ढ़ाई आखर प्रेम का नाटक ने विवाह की विसंगतियों के प्रदर्शन से दर्शकों का जीता दिल

जीवन अनमोल है , इसे आत्महत्या कर नष्ट नहीं करें !

सुबह की शुरुआत माता-पिता के चरण स्पर्श से करें !

संस्कार सृजन राम गोपाल सैनी 

जयपुर (संस्कार सृजन) कलंदर संस्था, जयपुर की ओर से राजस्थान इंटरनेशनल सेंटर में प्रसिद्ध नाट्य लेखक वसंत कानितकर द्वारा लिखित एवं रुचि भार्गव नरूला द्वारा निर्देशित नाटक "ढाई आखर प्रेम का" का मंचन हुआ।


"ढाई आखर प्रेम का" वसंत कानेटकर द्वारा लिखित प्रसिद्ध मराठी नाटक "प्रेमा, तुझा रंग कसा?" का हिंदी अनुवाद है, जो प्रेम की जटिलताओं और उसके विभिन्न रंगों को दर्शाता है। इस नाटक का दार्शनिक चिंतन प्रेम की परिभाषा को लेकर युवा और पुरानी पीढ़ी के सोच और व्यवहारिक अंतर को व्यंगात्मक एवं हास्य रूप में प्रदर्शित करता है। 

नाटक में प्रेम को एक बहुआयामी भावना के रूप में दिखाया गया है, जो व्यक्ति के जीवन को प्रभावित करती है। प्रेम के विभिन्न रंग होते हैं। नाटक में प्रेम और विवाह के बीच के संबंधों को भी उजागर किया गया है। प्रेम जब विवाह में बदलता है, तो कई विसंगतियाँ उत्पन्न होती हैं। नाटक में दिखाया गया है कि कैसे प्रेम की उदात्त भावना विवाह के व्यवहारिक रूप में बदलते ही बदल जाती है। विवाह और प्रेम जीवन के ऐसे  पहलू हैं जो प्रत्येक व्यक्ति को स्वयं से जोड़ने में का सशक्त माध्यम बनते हैं इसलिए प्रत्येक दर्शक को पग पग पर लगता है कि यह नाटक की कहानी उनके जीवन से मिलती-जुलती है। यही कारण रहा कि सभी दर्शकों ने नाट्य मंचन में स्वयं के जीवन की छवि देखी और भरपूर उल्लास से मंचन का आनंद लिया।

नाटक में प्रेम की जटिलता को भी दर्शाया गया है। प्रेम में व्यक्ति की भावनाएँ, वृत्तियाँ, और स्वभाव एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। नाटक में दिखाया गया है कि कैसे प्रेम में व्यक्ति की अपेक्षाएँ, आशाएँ, और निराशाएँ एक दूसरे से जुड़ी होती हैं।

प्रेमी, प्रेमिका,पंडित जी , प्रोफेसर और पिताजी के रूप में सभी किरदारों ने दर्शकों को खूब हंसाया और दर्शकों ने जीवन की अटखेलियों को समाज में अपने चारों तरफ होने वाली घटनाओं से जोड़ा और हंसी के ठहाके लगाए।

प्रेम एक जटिल और बहुआयामी भावना है, जो व्यक्ति के जीवन को गहराई से प्रभावित करती है। नाटक में प्रेम के वभिन्न रंगों और जटिलताओं को दर्शाया गया है, जो व्यक्ति को अपने जीवन के बारे में सोचने के लिए प्रेरित करता है।

नाटक में प्रियंवदा के किरदार में रुचि भार्गव नरूला, प्रोफेसर वर्मा के किरदार में कार्तिकेय मिश्रा ,बाजा बाबू के रूप में मनन शर्मा, बच्चू  के रूप में अनिमेष आचार्य ,बबली के रूप में रिया शर्मा ,सुशील के पात्र में प्रतीक्षा सक्सेना और पंडित जी के रूप में सर्वेश व्यास ने अपने-अपने पात्रों को बखूबी निभाया।

पंडित जी के संवाद :-

 "प्रेम शब्दों में नहीं बोलता ।वह तो दो मजबूत बाहों से बोलता है।" 

और प्रोफेसर की भूमिका में कार्तिकेय मिश्रा के संवाद "प्रेम जैसी सुंदर भावना क्या युवकों के मन को फुसला सकती है।फुसलाने वाला कोई और है। उन दोनों को प्रेम के बंधन में बांधने वाला जादूगर कुछ और ही करामात दिखाता है।आप लोग नाहक ही  लाल पीले क्यों होते हैं ।"

"देखो बेटा ऐसे दिल छोटा नहीं करते, शादी के होम हवन के बाद, प्यार का तमाम चटकीला रंग पिघल कर बहने लगता है जो बच रहता है वो है अनगढ इंसान बेटा अगर रोमियो-जूलियट, लैला-मजनू इन्होंने भी प्यार करके, शादी करके, घर बसाया होता तो इन्हें भी इस अनंत सत्य के दर्शन हो जाते की चॉइस में खा गए गच्चा"

बाजा के किरदार में मनन शर्मा का संवाद "दिव्य प्रेम क्या नहीं संभाल पाता" जैसे संवादों ने जमकर दर्शकों की तालियां बटोरीं। नाटक कभी हंसाता है कभी रुलाता है और कभी सीधे दर्शकों के दिल में उतर जाता है।

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