सती प्रथा पर विशेष लेख

जीवन अनमोल है इसे आत्महत्या कर नष्ट नहीं करें !

सुबह की शुरुआत माता-पिता के चरण स्पर्श से करें !

संस्कार सृजन राम गोपाल सैनी

जयपुर (संस्कार सृजन) सती प्रथा एक ऐसी ही कुप्रथा थी, जिसमें पति के निधन के बाद उसकी पत्नी को उसकी चिता में जीते जी झोंक दिया जाता था और भारत में व्याप्त इस कुप्रथा को खत्म करने का श्रेय अंग्रेज वायसराय विलियम बेंटिक को जाता है, जिन्होंने 4 दिसंबर 1829 को सती प्रथा पर रोक लगा दी।

सती प्रथा का अंत - सती एक हिंदू महिला के पति की चिता में मृत्यु होने पर उसकी आहुति देने की प्रथा थी। हालाँकि इस प्रथा की कोई वैदिक स्वीकृति नहीं है, यह भारत के कुछ हिस्सों में प्रचलित हो गई थी। विधवा को स्वर्ग में जाना माना जाता था और इसे अंतिम बलिदान और अपने पति के प्रति एक महिला की भक्ति का प्रमाण माना जाता था। सती के कई मामले स्वैच्छिक थे जबकि कुछ मजबूर थे। बंगाल के महान हिंदू सुधारक राजा राममोहन राय ने बंगाल के हिंदू समाज में प्रचलित कई सामाजिक बुराइयों का मुकाबला किया और सती प्रथा उनमें से एक प्रमुख थी। लार्ड बेंटिक भारतीय समाज से तमाम बुराइयां खत्म करने के हिमायती थे और उन्होंने नवजात कन्या वध की कुप्रथा का भी अंत किया था।

नायक उदयवीर सिंह यादव

राजस्थान और सती प्रथा - 19वीं सदी में सती प्रथा भारत में कानूनी तौर पर रद्द हुई। कई भारतीय समाज सुधारकों के प्रयासों के चलते ब्रिटिश सरकार ने साल 1829 में देशभर में सती पर प्रतिबंध लगाने के लिए कानून जारी किया पर कानूनी प्रतिबंध लगने के बावजूद पूरे देश में इस प्रथा पर रोक नहीं लगाई जा सकी। नतीजन साल 1987 में सती प्रथा के कारण रूप कंवर को अपनी जान गंवानी पड़ी। रूप कंवर राजस्थान के सीकर ज़िले के एक राजपूत परिवार की लड़की थी। जनवरी 1987 में उसकी शादी देवराला गांव के रहने वाले, 24 साल के माल सिंह शेखावत से करवा दी गई। माल सिंह कॉलेज में बी.एस.सी का छात्र था और शादी के कुछ ही महीनों बाद वह गंभीर रूप से बीमार पड़ गया, जिसकी वजह से उसे अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा। लंबे समय तक अपनी ज़िंदगी के लिए लड़ने के बाद 3 सितंबर 1987 को माल सिंह शेखावत का देहांत हो गया। 

राजस्थान की राज्य सरकार ने सती (रोकथाम) अधिनियम, 1987 पारित किया, जिसके द्वारा विधवाओं को स्वेच्छा से या जबरन जलाना या जिंदा दफन करना और सती के किसी भी जुलूस में भाग लेने सहित ऐसे कृत्यों का महिमामंडन दंडनीय हो गया। यह अधिनियम 1988 में भारतीय संसद का एक अधिनियम बन गया जब सती रोकथाम अधिनियम, 1987 अधिनियमित किया गया था।

लेख संकलन : - नायक उदयवीर सिंह यादव


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