स्मार्ट डिजिटल युग में परिवार ऑनलाइन और भावनाएँ ऑफलाइन

जीवन अनमोल है , इसे आत्महत्या कर नष्ट नहीं करें !

सुबह की शुरुआत माता-पिता के चरण स्पर्श से करें !

संस्कार सृजन राम गोपाल सैनी 

सीकर (संस्कार सृजन) आज के स्मार्ट युग की सबसे बड़ी विडंबना यही है कि परिवार अब स्क्रीन पर दिखते हैं, दिलों में नहीं । एक समय था जब रिश्ते आंगन में पनपते थे । संवाद आँखों से होता था, हालचाल ह्रदय से जुड़ते थे । पर आज, रिश्ते व्हाट्सएप ग्रुप में, फेसबुक पेज में बदल गए हैं और संवाद स्माइली और इसकी स्टीकर्स में सिमट गया है । हम स्मार्ट युग में स्मार्ट हो गए हैं लेकिन क्या सच में संवेदनशील भी रह गए हैं ? फैमिली ग्रुप सूचना का मंच, आत्मीयता शून्य, आज लगभग हर घर में कोई न कोई फैमिली ग्रुप जरूर है पर उसने आता क्या है ? हैप्पी बर्थडे पापा, हैप्पी एनिवर्सरी भैया भाभी और सुप्रभात लेकिन जब परिवार का कोई सदस्य बाहर जाता है, किसी संकट से जूझ रहा होता हैं तो वही ग्रुप साइलेंट मोड में चला जाता है ।


वही सदस्य अपने दोस्तों को पहले बताता है, इंस्टाग्राम स्टोरी पर लोकेशन डालता है…. और घर में कोई तीसरा सदस्य ‘चौथ’ पूछता है वो आ गए क्या ? कब गए थे ? क्यों गए थे ? ये रिश्तों का साक्षात अपमान है । यह बताता है कि हमने स्मार्ट होने के चक्कर में तकनीक तो अपना ली, पर आत्मीयता को छोड़ दिया । स्मार्ट युग में जन्मदिन, मैरिज एनिवर्सरी के दिन व्हाट्सएप स्टेटस लगाना, इंस्टाग्राम स्टोरी अपलोड करना फिर पूरे दिन लाइक, कॉमेंट्स में डिजिटल रहना । यही स्मार्टनेस अधिकतर लोगों की डिजिटल जिंदगी का हिस्सा बन चुकी है । परिवार या समाज में अप्रिय घटना होने पर, डिजिटल रूप में शोक व्यक्त करना इसके साथ ही चाहे पर्यावरण संरक्षण हो, बाल विवाह हो या बालश्रम जैसे मुददे हो सभी ऑनलाइन मोड में ऑफ लाइन होकर ज़ीरो परिणाम के साथ समाज का हिस्सा बन चूके है ।

इस स्मार्ट युग में शब्द है, संवाद नहीं, समूह है, समर्पण नहीं । हमने परिवारों को स्मार्ट होने के चक्कर में डिजिटल तो बना दिया पर भावनाओं को म्यूट कर दिया है और जीवन को फॉरवर्डेड मैसेज में उलझा दिया है । हमारे जीवन में पश्चिमी जीवनशैली की नकल इतनी गहराई तक समा चुकी है कि भावनाएँ बोझिल लग रही है । रिश्ते… केवल रिएक्ट और ब्लू टिक तक ही सीमित रह गए है । जहाँ पहले घर लौटते ही माँ की आंखें दरवाजे पर होती थी, आज लोकेशन ऑन होती है । जहाँ पहले हर बार सबसे पहले परिवार को बताई जाती थी, आज स्टेटस डाल दिया जाता है सब को पता चल गया होगा यही सोच चल रही है l

सरकारे निरंतर विकास की चक्कर में इमारतें बना रही है, लेकिन हम दिलों की नींव खो रहे हैं आज भारत डिजिटल इंडिया की ओर बढ़ रहा है सड़कें, पुल, तकनीक, विभिन्न प्रकार की एप्स उपलब्ध हैं परन्तु भारतीयता की आत्मीयता, परंपरा ओर परिवार की गरिमा को हमने खो दिया, देखा जाये तो अगली पीढ़ी को खून के रिश्ते सिर्फ आईडी में मिलेंगे, एहसासों में नहीं । यह सिर्फ तकनीकी परिवर्तन नहीं यह सामाजिक शरण है । आजकल कई बुजुर्ग माता पिता वॉट्सएप ग्रुप में भी चुपचाप हैं । वे इंतजार करते हैं कि कोई पोता पोती पूछें दादा जी कैसे है नाना जी कैसे है ?, बस जवाब में सिर्फ इमोजी या फॉर्वर्डेड भक्ति सन्देश आते हैं । यह समाज भावनात्मक रूप से गूंगा बहरा हो गया है । 

समाधान की ओर कुछ संकल्प  रिश्ते बचेंगे, तो समाज बचेगा परिवार के ग्रुप को केवल शुभकामना मंच न बनाए… सुख दुख सब साझा करें क्योंकि मुश्किल समय में केवल परिवार के बड़े बुजुर्ग और बाकी के सदस्य ही काम आएंगे, ऑनलाइन लोग केवल इमोजी भेजने के प्रतीक माने जाएंगे । 

कोई घर से बाहर जा रहा है तो खुद पर्सनली बताए ग्रुप में लोकेशन्स, अनुमति और वापसी ये भी शेयर करें । बीमार हो, ऑपरेशन हो, मन उदास हो, कोई टेंशन हो बताए छिपाए नहीं । कैसे हो यह सवाल फ़ोन पर दिल से पूछे न सिर्फ मैसेज में । एक महीने में एक बार वीडियो कॉल से पूरे परिवार को जोड़ें जैसे कभी चौपाल लगती थी । आइए रिश्तों को फिर से जीवंत किया जाए वरना पीढ़ियों ऑनलाइन के चक्कर में ऑफ़लाइन ही रह जाएगी । ध्यान रखें वॉट्सऐप ग्रुप संवाद का माध्यम हो सकते हैं पर संबंधों का विकल्प नहीं ।

लेखक : डॉ. श्रवण कुमार फगेड़िया, सहायक आचार्य, सीकर, राजस्थान 

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