21वीं सदी की उन्नत कृषि तकनीक के बावजूद अन्नदाता की कम आय चिंतनीय

जीवन अनमोल है इसे आत्महत्या कर नष्ट नहीं करें !

सुबह की शुरुआत माता-पिता के चरण स्पर्श से करें !

संस्कार सृजन राम गोपाल सैनी

जयपुर (संस्कार सृजन) किसानों को अन्नदाता इसलिए कहा जाता है क्योंकि वे दिन-रात मेहनत करके खेतों में फ़सलें उगाते हैं। ये फ़सलें ही पूरे देश के लोगों की भूख मिटाती हैं। किसान को धरती पुत्र भी कहा जाता है। आज जब हम 21वीं सदी में विकसित भारत की बात करते हैं तो यह हमें कभी भी नहीं भूलना चाहिए कि विकसित भारत का रास्ता किसान के दिल से निकलता है। किसान यदि आज यदि आज 21वीं सदी में भी आंदोलन के रास्ते का रुख कर रहे हैं तो यह अत्यंत ही चिंतनीय है, उस आंदोलन का आकलन सीमित रूप से करना बहुत बड़ी गलतफहमी और भूल होगी। जो किसान सड़क पर नहीं है, वह भी आज के दिन चिंतित हैं, आज के दिन परेशान है।


भारतीय अर्थव्यवस्था जो आज ऊंचाई पर है, आज हम विश्व की पांचवीं अर्थव्यवस्था है और हम दुनिया में तीसरी अर्थव्यवस्था  बनने वाले हैं, पर एक बात याद रखिये भारत को विकसित राष्ट्र का दर्जा मिलना है तो हर व्यक्ति की आय को आठ गुना करना है। उस आठ गुना करने में सबसे बड़ा योगदान ग्रामीण अर्थव्यवस्था का है वह व्यवस्था ग्रामीण किसान का कल्याण का करने के बारे में सोचना होगा। किसान के लिए जितना भी किया जाए कम है। आप जितना किसान के सकारात्मक कार्य करेंगे उसका उतना ही सकारात्मक असर देश पर पड़ेगा। 

भारत की लगभग साठ से सत्तर प्रतिशत आबादी कृषि अथवा उस पर आधारित काम-धंधा से जुड़ी हुई है। इसके बावजूद जीडीपी में कृषि क्षेत्र का योगदान मात्र सोलह से सत्रह प्रतिशत ही है। सदियों से अन्नदाता कठोर परिश्रम कर देश का तो पेट पाल रहा है, लेकिन स्वयं कई रातें उसे भूखा सोना पड़ता है। इतना ही नहीं, उसकी आर्थिक स्थिति इतनी दयनीय है कि उसके पास न तो तन ढंकने के लिए पर्याप्त वस्त्र है और न ही सिर ढंकने के लिए छत। वह न ही बच्चों की शिक्षा का समुचित प्रबंध कर पाता है और न ही परिवार के किसी बीमार सदस्य का समय पर इलाज करा पाता है। इस आर्थिक युग में तो उसकी स्थिति और बद से बदतर होती जा रही है। 

आधुनिक वैज्ञानिक तकनीकी के तीव्र विकास के बावजूद भारतीय कृषि व्यवस्था मौसम आधारित जुआ है। जिस वर्ष प्रकृति मेहरबान होती है उस वर्ष फसल का उत्पादन तो अच्छा होता है, लेकिन जिस वर्ष ऐसा नहीं हुआ उस वर्ष तो दो जून की रोटी के भी लाले पड़ जाते हैं। जिस वर्ष फसल की अच्छी पैदावार हो जाती है उस वर्ष भी किसान बहुत अधिक खुश नहीं हो पाता है। क्योंकि बाजार में खरीदारों का अभाव होने के कारण उसे उत्पाद की समुचित कीमत नहीं मिल पाती है। कई बार तो उसे बीज, उर्वरक, पारिश्रमिक आदि का लागत मूल्य भी नहीं मिल पाता है। किसान फसल के उत्पादन सहित अनेक व्यक्तिगत कार्यो के लिए कर्ज लिए रहता है तथा उसकी तमाम जरूरतों को पूर्ति फसल उत्पाद की बिक्री पर निर्भर करती है। वह फसल उत्पाद को लंबे समय तक संरक्षित करने में असमर्थ होता है। इसलिए किसान अपने फसल उत्पाद को औने-पौने दाम पर बेचने के लिए मजबूर होता है, जबकि वही उत्पाद कुछ समय बाद जमाखोर व्यापारियों द्वारा मोटा मुनाफा कमा कर बहुत ही ऊंचे दामों पर बेचा जाता है। यानी किसान दोनों ही स्थितियों में मारा जाता है। कई जगह तो कृषि उत्पाद विपणन की पर्याप्त व्यवस्था का अभाव है।

आज किसान के सामने अनेक समस्याएं हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख समस्याएं निम्नलिखित हैं:-

1. प्राकृतिक आपदाएं: - बाढ़, सूखा, ओलावृष्टि, और तूफान जैसी प्राकृतिक आपदाएं फसलों को नुकसान पहुंचाती हैं और किसानों के लिए बड़ी समस्या बन जाती हैं।

2. जलवायु परिवर्तन:- जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम में बदलाव आ रहा है, जिससे फसलों की पैदावार पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है।

3. कम उत्पादकता:- भारत में कृषि की उत्पादकता अन्य देशों की तुलना में कम है।

4. बिचौलियों का शोषण:- बिचौलिए किसानों से कम कीमतों पर उपज खरीदते हैं और उन्हें अधिक कीमतों पर कृषि उपकरण और अन्य सामग्री बेचते हैं।

5. कर्ज का बोझ:- किसानों पर कर्ज का बोझ बहुत अधिक है, जिससे वे आत्महत्या करने के लिए मजबूर हो जाते हैं।

6. कृषि भूमि का ह्रास:- कृषि भूमि का ह्रास हो रहा है, जिससे खेती के लिए कम भूमि उपलब्ध है।

7. युवा पीढ़ी का कृषि से मोहभंग:- युवा पीढ़ी कृषि में रुचि नहीं ले रही है, जिसके कारण किसानों की संख्या कम हो रही है।

इन समस्याओं का समाधान: 

1. प्राकृतिक आपदाओं से बचाव के लिए: - सरकार को किसानों को बेहतर बीज और उर्वरक उपलब्ध कराना चाहिए। सरकार को किसानों को फसल बीमा योजना का लाभ देना चाहिए।

2. जलवायु परिवर्तन से बचाव के लिए: - सरकार को किसानों को जलवायु परिवर्तन के अनुकूल खेती के तरीकों के बारे में जागरूक करना चाहिए। सरकार को किसानों को नई तकनीकों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।

3. कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिए:- सरकार को किसानों को बेहतर सिंचाई सुविधाएं उपलब्ध कराना चाहिए। सरकार को किसानों को कृषि शिक्षा और प्रशिक्षण प्रदान करना चाहिए।

4. बिचौलियों के शोषण से बचने के लिए:- सरकार को किसानों के लिए मंडियों का निर्माण करना चाहिए। सरकार को किसानों को सीधे उपभोक्ताओं को अपनी उपज बेचने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।

5. कर्ज के बोझ को कम करने के लिए: - सरकार को किसानों को कर्ज माफी योजना का लाभ देना चाहिए। सरकार को किसानों को कम ब्याज दरों पर ऋण उपलब्ध कराना चाहिए।

6. कृषि भूमि के ह्रास को रोकने के लिए:- सरकार को कृषि भूमि का संरक्षण करना चाहिए। सरकार को किसानों को गैर-कृषि कार्यों के लिए अपनी भूमि का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।

7. युवा पीढ़ी को कृषि में आकर्षित करने के लिए:- सरकार को कृषि को एक लाभदायक व्यवसाय बनाना चाहिए। सरकार को युवा पीढ़ी को कृषि में रोजगार के अवसर प्रदान करना चाहिए।

इन समस्याओं का समाधान करके किसानों की स्थिति में सुधार लाया जा सकता है और उन्हें एक बेहतर जीवन प्रदान किया जा सकता है।

कृषि राज्य का विषय है। राज्य सरकारें अपने राजनीतिक लाभ-हानि के दृष्टिकोण से कृषि की नीतियां बनाती हैं। किसानों के कल्याण के लिए सार्थक पहल करने के बजाय उनके नाम पर राजनीति करती रहती हैं। इससे किसानों की दशा दिन-प्रतिदिन दयनीय होती जा रही है। केंद्र सरकार किसानों के उन्नयन और अनाज उत्पादन में आत्मर्निभरता के लिए साठ के दशक में हरित क्रांति की शुरुआत की थी। इससे कुछ हद तक सकारात्मक परिणाम अवश्य मिला। फसल उत्पादन में आनुपातिक वृद्धि हुई तथा देश खाद्यान्न के लिहाज से आत्मनिर्भर हो गया। हरित क्रांति में उन्नत किस्म के बीजों का प्रयोग तथा रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का बड़े पैमाने पर प्रयोग किया गया। इससे उत्पादन में कुछ हद तक तात्कालिक वृद्धि तो हुई, लेकिन अब धीरे-धीरे उत्पादन स्थिर होता जा रहा है। महंगे उन्नत बीज, रासायनिक उर्वरक एवं कीटनाशक के प्रयोग के कारण कृषि उत्पादन लागत बहुत अधिक बढ़ गई है। इसके दुष्प्रभाव से भूमि की उर्वरा शक्ति भी धीरे-धीरे क्षीण हो रही है।

भारतीय कृषि मौसम आधारित होने के कारण जिस वर्ष मानसून साथ नहीं देता है, उस वर्ष फसल का उत्पादन नहीं हो पाता है। कई बार तो असमय बारिश होने या सूखा के चलते खेत में खड़ी फसल बर्बाद हो जाती है। केंद्र सरकार के सहयोग से राज्य सरकारें कृषि बीमा योजना का कार्यान्वयन तो कर रही हैं परंतु बीमा कंपनियां किसानों को सहायता पहुंचाने के बजाय कागजी खानापूर्ति में ऐसा उलझा देती हैं। सरकारें भी राजनीतिक लाभ के लिहाज से कृषि आपदा राहत की बड़ी-बड़ी घोषणाएं तो करती हैं, लेकिन उसका लाभ कुछ ही किसानों को मिल पाता है। 

आधुनिक वैज्ञानिक संयंत्रों द्वारा खेती किए जाने से ग्रामीण स्तर पर कृषि क्षेत्र में संलग्न मानवीय श्रम बड़े पैमाने पर बेरोजगार हो रहा है। वैज्ञानिक संयंत्रों द्वारा खेती होने से फसल अपशिष्ट, पराली और भूसे इत्यादि खेत में ही नष्ट कर दिए जाते हैं। इसकी वजह से पशु चारे का अभाव हो रहा है और इससे पशुपालन का संकट उत्पन्न हो रहा है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था में पशुपालन का महत्वपूर्ण स्थान है। ग्रामीण स्तर पर कृषि और पशुपालन के क्षेत्र में रोजगार के अवसर धीरे-धीरे सीमित होते जा रहे हैं। जिसके कारण ग्रामीण किसान रोजगार की तलाश में शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं। शहरों में एक निश्चित मजदूरी दर निर्धारित होती है और पारिश्रमिक की गारंटी होती है। जबकि कृषि उत्पाद आधारित आय में पूंजी और परिश्रम के निवेश के बावजूद अनिश्चितता बनी रहती है जिसके कारण किसान अन्नदाता से मजदूर बनता जा रहा है।

पिछले दस वर्षो में देश के तीन लाख किसानों ने जिंदगी से तंग आकर विभिन्न कारणों सें मौत को गले लगा कर समस्याओं से तो नहीं बल्कि अपनी जिंदगी से छुटकारा पा लिया, जो कि आधुनिक मानवीय सभ्यता के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है। कृषि मजबूरी का व्यवसाय बनता जा रहा है। इस कारण युवा वर्ग का कृषि के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण होता जा रहा है। किसान अपने बच्चों को खेती की बजाय किसी भी हालत में सेवा क्षेत्र अथवा किसी अन्य क्षेत्र में भेजना चाहता है। शिक्षा के तीव्र प्रसार होने से साक्षरता दर में वृद्धि हुई है। शिक्षित युवा वर्ग खेती के बजाय नौकरी करने के लिए उत्सुक है। यदि कृषि प्रणाली से अन्नदाता का इसी प्रकार पलायन होता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब देश में अनाज उत्पादन का संकट उत्पन्न हो जाएगा जो कि भयावह स्थिति होगी इसलिए कृषि की दुर्दशा को सुधारने के लिए राज्य और केंद्र सरकारों को समन्वित और परिणामदायी प्रयास करना पड़ेगा।

हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी केंद्र सरकार किसानों के आर्थिक विकास और उनके पुनरुद्धार को लेकर कटिबद्धता के साथ आगे बढ़ रही है और किसानों की आय दोगुना करने का लक्ष्य तय करने की दिशा में सार्थक कार्य कर रहे हैं लेकिन मुझे लगता है इसके लिए केंद्र सरकार मैं उच्च पदों पर आसीन व्यक्तियों को ईमानदारी पूर्वक, अपने कर्तव्यों का निर्वहन दृढ़ता पूर्वक पहल करनी होगी व उसका नियमित रूप से मूल्यांकन करना होगा साथ ही इस मसले पर आने वाली चुनौतियों के समाधान के लिए भी पर्याप्त प्रबंध करना होगा ताकि अन्नदाता की आर्थिक स्थिति में सुधार करने के साथ आम आदमी को समुचित मूल्य पर पौष्टिक भोजन संबंधित आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सके।

लेखक : डॉ. राकेश वशिष्ठ 

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