माता पार्वती ने भोलेनाथ से छिपाई थी यह बात, तभी से पत‍ि से छ‍िपाकर रखती हैं गणगौर व्रत

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संस्कार न्यूज़ @ राम गोपाल सैनी 

(संस्कार न्यूज़) गणगौर का व्रत चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाने वाला व्रत है| 'गणगौर तृतीया', 'गौरी तीज' के नाम से जाना जाता है| यह व्रत मुख्यतः राजस्थान का पर्व है| इस बार यह यह व्रत 15 अप्रैल 2021 को रहेगा| यह व्रत सुहागिने अपने पति की लंबी आयु की कामना, सुख समृद्धि के लिए रखती हैं| इस व्रत के नाम में 'गण' का अर्थ शंकर भगवान है तथा 'गौर' का अर्थ गौर माता यानि पार्वती जी है| दोनों मिलकर 'गणगौर' नाम हुआ|

अंतर्राष्ट्रीय भविष्यवक्ता पंडित रविन्द्राचार्य के अनुसार इस व्रत को करने की विधि यह है कि होली की राख से महादेव जी बनाकर सुहागिने पूजा करती हैं तथा यह पूजन मुख्यतः 16 दिन चलता है | चैत्र कृष्ण तृतीय से चैत्र शुक्ल तृतीया तक तथा चैत्र शुक्ल तृतीया 'गणगौरी तृतीया' के दिन व्रत रखकर पूर्ण होता है | 16 दिन तक सुहागिने माता का पूर्ण सोलह श्रृंगार करके पूजन करती है तथा  मिष्ठान आदि का भोग लगाती है एवं प्रसाद ग्रहण करती है| 16 वें दिन छेत्र शुक्ल तृतीया को माता एवं महादेव जी का श्रृंगार करती हैं एवं स्वयं भी 16 श्रृंगार करके पूजन करती हैं|

मिष्ठान आदि का भोग लगती हैं एवं अपने पीहर जाकर व्रत का पारणा खोलती है| पूजन के वक्त मां पार्वती से अपने सुहाग की दीर्घायु तथा अपने परिवार की खुशहाली की कामना करती है| इसके पीछे एक दंतकथा यह है कि एक बार भोलेनाथ वह मां पार्वती भ्रमण के लिए निकले और उस दिन चेत्र शुक्ल तृतीया थी| उनके आने का समाचार पाकर सभी नगरवासी उनके स्वागत की तैयारी में जुट गए| जिन्होंने सच्चे मन से मां पार्वती वह भोलेनाथ की आवभगत की उन पर मां प्रसन्न हुई और उन्हें सुहाग रस के छींटे मारे, जिससे उनके सुहाग की रक्षा हुई एवं वे स्त्रियां सौभाग्यशालिनी हो गई| पश्चात मां पार्वती जी ने भोलेनाथ से अनुमति लेकर स्नान करने की इच्छा प्रकट की तब वे एक नदी के तट पर स्नान करके बालू के महादेव जी बना कर पूजन करने लगी |

इस तरह पूजन में थोड़ा वक्त ज्यादा लग गया तथा पूजन से निवृत होकर वे भोले बाबा के पास गई| तब शंकर भगवान ने उनके देरी से आने का कारण पूछा तो पार्वती जी ने उनसे पूजन की बात छुपाते हुए कहा कि पास में उनके पीहर वाले ठहरे थे तो उनकी मान मनुवार से वे पीहर में भोजन लेने रुक गई| अंतर्यामी भोले बाबा ने अपनी अंतर्दृष्टि से सब जान लिया कि ऐसा कुछ नहीं है सिर्फ मां अपने पूजन को गुप्त रखना चाहती थी अतः भोलेनाथ सिर्फ मुस्कुरा दिए|

तभी से यह मान्यता है कि यह यह पूजन गुप्त रूप से करना चाहिए एवं व्रत का पारणा पीहर में करना चाहिए| महादेव जी व पार्वती जी की कृपा से व्रती की सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती है| इस व्रत का उद्यापन भी पूरे विधि विधान से होता है 16 सुहागिनों को भोजन करवाने के साथ उन्हें सारी सुहाग सामग्री भेंट की जाती है एवं आदर पूर्वक उन्हें विदा किया जाता है|


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