जीवन अनमोल है , इसे आत्महत्या कर नष्ट नहीं करें !
सुबह की शुरुआत माता-पिता के चरण स्पर्श से करें !
संस्कार सृजन @ राम गोपाल सैनी
जयपुर (संस्कार सृजन) हिंदू धर्म के सबसे बड़े त्यौहारों में से एक है। फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को होलिका दहन और फिर अगले दिन एक दूसरे को रंगों से सराबोर कर देने वाले इस त्यौहार का इंतजार, नए साल की शुरुआत के साथ ही शुरू हो जाता है। खुशियों और उमंग से भरे होली के त्यौहार को मनाने के लिए लोग महीने भर पहले से ही तैयारियां शुरू कर देते हैं। हर आयु वर्ग के लोगों में इसे लेकर उत्साह देखने को मिलता है। यूं तो पूरे देश में होली के त्यौहार को बड़ी धूमधाम के साथ सेलिब्रेट किया जाता है लेकिन इसके बावजूद देश में कुछ ऐसी जगह भी हैं, जहां ये हर्ष और उल्लास का त्यौहार नहीं बल्कि एक दुख की वजह है। यही कारण है कि इन जगहों पर होली नहीं मनाई जाती है। आइए आज इन्हीं जगहों के बारे में जानते हैं
राधारानी के बृज के कुछ हिस्सों में नहीं होती होली
होली का त्योहार भगवान श्री कृष्ण और राधा रानी का प्रिय त्यौहार माना जाता है। मथुरा और वृंदावन की होली तो पूरे विश्व में पॉपुलर है। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि राधा रानी के बृज के कुछ गांवों में होली का त्यौहार नहीं मनाया जाता है। इसके पीछे की वजह बताई जाती है कि एक बार राधा रानी किसी कारणवश नाराज हो गई हैं और उन्होंने किसी को रंग नहीं लगाने दिया था, तब से वहां पर होली नहीं मनाई जाती है।
मध्य प्रदेश के एक गांव पर है संत का श्राप
मध्य प्रदेश राज्य के एक गांव में भी होली का त्यौहार नहीं मनाया जाता। इस गांव का नाम है 'कूचीपुरा' जो मध्य प्रदेश राज्य के भिंड जिले में स्थित है। बताया जाता है कि सदियों पहले एक संत ने किसी बात पर नाराज होकर कूचीपुरा गांव के निवासियों को यह श्राप दिया था कि अगर वो लोग होली का त्यौहार मनाएंगे, तो उनके परिवार पर कोई ना कोई विपत्ति आ जाएगी। संत के श्राप का ही नतीजा है कि आज तक इस गांव में होली का त्यौहार नहीं मनाया जाता है।
रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड के कुछ गांवों में भी नहीं मनाई जाती होली
उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले के दो गांव 'क्विली' और 'कुरझान' में भी होली का त्यौहार नहीं मनाया जाता है। पिछले 150 सालों में गांव वालों ने एक बार भी होली का त्यौहार नहीं मनाया है। दरअसल यहां के लोगों का यह कहना है कि गांव की देवी त्रिपुर सुंदरी को शांति पसंद है। शोर-शराबा होने पर वो नाराज हो जाती हैं। यही वजह है कि इन गांवों के निवासी कोई भी ऐसा त्यौहार नहीं मनाते हैं, जिसमें शोर-शराबा होता है। इन त्योहारों में होली भी शामिल है।
हरियाणा के कैथल के एक गांव में भी नहीं खेली जाती होली
हरियाणा राज्य के कैथल जिले में स्थित दुसेरपुर गांव में भी होली का त्यौहार नहीं मनाया जाता है। इस गांव में रहने वाले लोगों का कहना है कि सालों पहले होलिका दहन के दिन कुछ शरारती लड़कों ने समय से पहले ही होलिका दहन करना शुरू कर दिया, जिस पर एक साधु ने उन्हें रोकने का प्रयास किया। साधु के रोकने पर लड़कों ने साधु का भी मजाक उड़ाना शुरू कर दिया, जिससे क्रोधित होकर साधु ने होलिका की अग्नि में कूद कर जान दे दी और श्राप दिया कि अब कभी इस गांव में होली नहीं मनाई जाएगी। साधु के श्राप के डर से ही इस गांव में कोई भी होली नहीं मनाता है।
तमिलनाडु राज्य के एक क्षेत्र में भी होली नहीं मनाई जाती
तमिलनाडु के धर्मपुरी क्षेत्र में बसे कुछ गांवों में भी होली का त्यौहार नहीं मनाया जाता है। यहां के लोगों की मान्यता है कि होली के दिन कुछ लोगों ने यहां की देवी का अपमान किया था, जिसकी वजह से देवी नाराज हो गई थीं। इसके बाद से ही यहां होली का त्यौहार नहीं मनाया जाता है।
गुजरात के एक गांव में भी नहीं होती होली
गुजरात राज्य का एक गांव रामसन भी होली के दिन बिल्कुल सूना रहता है क्योंकि यहां पर होली का त्यौहार नहीं मनाया जाता है। इसके पीछे की वजह बताई जाती है कि करीब 200 साल पहले कुछ संतों ने इस गांव को श्राप दिया था। यही वजह है कि पिछले 200 साल से इस गांव में कभी होली नहीं मनाई गई।
महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र में होली नहीं मनाई जाती
महाराष्ट्र राज्य के कोंकण क्षेत्र में स्थित कुछ गांवों में होली का त्यौहार नहीं मनाया जाता है। इसके पीछे की वजह बताई जाती है कि सालों पहले होली के दिन गांव में प्राकृतिक आपदा आई थी। इस आपदा में गांव को बहुत नुकसान हुआ था, जिसके चलते आज भी यहां के लोग इस दिन को अपशगुन के तौर पर मानते हैं और होली का त्यौहार नहीं मनाते।
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