गाजर घास मानव, मवेशी, वनस्पति और फसलों के लिए खतरनाक

गौ माता को लम्पी वायरस से बचाएँ!

जीवन अनमोल है इसे आत्महत्या कर नष्ट नहीं करें !

सुबह की शुरुआत माता-पिता के चरण स्पर्श से करें !

संस्कार सृजन राम गोपाल सैनी

चौमूं / जयपुर (संस्कार सृजन) जयपुर ग्रामीण के खेत खलियानो, गोचर भूमियो, नदी नालों के प्रवाह क्षेत्रो, रेल व सड़क मार्गों और जंगलों को गाजर घास / कांग्रेस घास नामक विदेशी खरपतवार ने जकड़ लिया है । यूं तो इस खपतरवार ने पूरे मरुप्रदेश में पैर पसार रखे हैं, लेकिन ज्यादा प्रभाव व प्रसार जयपुर ग्रामीण के खेत खलियानो, पड़त भूखंडों व नदी नालों के प्रवाह क्षेत्र में दिखाई देता है । परिणाम स्वरूप क्षेत्र की जैवविविधता, वनस्पति जातियों, जंतु जातियों, फसलों के साथ-साथ यह खरपतवार मानव, पशु पक्षियों के स्वास्थ्य के लिए भी घातक सिद्ध हो रही है । इसकी सफेद छोटे-छोटे फूल, पत्तियां, तना, जड़, आदि से निकलने वाले विषैले टॉक्सिन पदार्थ फसलों तथा क्षेत्रीय औषधीय महत्व की वनस्पतियो से प्रकाश, जल एवं खनिज लवणों के प्रति प्रतिस्पर्धा से उनके अस्तित्व को संकट पैदा कर दिया है, जबकि मनुष्य और पशु इसके संपर्क में आने पर पराग एलर्जी, खुजली, बुखार, फीवर आदि से ग्रसित हो जाते हैं।


जयपुर ग्रामीण सहित संपूर्ण प्रदेश पर कांग्रेस घास का फैला शिकंजा :-

इस विदेशी किस्म की घातक खरपतवार के शिकंजे से जयपुर जिले में सबसे ज्यादा शाहपुरा, चौमूं , गोविंदगढ़, अमरसरवाटी, खेजरोली, मनोहरपुर, आमेर, जमावरामगढ़, कोटपूतली, पावटा, वाले तोरावटी व ढूंढाड क्षेत्र की प्रमुख नदियों जैसे बांडी, बाणगंगा, त्रिवेणी, कांतली, आदि प्रवाह क्षेत्र अधिक प्रभावित हुए है । क्षेत्र में अच्छी बारिश होने से गाजर घास का प्रसार / विस्तार  तेजी से हुआ है । क्षेत्र में कृषि एवं किसानों के लिए "जी का जंजाल" बन चुकी गाजर घास तथा इसी की तरह विषैली प्रजाति की विलायती बबूल, व गैंदी नामक खरपतवार के उन्मूलन के लिए अभी तक शासन प्रशासन की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है, जिससे क्षेत्र की कृषि एवं जैव विविधता को घोर संकट खड़ा हो गया है ।

क्या है खरपतवार गाजर घास /कांग्रेस घास :-

गाजर घास एक आक्रामक तरीके से फैलने वाली घास है । यह एक वर्षीय शाकीय पौधा होता है, जो हर तरह के वातावरण में तेजी से अंकुरित होकर फसलों के साथ-साथ मनुष्य और पशु पक्षियों के लिए भी गंभीर समस्या बन जाती है । इसलिए इस विनाशकारी खरपतवार को समय रहते  नियंत्रित किया जाना जरूरी हो गया है । गाजर घास जोकि एस्टेरेसी कुल का सदस्य है, के पौधे के पुष्पों का रंग, गंध तथा आकृति सुंदर होती है तथा रात्रि में तारों के समान दिखाई देते है हालांकि इनमें कोई महक नहीं होती । गाजर घास को वानस्पतिक भाषा में पारथेनियम हिस्टोरोफोरस कहा जाता है, जबकि सामान्य बोलचाल की भाषा में इसे चिड़िया बाड़ी, चटक चांदनी, कांग्रेस घास, गंदी बूटी, आदि नामों से जाना जाता है । ऐसा माना जाता है कि भारत में इसका प्रवेश पिछले 3 दशक पूर्व अमेरिका और कनाडा से आयात किए गए गेहूं के साथ हुआ, धीरे-धीरे इसका प्रसार व विस्तार पूरे भारत में हो गया ।

जल,जीवन एवं जैव विविधता के लिए भी घातक है खरपतवार :-

पर्यावरणविद विज्ञान शिक्षक कैलाश सामोता रानीपुरा शाहपुरा ने बताया कि इससे उत्पन्न होने वाले सफेद पुष्पों के परगकणों से एलर्जी जैसी बीमारी उत्पन्न होती है । पौधे का ऊपरी हिस्सा खुरदरा व कांटेदार होता है जिससे विषैले टॉक्सिन/रसायन निकलते हैं । इस पौधे के संपर्क मात्र से त्वचा में खुजली, एलर्जी, मस्तिष्क ज्वर, डर्मेटाइटिस, बुखार और दमा जैसी बीमारी हो जाती है । सामोता का कहना है कि गाजर घास ने नीचे जहरीले जानवर जैसे कोबरा सांप, बिच्छू, मक्खियां एवं कीट प्रजातियां निवास करती है । इसलिए, इसको उखाड़ते समय भी बेहद सावधानी बरतनी पड़ती है ।

घातक खरपतवार का फैलाव आमजन के लिए बना "जी का जंजाल" :-

मात्र तीन चार माह में अपना जीवन चक्र पूरा कर लेने वाली एक से डेढ़ मीटर लंबी गाजर घास के पौधे का तना रोयेदारों व अत्यधिक शाखित होता है । इसकी पत्तियां गाजर की पत्तियों के समान आकृति की, पुष्प सफेद चटक तथा बीज अत्यधिक संख्या में प्रति पौधे 1000 से 50000 तक की संख्या में तथा विषम परिस्थितियों में भी वर्षभर फलने फूलने वाला पौधा है । इसके बीज का तेजी से प्रकीर्णन होता है, जिससे खाद्यान्न फसलों जैसे बाजरा, मक्का, मूंगफली, गवार, सब्जियों आदि में तेजी से फैल कर, उसकी पैदावार को लगभग 40% तक कम कर देता है । इस खरपतवार के पौधे में पाए जाने वाले विषाक्त पदार्थ के कारण फसलों के अंकुरण एवं वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है । साथ ही इसके परागकण बैंगन, मिर्च, टमाटर, आदि सब्जियों के पौधों पर एकत्रित होकर, उसके परागण, अंकुरण और फल विन्यास को भी प्रभावित करते हैं  तथा पत्तियों में क्लोरोफिल की कमी एवं पुष्प शीर्षो में असामान्यतया / कोढपन पैदा कर देते हैं । इस खरपतवार के किसी भी भाग को यदि कोई मवेशी या पक्षी खा लेता है तो उसकी तड़प-तड़प कर मौत हो जाती है ।

औषधीय महत्व की पादप जातियों के लिए भी खतरा बनी गाजर घास :-

गाजर घास को पानी की बहुत अधिक आवश्यकता होती है, इसलिए यह अधिकतर जलागम क्षेत्रों, नदियों, नालों के आसपास ज्यादा उगती है । इसका पौधा अन्य खरपतवारो की अपेक्षा 2 गुना पानी अवशोषित करता है, जिसके चलते इसके आसपास कोई अन्य वनस्पति नहीं पनपती है । इस खरपतवार के दुष्प्रभाव से क्षेत्र के महत्वपूर्ण औषधीय महत्व के पौधे जैसे कटहल, ग्वारपाठा, रूखड़ी, खीप, गोखरू, झोझरू, आक, आदि की प्रजातियां विलुप्त हो गई है । वर्षा के मौसम में मुख्यतः खाली स्थानों, अनुपयोगी भूमियों, बगीचों, औद्योगिक क्षेत्रों, सड़क व रेल मार्गों के किनारों पर तेजी से पनप कर वन्हा की जैव विविधता के लिए अभिशाप बन चुकी, इस खरपतवार का उन्मूलन किया जाना बेहद जरूरी हो गया है ।

यह सही है कि गाजर घास फसलों, सब्जियों, पशु पक्षियों व मनुष्य के लिए बेहद हानिकारक है । इसे अगर मवेशी धोखे से भी खा जाए तो वह बीमार पड़ जाता है । जिम्मेदार विभागों की ओर से आज तक इस घातक खरपतवार के उन्मूलन के लिए कोई विशेष कार्य योजना या अभियान नहीं चलाया गया है । अब जरूरत इस बात की है कि समय रहते क्षेत्र की जैव विविधता व भोम जल स्तर को बचाने के लिए, इस गाजर घास को मनरेगा की मानव शक्ति के माध्यम से नष्ट किया जाना चाहिए ।

कैलाश सामोता, रानीपुरा, पर्यावरणविद शिक्षक, शाहपुरा, जयपुर

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