खेत में छूटी बालियां और अकबर का फरमान-कहानी

जीवन अनमोल है इसे आत्महत्या कर नष्ट नहीं करें !

सुबह की शुरुआत माता-पिता के चरण स्पर्श से करें !

संस्कार सृजन राम गोपाल सैनी

एक बार की बात है बादशाह अकबर ने अपने राज्य क्षेत्र की कृषि योग्य‌ सम्पूर्ण भूमि पर कृषि कार्य करने का उत्तरदायित्व अपनी प्रजा के कुछ विशेष कृषि कर्मियों में बांट दिया। उनका आदेश था कि अलग-अलग कृषिक्षेत्र में लगी हुई कृषि कम्पनियां हर सीजन की फसलों को एक निर्धारित अनाज के गोदाम में तौल के साथ जमा करेंगी। इसके एवज में उन्हें उचित पारिश्रमिक भी दिया जायेगा। यह सिलसिला कई वर्षों तक चलता रहा। 

एक बार की बात है कि गेहूं की फसल की कटाई के बाद जब गेहूं के बंडल बंध कर खेत से‌ खलिहान तक ढुलाई करके पूरी तरह से आ गये, तब बादशाह अकबर ने अपने दरबार के कुछ कृषि सलाहकारों के कहने पर प्रत्येक कृषि कम्पनियों के मुखिया को दरबार में हाजिर कर अपने आदेश में यह फैसला सुनाया कि प्रत्येक कृषि कम्पनियां अपने-अपने कृषिक्षेत्र के खेतों में गेहूं की छूटी हुई बालियों को चुन लायें। गेहूं की एक भी बाली खेत में छूटी हुई नहीं मिलनी चाहिए। चुन कर लाई गईं बालियों की मात्रा के आधार पर कृषि कम्पनियों को उचित ईनाम दिया जायेगा। इस आदेश को बीरबल चुपचाप सुनते रहे।

अब क्या था सभी कृषि कम्पनियों के मुखिया अगली फसल के लिए जमीन की सारी तेयारियां छोड़कर कंपनी सहित अपने-अपने कृषिक्षेत्र से गेहूं की बालियां एकत्रित करने में दिन-रात एक कर दिये। यहां तक कि कुछ कम्पनियां तो दूसरी कृषि कम्पनियों के खलिहान में पहले से जमा गेहूं के बंडलों से भी गुप-चुप बालियां खींच लाये। कंपनियों में अधिक से अधिक बालियां इकट्ठा करने की होंण सी लग गई। बालियां इकट्ठा करने का निर्धारित समय खत्म हुआ।

बादशाह अकबर ने कृषि मंत्री से कम्पनियों द्वारा एकत्र की गईं बालियों की मात्रा का लेखा जोखा लेने के बाद एक दिन राज दरबार में पुरस्कार समारोह का आयोजन करवाया। दरबार के सारे सदस्यों, मंत्रियों सहित सभी कृषि कम्पनियों के मुखिया भी उपस्थित रहे। एक कोने बीरबल भी शान्त मुद्रा में बैठे चिन्तन करते रहे। अचानक बादशाह अकबर का फैसला आता है कि अपने-अपने कृषि भूमि से एकत्रित की हुईं बालियों की मात्रा के आधार पर कृषि कम्पनियों को उचित ईनाम दिया जायेगा। जितनी अधिक एकत्रित बालियों की मात्रा उतना ही बड़ा ईनाम। बीरबल इस फैसले को सुनकर स्तब्ध रह गए और गुस्ताखी माफ करने की विनती के साथ बोले कि जहांपनाह चंद शातिर सलाहकारों के सुझाव में लिया गया आप द्वारा फैसला बेहद अफसोसजनक के साथ-साथ लोगों के लिए एक बुरा संदेश भी है।

आपकी उल्टी बात कुछ मेरे समझ में नहीं आई  बीरबल.....बीरबल की तरफ घूरते हुए  बादशाह अकबर ने चिटकते हुए बोला।

तब क्या रहा बीरबल भी अपने अंदाज में कहा इजाजत हो तो मैं भी इस संदर्भ में अपनी बात रखूं जहांपनाह---

बिल्कुल वही तो जानना चाहते हैं हम कि आखिर इस फैसले में गड़बड़ ही क्या है-! अकबर अपना सिर पीछे खींचते हुए जिज्ञासु मुद्रा में बोले "जहांपनाह इतना उल्टा फैसला अभी तक हमें जानने सुनने को कभी नहीं मिला, वो ये कि जो बिगत कई वर्षों से अपने कार्य में जितनी ही बड़ी लापरवाही करते आ रहा है, उसे ही बादशाह अकबर के दरबार में उतना बड़ा ईनाम दिया जा रहा है.. आश्चर्यचकित और बेहद चिन्तित मुद्रा में बीरबल सिर झुकाते हुए बोले।

आखिर इसे स्पष्ट क्यूं ‌नहीं‌ करते बीरबल कि अब तक लापरवाही करते आये लोगों को बड़ा ईनाम दिया जा रहा है। बेहद जिज्ञासु मुद्रा में उतावला होते हुए अकबर ने बीरबल से पूछा----?

बात बहुत सहज सी है जहांपनाह कि विगत वर्षों से जो-जो कृषि कम्पनियां हर फसली सीजन में लापरवाही से जितनी ही बालियां खेत में छोड़ते चले आये हैं, वे उतनी ही आज जुटाए हैं, और उतना ही बड़ा ईनाम आज पाने जा रहे हैं-- ये कैसी विडम्बना है !   यहां तक कि बड़े से बड़े ईनाम हथियाने‌ की होंण में कुछ तो दूसरे के भी खलिहान से बालियां झटक लाये हैं, और कुछ थोथी बालियों को भी एकत्रित कर लिये हैं, जिनसे उद्देश्यों की पूर्ति की ही नहीं जा सकती, वे हवा में फुर्र हो जाएंगी। बेहद आत्मविश्वास के साथ अकबर की ओर रुख करते हुए बीरबल ने स्पष्ट किया। ‌

बीरबल की इतनी बातों से कुछ क्षण के लिए दरबार में सन्नाटा सा पसर गया, और बादशाह अकबर को बीरबल की बात समझ में आ चुकी थी। उन्होंने खुद चलकर बीरबल को गले लगा लिया, और बोले कि कभी भी शातिर लोगों को अपने सलाहकार के रूप में नहीं रखना चाहिए।

बादशाह अकबर ने राज दरबार के सिद्धांत के चलते उस वर्ष लिए गए अपने फैसले को तो  नहीं बदल सके, किन्तु भविष्य में ऐसे फैसले न लेने की प्रतिज्ञा कर ली।

सीख कहानी की -

हमें शातिर और  छली लोगों से सलाह कभी नहीं लेना चाहिए। ऐसे शातिर सलाहकार हमारे कार्यक्रम को बिफल तो करते ही हैं साथ ही साथ देश समाज में हमारी छवि को भी सदा-सदा के लिए धूमिल कर देते हैं।


                                       
लेखक- विजय मेहंदी,जौनपुर (उत्तर प्रदेश)

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