आचार्य महाश्रमण ने किया दुर्लभ पांडुलिपियों के संरक्षण केंद्र का अवलोकन

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संस्कार सृजन राम गोपाल सैनी

लाडनूं (संस्कार सृजन) जैन विश्वभारती संस्थान विश्वविद्यालय के अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण ने विश्वविद्यालय के केंद्रीय पुस्तकालय 'वर्धमान ग्रंथ‌‌ागार' का भ्रमण करके वहां स्थित दुर्लभ पांडुलिपियों के सरक्षण केन्द्र का अवलोकन किया। 

इस दौरान कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने अनुशास्ता को केंद्रीय पुस्तकालय की गतिविधियों से अवगत करवाते हुए बताया कि पुस्तकालय की लगभग सभी गतिविधियों को तकनीक के सहयोग से स्वचालित किया जा रहा है एवं पुस्तकालय में विद्यमान जैन एवं जैनेतर सम्प्रदाय की लगभग 6 हजार से अधिक पांडुलिपियों के वृहद् भण्डार को दीर्घकाल के लिए सुरक्षित एवं संरक्षित करने के लिए भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के आर्थिक सहयोग से पांडुलिपि संरक्षण केंद्र की स्थापना की गई है।

पिछले तीन सालों से यहां स्थापित पांडुलिपि संरक्षण केंद्र के बारे में बताया कि केंद्र के माध्यम से भारतीय प्राचीन लिपियों में हस्तलिखित साहित्य का संरक्षण किया जा रहा है, जो हस्तप्रद 100 वर्ष से ज्यादा प्राचीन है तथा हस्तनिर्मित कागज पर लिखित हैं, उन सभी पांडुलिपियों में जैन आगम, संस्कृति, पुराण, ज्योतिष, व्याकरण, दर्शन, आचार तथा आयुर्वेद विषयक ज्ञान का भंडार है। आचार्यश्री महाश्रमण ने चरणबद्ध तरीके से पांडुलिपियों के संरक्षण की विधि को देखा तथा केंद्र द्वारा किये जा रहे इस महत्त्वपूर्ण कार्य की सराहना भी की। 

केंद्र में कार्यरत सुरभि जैन ने प्रायोगिक विधि द्वारा किए जाने वाले संरक्षण कार्य को दिखाया तथा डॉ. योगेश कुमार जैन ने जीर्ण अथवा टूटने वाले पत्रों के संरक्षण के साथ ही स्याही निकल जाने अथवा फैलने वाले हस्तप्रद के संरक्षण की आधुनिक विधि की जानकारी दी। प्राचीन काल में संरक्षण हेतु हल्दी, लौंग, सूखे नीम के पत्ते एवं कपूर की गोली की पोटली बनाकर हस्तप्रद के साथ रखा जाता था, परंतु अब आधुनिक तरीके में इनके स्थान पर हस्तप्रद की उम्र बढ़ाने के लिए विविध केमिकल, पारदर्शी पेपर, हस्तनिर्मित कागज़, हार्डबोर्ड एवं कॉटन का लाल कपड़ा उपयोग में लिया जाता है। संरक्षित पाण्डुलिपियों का सम्पूर्ण विवरण कंप्यूटर के माध्यम से सुरक्षित किया जा रहा है, जिससे पाण्डुलिपियों पर शोध करने वाले शोधकर्ताओं को सम्पूर्ण जानकारी सहज मिल सके।

इस केंद्र में लिपिबद्ध एवं चित्रित पांडुलिपि का संरक्षण कार्य किया जा रहा है। केंद्र द्वारा चौबीस तीर्थंकर के जीवन दर्शन पर आधारित 31 फुट लंबे कागज़ के चित्रित पट का संरक्षण भी किया है, जो कि लगभग फट चुका था तथा उसका कागज़ गल गया था। इस चित्रित पट को पुनः सुरक्षित देख आचार्यश्री महाश्रमण ने प्रसन्नता व्यक्त की तथा कार्य की सराहना के साथ ही केंद्र के दिशानिर्देशक संस्थान के कुलपति प्रो. दूगड़ को आशीर्वाद भी प्रदान दिया। पुस्तकालय कर्मचारियों द्वारा आचार्यश्री के समक्ष पुस्तकालय में संरक्षित दुर्लभ ग्रंथों एवं पुस्तकों के संग्रह को भी प्रदर्शित किया गया। उन्होंने सभी गतिविधियों का सूक्ष्मता से अवलोकन किया। 


इस भ्रमण के दौरान मुख्यमुनि मुनिश्री महावीर कुमार, संस्थान के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनिश्री कुमार श्रमण, मुनि कीर्ति कुमार एवं मुनि विश्रुत कुमार, धरमचंद लुंकड़, जीवनमल मालू, प्रो. आनंद प्रकाश त्रिपाठी, प्रो. बनवारीलाल जैन आदि उपस्थित रहे।


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