श्री गोपीनाथ जी मंदिर में नित्यानंद प्रभु का 552वां प्राकट्य महोत्सव संपन्न

जीवन अनमोल है इसे आत्महत्या कर नष्ट नहीं करें !

सुबह की शुरुआत माता-पिता के चरण स्पर्श से करें !

संस्कार सृजन राम गोपाल सैनी

मथुरा (संस्कार सृजन) बृज 84 कोस परिक्रमा मार्ग में राधाकुंड के पास एक मात्र श्री गोपीनाथ जी मंदिर में स्थित नित्यानंद प्रभु का 552वां प्राकट्य दिवस पर सैकड़ों भक्तों ने पंचामृत से अभिषेक कर पूजा अर्चना की। नित्यानंद प्रभु की सेवायत उत्तराधिकारी 16वीं पीढी नीतिशा शर्मा हैं जो कृष्णभक्ति के साथ-साथ इनाया फाउंडेशन के माध्यम से समाजसेवा का काम कर रही हैं | साथ ही नित्यानंद प्रभु की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए कृतसंकल्प हैं ।


उन्होंने बताया की सुबह 9 बजे हुए अभिषेक के लिए सुबह 4 बजे से ही भक्तों का जमावड़ा शुरू हो गया। भक्तों ने भगवान का अभिषेक कर कीर्तन किया जो 11 बजे तक चलता रहा। अभिषेक के बाद आये हुए सभी भक्तों को प्रसादी वितरित की गई।

नितिशा शर्मा ने आगे बताया की चेतन्य महाप्रभु जी को ढूंढते हुए नित्यानंद प्रभु वृंदावन की जगह राधाकुंड पहुंच गए जो कि वृन्दावन से 15 किलोमीटर ही दूर है | वृंदावन से वह भी श्री राधा गोपीनाथ जी मंदिर जो की राधाकुंड के सामने ही स्थित है | सबसे प्राचीन मंदिर राधाकुंड में माना जाता है | यहीं पर वह निताई प्रभु चैतन्य महाप्रभु को ढूंढते इसी पवित्र स्थान पर आ गए जहां पर नित्यानंद प्रभु ने तपस्या की थी | चैतन्य महाप्रभु को याद करते हुए कहा जाता है कि नित्यानंद प्रभु जी ही बलराम जी का स्वरूप है जो श्री कृष्ण भगवान के ज्येष्ठ हैं |

श्री राधा गोपीनाथजी के सेवायत की 15वीं पीढ़ी में कृष्णा गोस्वामी हैं, जो एक अनुभवी वकील हैं और मथुरा सैशन कोर्ट में "संधिकर्ता" के रूप में पिछले पच्चीस सालों से सेवाएं दे रही है । इन पच्चीस सालों में कृष्णा ने दस हजार से भी ज्यादा परिवारों के बीच हुए विवादों को केवल समझाईश के माध्यम से सुलझाए । इसके चलते पूरे क्षेत्र में उन्हें "मां" जैसा सम्मान प्राप्त है।

मुगल शासक औरंगजेब के आक्रमण के दौरान, वृंदावन के प्रमुख द्वापर युग के मंदिरों, में से जैसे गोविंद देव जी, श्री राधा गोपीनाथ जी और मदन मोहन जी, को क्षति पहुंचाई जा रही थी । इस संकट के समय, गोपीनाथ जी की मूर्ति को बचाने के लिए उनके सेवायत महंतो ने उन्हें बैलगाड़ी में रखकर वृंदावन से राधाकुंड लेकर आए वृन्दावन के बाद पहला यही स्थान है जहां राधा कुंड में गोपीनाथ जी की मूर्ति लगभग 40-45 साल तक विश्राम किया और बाद में राधा कुंड में विश्राम के बाद कामा होते हुए जयपुर में गोपीनाथ जी की स्थायी स्थापना हुई, जहां आज भी वे भक्तों के श्रद्धा और भक्ति के केंद्र बने हुए हैं।

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