सिनेमा और समाज की आत्मा जिंदा रखने के लिए फुले जैसी फिल्में जरूरी

जीवन अनमोल है इसे आत्महत्या कर नष्ट नहीं करें !

सुबह की शुरुआत माता-पिता के चरण स्पर्श से करें !

संस्कार सृजन राम गोपाल सैनी

जयपुर (संस्कार सृजन) हमारे देश में लोगों को धर्म के नाम पर लड़वाना सबसे आसान है, इसलिए लोगों का पढ़ा लिखा होना बहुत जरूरी है | फिल्म फुले के एंड में ये डायलॉग आता है और आप सोचते हैं कि ज्योतिबा फुले को सवा सौ साल पहले भी कितना ज्ञान था और इसलिए वो अपने ज्ञान की रौशनी फैला पाए | आज अगर आपकी बेटी पढ़ लिख पा रही है, आज अगर आपकी मम्मी, पत्नी और घर की महिलाएं पढ़ी लिखी हैं तो उनसे पीछे उसी शख्स का हाथ है जिसकी कहानी ये फिल्म बताती है | फुले में लात घूंसों वाला एक्शन नहीं है, विचारों वाला एक्शन है | फुले में थ्रिल नहीं है लेकिन जो है वो महसूस करना जरूरी है | फुले में वो कुछ नहीं है जो आज की फिल्मों में होता है लेकिन इस फिल्म में सिनेमा की आत्मा है | ये फिल्म बताती है कि अच्छा सिनेमा जिंदा है, फुले जैसी फिल्में हमारे सिनेमा के लिए हमारे समाज के लिए जरूरी हैं क्योंकि ऐसी फिल्में ही बताती हैं कि हम जिंदा हैं |

फिल्म की कहानी :-

ये कहानी है महात्मा ज्योतिबा फुले और उनकी पत्नी सावित्री बाई फुले की | ज्योतिबा फुले ने समाज के खिलाफ जाकर पहले अपनी पत्नी को पढ़ाया और फिर समाज की लड़कियों को पढ़ाना शुरू किया | और ये सब उस दौर में हुआ जब लड़कियों को पढ़ाना पाप माना जाता था | जब हमारे समाज में बाल विवाह,विधवा का मुंडन कर देना और छुआछूत जैसी खराब प्रथाएं जिंदा थी | समाज के एक बड़े तबके के विरोध के बावजूद उन्होंने ये कैसे किया | यही इस फिल्म की कहानी है जो आपको थिएटर जाकर हर हाल में देखनी चाहिए |

कैसी है फिल्म :-

फुले एक बहुत जरूरी फिल्म है, ये फिल्म कुछ लोगों को थोड़ी स्लो लग सकती है लेकिन यही इस फिल्म का मिजाज है | कहानी करीब सवा सौ साल पहले की है तो मिजाज वैसा ही रखा गया है | हालांकि फिल्म में एक के बाद एक कुछ ना कुछ ऐसा होता है जो आपकी दिलचस्पी बनाए रखता है | कमाल के परफॉर्मेंस आपको फिल्म से बांधे रखते हैं | जब आप ये देखते हैं कि उस दौर में ऊंची जाति के लोगों को नीची जाति के लोगों की परछाई से भी ऐतराज था तो हैरान होते हैं | समाज में फैली खराब प्रथाओं को ये फिल्म कायदे से दिखाती है, ये फिल्म बराबरी की बात करती है और जोरदार तरीके से करती है | आपको गर्व होता है कि ऐसे ऐसे हीरोज हमारे देश में पैदा हुए, ये फिल्म भले आज की फिल्मों जैसी नहीं है लेकिन ये फिल्म देखिए क्योंकि ऐसी फिल्में देखा जाना जरूरी है कि क्योंकि जब तक हम ऐसी फिल्में देखेंगे नहीं | ऐसी फिल्में बनेंगी नहीं और ऐसी फिल्मों का बनना सिनेमा के लिए समाज के लिए बहुत जरूरी है |

एक्टिंग :-

इस फिल्म के दोनों लीड एक्टर प्रतीक गांधी और पत्रलेखा कमाल हैं | दोनों ने अपने करियर का बेस्ट परफॉर्मेंस दिया है और दोनों नेशनल अवॉर्ड के हकदार हैं | प्रतीक गांधी हर फिल्म से चौंका रहे हैं, वो ऐसा किरदार निभा सकते हैं ये मुझे तब तक यकीन नहीं हुआ था जब तक इस फिल्म का प्रोमो नहीं आया था | प्रतीक ने इस किरदार को पूरी ईमानदारी से निभाया है | हर पूरी तरह से इस रोल में फिट लगे हैं | आप उनके पुराने सारे काम भूल जाएं जब उन्हें पर्दे पर ज्योतिबा फुले बने देखेंगे और यही एक अच्छे एक्टर की निशानी है | ज्योतिबा फुले के जवानी से बुढ़ापे तक के हर शेड को प्रतीक जैसे जी गए हैं | पत्रलेखा ने इस किरदार को जिस तरह से जिया है उसके लिए उनकी जितनी तारीफ की जाए कम है | वो आपको सावित्री बाई फुले ही लगती हैं, एक सीन में जब एक शख्स उन्हें धमकी देता है कि अगर उन्होंने बच्चियों को पढ़ाना बंद नहीं किया तो वो उनके पति ज्योतिबा फुले को मार देगा तो पत्रलेखा उसे एक कहानी सुनाती हैं और खींच के थप्पड़ मारती हैं | समाज में शायद यहीं से वुमेन इंपावरमेंट की शुरुआत हुई थी | पत्रलेखा का लुक, साड़ी पहनने का अंदाज, उनके एक्प्रेशन्स सब उन्हें सावित्री बाई बना देते हैं | फिल्म का पहला सीन उनसे शुरू होता है और उनके बुढ़ापे से और इसी सीन से वो आपके दिमाग पर असर कर देती हैं | वो इस फिल्म के लिए नेशनल अवॉर्ड की हकदार हैं लेकिन असली अवॉर्ड उन्हें तब मिलेगा जब बड़े फिल्ममेकर उनके टैलेंट को पहचानेंगे | पत्रलेखा वो एक्ट्रेस हैं जिन्हें बॉलीवुड ठीक से इस्तेमाल कर ही नहीं पाया या ये जान ही नहीं पाया कि उनमें किस लेवल का एक्टर छिपा है और हमारे सिनेमा की यही त्रासदी है कि कई अच्छे एक्टर बस बार बार खुद को साबित ही करते रह जाते हैं | लेकिन शायद ये फिल्म चीजों को बदले, इन दोनों के अलावा सारे सपोर्टिंग एक्टर्स ने अपना काम अच्छे से किया है और वो उस दौर की झलक दिखा गए हैं |

डायरेक्शन :-

अनंत महादेवन ने फिल्म का डायरेक्शन किया है | अनंत कमाल के एक्टर हैं और उससे भी कमाल के डायरेक्टर साबित हो रहे हैं | उनकी पिछली फिल्म द स्टोरीटैलर भी कमाल थी और यहां भी वो ऐसा सिनेमा बना गए हैं जो याद रखा जाएगा, जो जरूरी था. इस फिल्म को उन्होंने बैलैंस तरीके से बनाया है | इतना ज्ञान नहीं दिया कि आप बोर हो जाएं | जहां जो जरूरी है वो कहा गया है और सही तरीके से कह गया है | अनंत ने ही मुअज्जम बेग के साथ मिलकर ये फिल्म लिखी है |

म्यूजिक :-

रोहन यानि रोहन प्रधान और रोहन गोखले ने फिल्म का म्यूजिक दिया है और कमाल का म्यूजिक दिया है | फिल्म में जब गाने आते हैं तो आप उन्हें महसूस करते हैं | वो फिल्म के असर को और बढ़ा देते हैं और आप उन्हें थिएटर से बाहर आकर भी सुनना चाहते हैं | कुल मिलाकर ये फिल्म देखनी चाहिए, हर हाल में देखनी चाहिए

रेटिंग- 5 स्टार्स

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