हिंदी पारंपरिक ज्ञान से कृत्रिम बुद्धिमत्ता तक

जीवन अनमोल है इसे आत्महत्या कर नष्ट नहीं करें !

सुबह की शुरुआत माता-पिता के चरण स्पर्श से करें !

संस्कार सृजन राम गोपाल सैनी

नीमकाथाना (संस्कार सृजन) 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा द्वारा देवनागरी लिपि में लिखी हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया था। हिंदी को प्रोत्साहित करने के लिए राष्ट्रभाषा प्रचार समिति की सुझाव पर 1953 से पूरे भारत में 14 सितंबर को हर साल हिंदी दिवस के रूप में मनाए जाने लगा। हिंदी भाषा भारत की विविधता को एकता की सूत्र में बांधने वाली अटूट कड़ी है। हिंदी सिर्फ भाषा ही नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। एक-दूसरे से जुड़ने का सहज और सरल साधन भी है। हिंदी भारत की सांस्कृतिक विविधता में एकता की महत्वपूर्ण कड़ी के साथ ही हमारी पहचान की मजबूत बुनियाद है। विश्व में हिंदी दिवस को मनाने की शुरुआत सबसे पहले महाराष्ट्र की नागपुर में 10 जनवरी 1974 को की गई थी। विश्व हिंदी दिवस का उद्देश्य हिंदी का अंतरराष्ट्रीय प्रचार प्रसार करना है। यह दिवस विश्व भर में हिंदी की पहचान को मजबूत करने और इसके प्रचार को बढ़ावा देने के लिए समर्पित है। हिंदी से हम सारे भारत की पहचान अच्छी तरह से कर सकते हैं। हमें भारत की सभी प्रान्तों से यह भाषा जुडाती है। भाषा हमें एकता के सूत्र में बांधती है। मीडिया, फिल्म, उद्योग, बैंक आदि क्षेत्रों में हिंदी की उपयोगिता बढ़ती जा रही है। हिंदी सिर्फ भाषा या संवाद का ही एक साधन नहीं है, बल्कि हर भारतीय की बीच सामाजिक और सांस्कृतिक सेतु भी है। हिंदी भाषा देश की एकता का सूत्र है। पूरे विश्व में भारतीय संस्कृति का प्रचार करने का श्रेय एकमात्र हिंदी भाषा को जाता है। भाषा की जननी और साहित्य की गरिमा हिंदी भाषा जन-आंदोलन की भाषा रही है। 
  लेखक :शीशराम यादव

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