विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस:आत्महत्या और हम

जीवन अनमोल है इसे आत्महत्या कर नष्ट नहीं करें !

सुबह की शुरुआत माता-पिता के चरण स्पर्श से करें !

संस्कार सृजन राम गोपाल सैनी

जयपुर (संस्कार सृजन) दुनियां में आत्महत्याओ की संख्या में रोज इज़ाफ़ा हो रहा है। हर वर्ष लगभग 8 लाख लोग आत्महत्या कर लेते हैं।भारत जैसे देश मे भी लगभग एक लाख लोग हर वर्ष आत्महत्या कर लेते हैं। 

लेखक - डॉ रमाकांत क्षितिज

वैसे भी लगभग दस प्रतिशत लोग मानसिक तनाव में रहते ही है। स्कूल में पैरेंट्स से मिलता रहता हूँ। बहुत से पैरेंट और बहुत से बच्चे भी मानसिक तनाव में रहते हैं। छोटे छोटे बच्चे भी आत्महत्या की बातें करते हैं। जिस तरह हम मीडिया, टीवी,सोशल मिडिया से जानकारी पाते है। बच्चे भी वही से जानकारी पाते हैं। पारिवारिक कलह भी आत्महत्या की कारक है।

भारत में अब आत्महत्या अपराध नही बल्कि अवसाद बीमारी मान ली गयी है।जो की अच्छी बात है। अवसाद से गाहे बगाहे बहुत से लोग कभी न कभी गुजरते ही हैं। अक्सर अवसाद में रहने वाला व्यक्ति जान भी नही पाता की वह अवसाद में है। उसके आसपास के लोग यदि उसे ध्यान दें तो थोड़ा जानना आसान है। कुछ के लक्षण तो दिखते भी नही।

मसलन कभी कभी बहुत खुश रहने वाला व्यक्ति भी आत्महत्या करके सब को चौका देते है।ज़रूरी नही वह बाहर से भी दुःखी दिखाई दे। जो बातें दूसरों के लिए छोटी होती है। किसी के लिए बड़ी होती हैं।

प्रेमी प्रेमिका के लिए आत्महत्या खासकर कम उम्र के लोगों में या कभी कभी मैच्योर लोगों में भी देखी जाती है।आत्मकेंद्रित लोग जिन्हें लगता है उनका कोई ख़याल नही रखता। उनके न रहने से किसी को कोई फर्क नही पड़ेगा। कभी कभी तथाकथित इज़्ज़त आदि के लिए ,किसी कार्य की असफलता के कारण लोग इस तरह के कदम उठाते हैं। ये वे लोग हैं, जिनके जीवन की ड्राइवर सीट पर वे स्वयं न बैठकर दूसरों को बिठा देते है।

मनुष्य एक जैविक प्राणी है। सोना,हँसना, रोना,मनोरंजन, भूख,सेक्स,विषम लिंगी की तरफ आकर्षण ,सजना सवरना आदि। इन सब में यदि किसी में असामान्य लक्षण दिखे तो अवश्य ध्यान देना चाहिए,बहुत ज़्यादा एकांत। यह सब मनोविकार अवसाद का कारण हो सकता हैं। जिसका अंत आत्महत्या हो सकती है। कभी - कभी कुछ लोग अवसाद में शांत या किसी नशे के शिकार भी हो सकते हैं। 

परिस्थिति जन्य समस्या से बाहर निकला जा सकता है। हम एक शरीर है,जिसमें बहुत सी रसायनिक क्रियाएं होती रहती है।उन क्रियाओं से हममें अनेक परिवर्तन आते है। हमारे हार्मोन्स पर भी उनका गहरा असर होता है। इसलिए मेडिकल की सहायता से इन हार्मोन्स को हमारे अनुकूल किया जा सकता है। अकसर आत्महत्या करने वालों के लिए कायर डरपोक जैसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है। जो की पूरी तरह सही नही है।

जिस तरह एक मरीज़ को हम ट्रीट करते है। वैसे ही इसे भी देखना चाहिए।मेरे बचपन के दिनों में एक दूजे के लिए एक फ़िल्म आई थी। मुझे याद है उस फिल्म के बाद कई प्रेमी प्रेमिकाओं ने आत्महत्या की थी। चूंकि उस फ़िल्म के नायक नायिका फ़िल्म के अंत मे आत्महत्या करते है। यह एक बिडंबना ही है कि सेलिब्रिटी की आत्महत्या से भी सामान्य जन प्रभावित होता है। कई रिसर्च है जिसमें किसी सेलिब्रिटी की आत्महत्या के बाद आत्महत्याओ में बढोत्तरी देखी गई है। इस तरह की घटनाओं को जब आप किसी भी प्लेटफॉर्म पर देखें तो उसे देखने से बचें।

हमारे यहां तो कभी कभी किसी सेलिब्रिटी की आत्महत्या के बाद सोशल मीडिया टीवी पर बहार ही आ जाती है। कोई टब में मर गया तो एंकर टब में पानी भरकर बैठकर रिपोर्टिंग करता है। मनोरंजन बना दिया जाता है। इसका भी हमारे जीवन पर गहरा असर पड़ता है।

लोग अपनी तुलना आत्महत्या करने वाले व्यक्ति से कर उसी तरह का कदम उठा लेते है। हमें इससे बचना भी होगा, दूसरों को भी बचाना होगा। दूसरों से अपनी तुलना न करें। आप जैसे है आप जैसा सन्सार में दूसरा कोई नही।हर व्यक्ति लाखों करोड़ों वर्षों में उस जैसा पहली बार ही पैदा हुआ है।हर व्यक्ति इस संसार मे कम से कम एक व्यक्ति के लिए ही सही दुनियां का सब से प्यारा व्यक्ति है।

अपना महत्व समझें लोगों की राय आप के बारे में क्या है।इससे ज़्यादा महत्वपूर्ण है आप की राय आप के बारे में क्या है।जीवन को घोड़ा बनाएं उसकी लगाम आप के हाथ होगी। जीवन को हाथी न बनाएं हाथी पर बैठे भी तो आप महावत के ऊपर निर्भर होंगे।यह हाथी तामझाम वाले मित्र,परिवार  समाज है। अपनी बातें किसी से शेयर करें सब आप ही की तरह हैं। 

आप की सफलता और असफलता औरों की तरह ही है। इतने बड़े सन्सार में किसी भी मामले में आप अकेले नही....लोगों से कहें ..कोई तो सुनेगा...आप की कोई भी समस्या सिर्फ आप अकेले नही झेल रहे या लड़ रहे,उसी या उस जैसी समस्या से लाखों करोड़ों लोग जूझ रहे हैं...

संकलन : विनोद कुमार दुबे, शिक्षक, भांडुप, मुंबई 

हम सभी किसी ना किसी रूप में जरूरतमंदों की सेवा कर सकते हैं | पड़ोसी भूखा नहीं सोए इसका ध्यान रखें |

" संस्कार सृजन " कोरोना योद्धाओं को दिल से धन्यवाद देता है |

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