुरुद्वारा बताए गए रास्ते का अनुसरण कर भजन सुमिरन ध्यान के माध्यम से हम उसमें आगे बढ़ते हैं और धीरे-धीरे इसमें प्रगति होती जाती है जब शब्द में रास आने लगता है तो हमें इस लौकिक युग में कई चमत्कार नजर आने लगते हैं क्योंकि यह मन एक महा शक्तिशाली है जो आत्मा के साथ मिलकर भजन का रस मिलने लगता है तो यह है जीव को आध्यात्मिकता की विभिन्न ऊंचाइयों पर पहुंचा देता है |

संतों ने कहा है मन है बड़ा गंवार ,थके सभी उपाय कर मन बेरी को मीत कर, गुरु बिन चले ना दाव अर्थात इस मन को मित्र बनाकर वक्त गुरुद्वारा दिए गए सबद आत्मा के साथ भजन सुमिरन में लगा देते हैं तो हमारा लोक एवं  परलोक सुधरता है | इस संसार में जीव एन अनावश्यक रूप से ही दुखी है क्योंकि उसे इस सांसारिक अंधकार में कोई राह नजर नहीं आती और इससे जीवन की भागम भाग में अपने इस मनुष्य जीवन का समय बर्बाद करता जा रहा है | जब इस जीव का भाग्य उदय होता है तो वह किसी जीव के माध्यम से सत्संग में पहुंचता है | उस दिन से ही इसका प्रारब्ध बदलना शुरू हो जाता है और मालिक अपने शरण में लेकर शीतलता की फुहार इस जीव पर डालते हैं | इसमें काम, क्रोध ,लोभ ,मोह अहंकार अज्ञानता का सत्संग में जाने से परिवर्तन शुरू हो जाता है जो हमें शील, क्षमा ,संतोष, दया और प्रेम में बदलकर जीव बहुत ही सरल एवं मृदु भाषी तथा आचार्  विचार सरल एवं उत्तम होने लगते हैं क्योंकि यह संत महात्माओं की दया सत्संग व उनके प्रवचनों का प्रभाव है |

उत्तम एवं श्रेष्ठ विचारों का उदय होना शुरू हो जाता है \ हम जिस संगति में बैठते हैं तो हमें उसी के अनुरूप विचार बनते हैं | जैसे, कदली सीप भुजंग मुख स्वाति एक गुन तीन जैसी संगत बैठिए वैसो ही फल दीन | जिस प्रकार एक पत्थर भी यदि पानी में रहता है तो वह शीतल रहता है उसी प्रकार यदि जीव को आध्यात्मिक संतों की  शरण छाया मिल जाती है तो वह काल के देश से बाहर निकलकर दयाल देश में पहुंच जाता है वहां फिर काल का प्रभाव नहीं चल पाता | हमें मानव जन्म मिला है तो आध्यात्मिक क्षेत्र में संत महात्माओं की शरण लेकर हम लोक एवं परलोक दोनों को सुधार सकते हैं | राधास्वामी कोऑर्डिनेटर गुरुचरण सैनी ने बताया कि भंडारे में हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं ने पंगत प्रसादी ग्रहण की |

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1. रात को दुर्घटना से बचने के लिए अपनी गाड़ी को लो बीम में चलाएँ !

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1. हम सभी किसी ना किसी रूप में जरूरतमंदो की सेवा कर सकते हैं | 

2. पड़ोसी भूखा नहीं सोए इसका ध्यान रखें |

3. जीवन में आप इस धरती पर अपने नाम का एक पेड़ जरूर लगाएँ |

4. बेजुबानों के लिए दाना-पानी की व्यवस्था जरूर करें !

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