सुबह की शुरुआत माता-पिता के चरण स्पर्श से करें !
संस्कार सृजन @ राम गोपाल सैनी
देहरादून (संस्कार सृजन) पहले गांव का जीवन भी अजीब सा होता था जहां संसाधन न होने पर भी लोग सकून से रहते थे, आपसी मेल मिलाप से जीते थे ,उन्हें किसी भी बात की फिक्र नही होती थी| कोई जरूरत पड़े तो वैकल्पिक वस्तु को खोज लेते थे | जी हाँ ! बात हो रही है मेहंदी के पौधे की।
पर्यावरणविद् वृक्षमित्र डॉ. त्रिलोक चंद्र सोनी ने बताया किहमारे पूर्वज भी बहुत शौकिया मिजाज के होते थे और शादी, कौथिक या पारिवारिक कार्यो पर महिलाएं संवरती थी | अपने हाथों में मेहंदी लगाती थी | उस समय बाजार में मेहंदी आती नही होगी, उन्होंने इसके एवज में मेंहदी का पौधा ढूढ़ निकाला।
डॉ. सोनी कहते हैं की खुद मैंने यह मेहंदी लगाई है | इस पौधे की पत्तियां निकालते थे और शीलबट्टे में बारीक पीसते थे उसे गाडा रंग के लिए चाय पत्ती या दाड़िम (अनार) के छिलके पीसकर मिला देते थे | रात को अपने हाथों में लगा लेते थे सुबह हाथों में मेहंदी का रंग देता था | उस समय युवक युवतियां, महिलाएं और दूल्हा-दुल्हन अपने हाथों में इसी पौधे के पत्तो की मेहंदी लगाया करते थे | इसके लिए इनके पत्तियों को सुखाकर पॉउडर बनाकर रखते थे | उस समय भी मेहंदी की रस्म निभाई जाती होगी इसीलिए तो इस पौधे की खोज हुई। कैसा होगा वह जमाना जहां उन्होंने अपना जीवन निभाया। इस पौधे को अलग अलग नामों से जाना जाता है | कहीं इसे मंजीरा के नाम से जाना जाता हैं।
संगीता कठैत कहती हैं कि इस मेहंदी के पौधे से हमारी बचपन की यादें जुड़ी हैं | बचपन में हमने इसको खूब हाथों में लगाया है | वही यशुबाला उनियाल ने विलुप्त होते पौधे की संरक्षण की बात कही। मेहंदी पौधों के साथ दीपिली ठाकुर, नीलम, सीमा असवाल, अनिता उनियाल, शोभा नेगी, रीना बर्तवाल, वीरसिंह राणा, गजेंद्र बेंजुला, दिनेश हटवाल आदि उपस्थित रहे ।
किसी भी कार्यक्रम को लाइव दिखाने के लिए संपर्क करें - 9214996258,7014468512.