अगर आपको कोरोना हुआ है तो ये खबर जानना है बहुत जरूरी

जीवन अनमोल है इसे आत्महत्या कर नष्ट नहीं करें !

हम सब मिलकर ऑक्सीजन,बेड,इंजेक्शन और वेंटीलेटर दिलाएं !

मास्क लगाकर रहें ! सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखें !

संस्कार न्यूज़ राम गोपाल सैनी

जयपुर (संस्कार न्यूज़) कोरोना के बाद आंखों पर घातक अटैक कर रहा फंगल इंफेक्शन लोगों की रोशनी छीन रहा है। इससे कैसे बचा जा सकता है और यह किस हद तक खतरनाक है, क्या इससे मौत हो सकती हैं, इसकी सर्जरी में क्या ध्यान रखा जाना जरूरी है? देश भर के डॉक्टर्स ने कुछ ऐसे ही सवाल पूछे और सर्जरी की गहनता के बारे में जाना।

शहर के जैन ईएनटी हॉस्पिटल से की गई लाइव सर्जरी में देश भर के 11000 से अधिक डॉक्टर्स जुड़े और उन्होंने लाइव सर्जरी के दौरान ही सवालों की जानकारी ली। डॉ. सतीश जैन ने दो दिन में ऐसे 11 केस किए और इन सभी का लाइव डॉक्टर्स ने देखा और सीखा।

इस समय यह महत्वपूर्ण इसलिए कि डायबिटीज पेशेंट में कोरोना के बाद म्यूकोर माइकोसिस हो रहा है और न केवल लोगों की आखें हमेशा के लिए खराब हो रही हैं बल्कि फंगस दिमाग तक फैलने से मौतें भी हो रही हैं।

म्यूकोर माइकोेसिस जैसे घातक फंगस के असर और इलाज को लेकर जवाब जो आप जानना चाहते हैं

सवाल : म्यूकोर माइकोसिस क्या है, कहां असर डालती है?
म्यूकोर माइकोेसिस घातक फंगस है जो नाक के रास्ते खून की नसों से शरीर में फैलता है। जिनकी इम्युनिटी कमजोर होती है, उनमें यह तेजी से फैलता है। बीमारी सबसे पहले नाक को संक्रमित करती है। अगर मरीज को तत्काल इलाज मिल जाए तो आंखों का संक्रमण काफी हद तक रोका जा सकता है।

सवाल : कोरोना काल में यह बीमारी तेजी से क्यों फैल रही है ?
कोविड -19 शरीर में लिंफोसाइट्स कम करती है और शरीर में कई साइटोकाइंस का स्त्रावण करती है। यदि व्यक्ति को साथ में डायबिटीज हो तो खतरा बढ़ जाता है। ऐसे रोगियों के इलाज में स्टेरोइड्स का इस्तेमाल किया गया है तो वह खतरनाक हो जाता है। यह बीमारी कोरोना संक्रमित उन्हीं रोगियों को पकड़ती है जिनको डायबिटीज हो और इलाज में स्टेरोइड्स दिया गया हो।

सवाल : डायबिटीज होने एवं स्टेरोइड्स लिए जाने पर किस तरह से इस बिमारी को होने से रोका जा सकता है ?
कोविड में स्टेरोइड्स साइटोकाइन्स को स्त्राव का असर कम करने कारगर रहे हैं। स्टेरोइड्स का इस्तेमाल कम लक्षण वाले मरीजों पर नहीं होना चाहिए। शुगर कंट्रोल होना चाहिए। अत्यधिक एंटीबाडीज एवं इम्मुनोमोडुलेटर दवाइयों के इस्तेमाल से भी बचना चाहिए।

सवाल : इसके क्या लक्षण हैं? क्या इसकी स्टेज हैं ?
बीमारी नाक से शुरू होती है और नाक में सूखापन, सुन्नपन, कालापन, तालुवे में कालापन, दांतों का ढीलापन, नाक के पास एवं गले में सूजन। बीमारी बढ़ने आंखों में सूजन, लाल होना, आंखें बंद होना एवं अंधापन। सिर में तेज दर्द एवं हाथ पांव में कमजोरी दिमाग में फैलने का लक्षण हैं। कारगर जांच कॉन्ट्रास्ट एमआरआई है।

सवाल : इलाज क्या है और सफलता कितनी है ?
इस बीमारी का मुख्यतः इलाज फंगस के इंजेक्शन एवं दवा है। फंगस से नसों में खून का दौरा बंद हो जाता है और गैंगरीन हो जाता है। दवाएं टारगेट तक नहीं पहुंचती। गैंगरीन को दूरबीन ऑपरेशन से हटाया जाता है। ऑपरेशन के बाद 7-10 दिन एम्फोटेरीसीन-बी इंजेक्शन दिया जाता है। इस पर प्रतिदिन 25-30 हज़ार रू. खर्चा होता है। बाद में फंगस की अन्य दवाई 3 महीने तक दी जाती है।


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