वर्तमान भारतीय शिक्षा व्यवस्था, शिक्षा का व्यापार अत्यंत चिंताजनक

जीवन अनमोल है इसे आत्महत्या कर नष्ट नहीं करें !

सुबह की शुरुआत माता-पिता के चरण स्पर्श से करें !

संस्कार सृजन राम गोपाल सैनी

जयपुर (संस्कार सृजन) वर्तमान समय में भारतीय शिक्षा प्रणाली में कई चुनौतियाँ और मुद्दे देखे जा सकते हैं। बच्चों को बेहतर और उन्नत शिक्षा प्रदान करने के लिए इन चुनौतियों और मुद्दों को हल करने की आवश्यकता है। देश के लिए एक स्थायी भविष्य सुनिश्चित करने के लिए बच्चों को उचित शिक्षा प्रदान की जानी चाहिए। स्वतंत्रता के बाद से अब तक भारतीय शिक्षा प्रणाली में बहुत कुछ बदल गया है। हालाँकि, समग्र शिक्षा प्रणाली में कुछ समस्याएँ और खामियाँ बनी हुई हैं जिन्हें दूर करने की आवश्यकता है। आइए भारतीय शिक्षा व्यवस्था पर चर्चा करते हैं।


भारत की वर्तमान शिक्षा प्रणाली में मुद्दे भारत की वर्तमान शिक्षा प्रणाली में समस्याओं को निम्नलिखित रूप में रेखांकित किया गया है। 

क्षमता उपयोग:- वर्तमान समय में रचनात्मक दिमाग की बहुत आवश्यकता है। इसलिए, भारत सरकार को स्कूलों को प्रोत्साहित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए ताकि वे छात्रों की रचनात्मकता को बढ़ावा दें और यह सुनिश्चित करें कि छात्रों के विचारों को अनसुना न किया जाए। 

ब्रांडिंग और मान्यता: गुणवत्ता मानक पीपीपी मॉडल:- उचित रूप से डिज़ाइन किया गया पीपीपी मॉडल स्कूल प्रणाली के भीतर शिक्षा को सुविधाजनक बना सकता है। इन पीपीपी मॉडल या निजी सार्वजनिक मॉडल को ध्यान में रखा जाना चाहिए। 

शिक्षक-छात्र अनुपात:- यह देखा जा सकता है कि उचित शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों की संख्या उपलब्ध शिक्षकों और संकायों की तुलना में बहुत अधिक है। इसलिए, उचित रूप से योग्य शिक्षकों को नियुक्त करने की आवश्यकता है ताकि वे देश की बेहतरी के लिए ज्ञान प्रदान कर सकें। 

शिक्षा बनी व्यापार : - शिक्षा का उद्देश्य कल्याणकारी है, जिसकी व्यवस्था की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की है। हमें तो लुट लिया मिलके... शिक्षा के लुटेरों ने ..कहा जाएं तो गलत नहीं होगा आज के दौर और शिक्षा के हालात को देखकर।

"तमसो मां ज्योतिर्गमय" शिक्षा... अंधेरे से उजाले की ओर बढ़ने का रास्ता है, लेकिन शिक्षा आज व्यवसाय बनकर रह गई है, अगर यह कहें तो गलत नहीं होगा। शिक्षा सबसे जरूरी है, शिक्षा हमारी संवेदनाओं को बढ़ाती है, तालमेल करना सिखाती है। एक अच्छा इंसान बनना सिखाती है, सही गलत का निर्णय लेने में अहम साबित होती है। आज शिक्षा का व्यवसाय सच माने तो चिंता का विषय है। आज शिक्षा को लोग अपने स्वार्थ के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। धीरे-धीरे यह व्यवसाय के रूप में बदल रहा है। शिक्षा को व्यवसाय बनाना बुरा नहीं है, लेकिन व्यापार बनाना बुरा है। क्योंकि तब लाभ कमाने की भावना जनकल्याण की भावना को निगल लेती है। शिक्षा मानवता के लिए है लेकिन हमने जो तरीका अपनाया है, वह गलत है। शिक्षा ने लोगों के बीच कई दीवारें खड़ी कर दी हैं। अमीर और गरीब की खाई बहुत चौड़ी हो चुकी है। माहौल ऐसा है कि बच्चों के मन में स्कूल या शिक्षक के प्रति कोई श्रद्धा नहीं रह गई, वहीं शिक्षा संस्थानों की बच्चों के प्रति कोई संवेदना नहीं रही है। शिक्षा.. केवल किताबी ज्ञान देकर पूरी कर दी जा रही है जहां न आचरण, न संस्कार, ना भावनात्मक विकास और ना अच्छे विचार दिए जाते हैं। वहां दी जा रही तो बस किताबी ज्ञान जो केवल पास, फेल और ग्रेड पर रुक गई है। मकसद बस पैसे कमाना ऐसे में शिक्षा पर व्यवसायीकरण का सवाल उठाना लाजमी है। क्या केवल शिक्षा आज व्यवसायीकरण बनकर रह गई है?

हां शायद सच यही है। शिक्षा की बात करें तो जहां कुछ लोग शिक्षा को घर-घर, हर छोटे से छोटे गांव, कस्बे तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं वही शिक्षा को कुछ लोग व्यवसाय का रूप देकर पैसा कमाने की होड़ में लगे हैं, जो एक गोरखधंधा का रूप ले चुका है। आज शिक्षा के नाम पर बहुत से संस्थाओं की स्थापना की गई है, पर पैसों की अधिक डिमांड की वजह से आम लोग वहां तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। 

शिक्षा का मतलब तमसो मा ज्योतिर्गमय" अंधेरे से उजाले की ओर ले जाने का अगर सबसे बड़ा सूत्र है तो वह है शिक्षा जिससे पूरा विकास संभव है। सरकारी संस्था की बात करें तो लाभ पहुंचाने के लिए शिक्षा का पूरा प्रयास किया गया जो अनिवार्य था किंतु इसमें भी कुछ लोगों ने मुनाफाखोरी की वजह से गरीब लोगों तक ठीक से पहुंचने नहीं दीया गया जिससे शिक्षा का समुचित लाभ लोगों तक नहीं पहुंच पाया। जो उद्देश्य था वह पूरा नहीं हो पा रहा। आज शिक्षा एक व्यवसाय का रूप ले चुका है। स्कूलों की मनमानी बढ़ती फीस और अभिभावकों का शोषण सब बढ़ता ही जा रहा है। 

कहा जाता है शिक्षक या गुरु सही मार्ग दर्शक बनकर अपनी भूमिका अदा कर समाज को एक सुंदर भविष्य की कल्पना में ले जाता है और एक सफल व्यक्ति देता है लेकिन आज वही शिक्षक पैसे कमाने में अपनी गरिमा भूलते जा रहे हैं। जीवन के रास्ते पर हम शिक्षा के महत्व को समझ भी रहे हैं। आज शिक्षा नीति की वजह से देश आगे बढ़ रहा है। शिक्षा को व्यवसाय बनाकर धन कमाने की होड़ में कुछ लोग शिक्षा से वंचित कर रहे हैं उन लोगों को, जो उनका भरपूर फीस अदा नहीं कर सकते। कई बच्चे वहां ऐसे हैं आज भी जो पूरी फीस भरने की ताकत न रख पाने की वजह से पढ़ाई पूरी नहीं कर पाते हैं। शिक्षा उनका हक है लेकिन बीच राह में छोड़नी पड़ती है। क्योंकि आज शिक्षा का व्यवसायीकरण होने लगा है। बच्चे की काबिलियत देखकर उन्हें सहयोग करने की बजाय फीस न भर पाने की वजह से पढ़ाई छुड़वा दी जाती है

पुराने जमाने में गुरु शिष्य की काबिलियत देखकर हर चीज त्याग कर उसे काबिल बनाते थे। शिक्षा देकर उसे आगे बढ़ाते थे, पथ प्रदर्शक बनकर सही राह दिखाते थे, पर आज सही राह दिखाने के बजाय जेबें भरना शिक्षा के नाम पर हो रहा है। कुछ शिक्षक आज भी है जो काबिलियत देखकर पूरी शिक्षा दे रहे हैं और दिल से आगे बढ़ा रहे हैं पर कुछ एक ऐसे हैं जिससे समाज में शिक्षा के नाम पर हो रहे व्यवसाय के कारण बदनाम भी हो रहें हैं।

शिक्षा के बिना विकास संभव नहीं शहर तो शहर, आज गांव में भी लोग पैसे की मांग इतनी रख रहे की गरीब तबके के लोग अदा नहीं कर पा रहे। चाहकर भी अपने बच्चे को आगे नहीं बढ़ा पा रहे, मनमानी फीस भी वसूली जा रही है। अगर शिक्षा की बात करें तो शिक्षक से ही सवाल पूछने पर गलत उत्तर बताए जा रहे। पैसे लेकर टीचरों की नियुक्ति की जा रही तो क्या शिक्षा देंगे बच्चों को वह जो बस पैसे कमाने आए हैं।

शिक्षा गई भाड़ में क्या फर्क पड़ता है उनको, पैसे तो मिलेंगे ही। ऐसी सोच उनकी है इसलिए कलयुग में ऐसे शिक्षकों की भरमार है जो केवल शिक्षा को व्यवसाय और पैसे कमाने का जरिया बना कर रखे हैं। गांव में शिक्षा का यह हाल है कि फीस दें भी दें तो स्कूल ड्रेस, किताबें आदि के पैसे नहीं भर पाने की वजह से हालत ऐसी है कि वह आगे नहीं पढ़ पाते। सच कहें तो सरकार को गांव और छोटे कस्बों की तरफ ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। अभीवाहक चाहते हैं उनके बच्चे पढ़ कर आगे बढ़े पर मोटी फीस भरने की काबिलियत नहीं है। मनमानी फीस रोकनी ही होगी। 

वर्तमान समय में देखा जाए तो शिक्षा एक व्यवसाय बन चुका है। हर वर्ष शिक्षा के व्यवसायी अपनी नई किताबें लगाते हैं। किताब के साथ ही कापी टाई बेल्ट ड्रेस आदि सभी कुछ विद्यालय में ही बेचते हैं। सब कुछ मिला करके लगभग 8-10 हजार रुपए का बिल बना देते हैं। जो जितना बड़ा विद्यालय है उतना ही बड़ी रकम वसूलते हैं।

शिक्षा के इस प्रकार व्यवसायीकरण के कारण सामान्य आदमी की एक बहुत बड़ी कमाई बच्चों की पढ़ाई में खर्च हो जाती है। यदि किसी के तीन-चार बच्चे हो तो माता-पिता कभी बच्चों के पढ़ाई के पैसे से नहीं उबर पाते हैं कि और कुछ कर सके। 

प्राइवेट विद्यालय में जहां इतनी फीस है वहीं सरकारी विद्यालयों की हालत इससे उलट है। एक तरफ खाई है तो दूसरी तरफ कुआं है ।आदमी आखिर जाए तो कहां जाए। सरकारी विद्यालयों के शिक्षक तो वैसे ही बदनाम है क्योंकि कुछ शिक्षक योग्य होते हुए भी बच्चों को पढ़ाना नहीं चाहते। और कुछ  जो अपनी जिम्मेदारी समझ थोड़ा बहुत पढ़ाते भी हैं उसमें भी सरकारी विद्यालयों के शिक्षकों को दुनियाभर के रजिस्टर बनाने में लगा दिया जाता है दुनिया भर के सरकारी कार्यों में शिक्षकों की ड्यूटी लगा विद्यार्थियों की शिक्षा का हनन किया जाता है 

शिक्षा समवर्ती सूची में है और इस अधिकार के नाते इसी सत्र से केंद्र सरकार इस धंधे पर लगाम लगा सकती है। मौजूदा केंद्रीय सरकार ने कई मोर्चों पर अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय भी दिया है। उसके लिए यह कोई कठिन काम नहीं है!यदि शिक्षा का व्यवसायीकरण बढ़ता जाएगा तो छोटे जगह और गांव के बच्चे आगे नहीं बढ़ पाएंगे, जो चिंता का सबब है। क्योंकि "पढ़ेगा इंडिया तभी तो बढ़ेगा इंडिया" आखिरकार सरकार को ठोस कदम उठाकर शिक्षा के व्यवसायीकरण पर रोक लगानी होगी ठेकेदारों की नकेल कसनी होगी जो इसे केवल एक व्यवसाय के तौर पर देख रहे हैं और अभिभावकों से मनमानी कर रहे हैं। सही शिक्षा जरूरी है हमें आगे बढ़ने के लिए देश की तरक्की के लिए। 

लेखक : डॉ. राकेश वशिष्ठ

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