वह सचमुच देशरत्न थे: डॉ.राजेन्द्र प्रसाद (जयंती पर विशेष)

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संस्कार सृजन राम गोपाल सैनी

जयपुर (संस्कार सृजन) 'देशरत्न' के रूप में मशहूर डॉ. राजेंद्र प्रसाद एक महान क्रांतिकारी, संकल्पित देशभक्त, आंदोलनकारी एवं आजाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति थे । अपने गुणों एवं कोमलता से इन्होंने साधारण से संपूर्ण जीवन को देश का सबसे श्रेष्ठ जीवन बना दिया । राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर 1889 में बिहार के छपरा जिले में हुआ था । इनका पालन-पोषण एक संयुक्त परिवार में हुआ था । उन्हें बचपन से ही किताबें पढ़ने का बहुत शौक था। इसके साथ ही इन्हें अपने दादा-दादी से रामायण तथा भागवत गीता की कहानियां सुनना भी बहुत प्रिय था । उस समय बाल विवाह का प्रचलन था । राजेंद्र प्रसाद का भी विवाह बचपन में ही कर दिया गया था । उस समय उन्हें विवाह क्या होता है, इस बात का भी कुछ ज्ञान नहीं था ।

डॉ .राजेन्द्र प्रसाद

डॉ. राजेंद्र प्रसाद को समाज सेवा तथा देश सेवा की प्रेरणा डॉन सोसाइटी से मिली । यह संस्था उस समय विद्यार्थियों को उनके चरित्र निर्माण करने में सहायता करती थी तथा समाज सेवा के लिए प्रेरित करती थी । राजेंद्र प्रसाद हमेशा स्वदेशी वस्त्रों को  धारण करते थे ।1905 में बंगाल का विभाजन हुआ और विदेशी माल के बहिष्कार के नारे सड़कों पर गूँजने लगे । यही समय था जब राजेंद्र प्रसाद का संपर्क बड़े-बड़े क्रांतिकारियों से हुआ एवं प्रसाद देशभक्ति की भावना और उग्र हो गई । 1921 में प्रिन्स ओफ़ वेल के विरोध में राजेंद्र प्रसाद पहली बार जेल गए । 1934 में बम्बई अधिवेशन में कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में इनका चयन हुआ । यहीं से राजेंद्र प्रसाद पूरे जोश एवं जोर-शोर से एक राजनीतिक नेता के रूप में उभर कर सामने आए ।

डॉ.योगिता जोशी

भारतीय संविधान निर्माण की दूसरी बैठक में इन्हें स्थाई अध्यक्ष के रूप में चुना गया । 12 मई 1952 को डॉ राजेंद्र प्रसाद आजाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति चुने गए एवं 1957 में अपने स्वभाव एवं अच्छे कार्यों की बदौलत दोबारा भी राष्ट्रपति बने । 1952 में से 1962 तक देश का नेतृत्व करने के लिए इन्हें भारत सरकार ने भारत के श्रेष्ठ पुरस्कार भारत रत्न द्वारा सम्मानित किया । देश की सेवा करते करते 28 फरवरी 1963 में इस महान व्यक्तित्व ने अपनी देह का त्याग कर दिया ।अपने जीवन के अंतिम दिनों में वे सदाकत आश्रम में रहते थे । 

राजेंद्र प्रसाद आज भी युवाओं के लिए प्रेरणा पुंज बने हुए हैं। उनके जीवन को हम देखते हैं तो पाते हैं कि वह बेहद मेहनती छात्र थे। विश्वविद्यालय में उन्होंने टॉप किया था । यह कितनी बड़ी बात है कि  उन की उत्तर पुस्तिका देखकर परीक्षक ने यह टिप्पणी की  थी कि "यह छात्र परीक्षक से बेहतर है"। ऐसी टिप्पणी कोई परीक्षक उस समय करता है, जब छात्र का हर उत्तर प्रामाणिक और अकाट्य हो। इसीलिए मैं कहती हूँ,डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद जी का जीवन आज भी युवापीढ़ी के लिए प्रेरणास्पद बन सकता है। विद्यार्थी जीवन में उन्हें छात्रवृत्ति भी मिला करती थी।  उन्हें हम बड़े सम्मान के साथ  'देशरत्न' के रूप में याद करते हैं। यह सम्मान किसी और शख्स को नहीं मिल सका।

लेखक : डॉ.योगिता जोशी


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