लोक आस्था के संत बाबा धोकलनाथ - आचार्य नरेन्द्र शास्त्री

जीवन अनमोल है इसे आत्महत्या कर नष्ट नहीं करें !

सुबह की शुरुआत माता-पिता के चरण स्पर्श से करें !

संस्कार सृजन राम गोपाल सैनी        

अलवर (संस्कार सृजन)भारत एक धर्म प्रधान देश है। आस्था एवं श्रद्धा इस देश की प्राणशक्ति है। जड़ से लेकर चेतन तक हमारी आस्था एवं श्रद्धा का विस्तार है। जागरण से लेकर शयन तक की अपनी दिनचर्या का यदि हम सूक्ष्मता से निरीक्षण करें तो पाएंगे कि हमारे सभी कार्यों के पीछे आस्था और श्रद्धा एक प्रेरक-शक्ति के रूप में न्यूनाधिक अनुपात में सदा उपस्थित रहती है। हमने गाँव-घर, खेत-खलिहान, नदी-तट, जंगल-पर्वत, धरती-आकाश, सूरज-चाँद सब में अपनी श्रद्धा-भावना को प्रतिष्ठापित किया। घटाटोप अँधेरों भरे दौर में भी लोक की आस्था और श्रद्धा का यह अंतर्दीप सदा जलता रहा है और समाज एवं मनुष्यता का पथ आलोकित करता रहा है।

श्रद्धा-आस्था-विश्वास की यह थाती दुनिया को भारत की अनूठी देन है। यह लोक के संचित अनुभवों का सार है। सहस्त्राब्दियों से इसके बल पर हम समय के शिलालेख पर अपनी अमिट छाप छोड़ते आए हैं और तमाम झंझावातों एवं तूफानों के बीच भी अपने सांस्कृतिक सूर्य को डूबने से बचाते रहे हैं। इस सांस्कृतिक सूर्य का दैदीप्यमान प्रतीक है भगवा। स्वाभाविक है कि इसे धारण करने वाला संत-समाज हमारी आस्था एवं श्रद्धा का उच्चतम केंद्र बिंदु है।

गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी कहा है -

साधु चरित सुभ चरित कपासू। निरस बिसद गुनमय फल जासू॥

जो सहि दु:ख परछिद्र दुरावा। बंदनीय जेहिं जग जस पावा ॥


अलवर जिले की बहरोड़ , मुंडावर , नीमराणा तहसील , पूर्व स्थित जयपुर की कोटपुतली तथा हरियाणा का कुछ क्षेत्र राठ क्षेत्र के नाम से जाना जाता है | यहां समय-समय पर अनेकों साधु संतो ने जन्म लेकर तपस्या करके यहां के जनमानस को अपने सुकृत्यो से कृतार्थ किया है उन्ही महान संतो में एक संत हुए है बाबा धोकलनाथ | बाबा धोकलनाथ का जन्म बहरोड़ तहसील के ( तत्कालीन मुंडावर ) के ग्राम कारोड़ा के एक राजपूत परिवार में विक्रम संवत 1866 ( अंग्रेजी सन् 1809)  हुआ था | बाबा धोकलनाथ का प्रारंभिक जीवन गृहस्थी में बिता जब उन्होंने 25 वर्ष की वय ( अवस्था ) को पार कर लिया तब ये एक दिन अपने 5 साथियों के साथ गृहस्थी को लेकर परिचर्चा कर रहे थे वहीं इन्हे जीवन से मोह समाप्त होकर इनमे वैराग्य की भावना बलवती हो गई | 

इसके बाद इन्होंने छापुर की बणी में एक हिंस के पेड़ के नीचे तपस्या करना आरंभ कर दी | तात्कालिक दस्तावेजों से प्राप्त विवरण के अनुसार उस समय वहां जंगल हुआ करता था तथा हिंसक पशुओं का वहा विचरना नित्य प्रति हुआ करता था | बाबा धोकलनाथ ने इतनी प्रचंड तपस्या की कि उनके शरीर में कीटो ने अपना घर बनाना शुरू कर दिया | आसपास के गांवों के भक्तगणों ने जब उनके शरीर से इन कीटो को निकालने की प्रार्थना की तब वे सहज भाव से बोले भाई इतने बड़े शरीर में ये छोटे से जीवाणु भी रह लेंगे , ये मेरे क्या बिगाड़ रहे है ? 

संतो का और वृक्षों का जन्म वास्तव में परोपकार के लिए ही होता है जिस प्रकार एक वृक्ष पानी से सींचने तथा पत्थर मारने वाले दोनो को ही बराबर मात्रा में फल तथा छाया देता है उसी प्रकार संत भी स्वयं के प्रति हित और अहित दोनो करने वालो को आशीर्वचन ही देता है | 1980 के आसपास एक बार आसपास के गांवों में हैजा महामारी का प्रकोप फैल गया था तब बाबा धोकलनाथ स्वयं जागकर पहरा देते थे तथा भभुति की परिक्रमा खिंचवाई थी जिससे इसका प्रभाव कम हुआ था और सम्पूर्ण रूप से समाप्त रामनवमी को हुई थी | परोपकार के कार्य करते हुए बाबा धोकलनाथ का निधन सन् 1899 ईस्वी में हुआ | 

बाबा के अंतरंग शिष्य बाबा छोटूनाथ ने एक मंढी तथा शिवालय का ग्रामीणों के सहयोग से निर्माण करवाया | इसी आश्रम से संबंधित बाबा खेतानाथ ने राठ क्षेत्र में शिक्षा की एक अलौकिक ज्योति जगाई तथा अनेकों कॉलेज , स्कूल , आदि का निर्माण करवाया | बाबा छोटूनाथ के शिष्य बाबा जयराम नाथ हुए जिन्होंने इस मंदिर का निर्माण करवाकर एक भव्य आश्रम के रूप में परिवर्तन किया | बाबा जयरामनाथ ने उग्र तपस्या द्वारा अपने शरीर को सुखाते हुए अनेकों सिद्धियो को प्राप्त किया | कहते है बाबा जयरामनाथ जब तक समाधि में लीन नहीं हुए थे तब तब राठ क्षेत्र में कभी अनावृष्टि और फसलों को नुकसान नहीं हुआ | बाबा जयरामनाथ के बाद उनके शिष्य गिरिवर नाथ , महंत शुभनाथ , महंत योगेन्द्र नाथ आदि संत अपने सुकृत्यों से यहां की महान संत परंपरा को आगे बढ़ा रहे है | 

बाबा धोकलनाथ आश्रम अजरका सोड़ावास रोड पर स्थित है यह अलवर जिला मुख्यालय से 50 किलोमीटर दूर , मुंडावर तहसील से 17 किलोमीटर दूर तथा बहरोड़ से 15 किलोमीटर दूर स्थित है | यहां प्रतिवर्ष  रामनवमी को विशाल मेला भरता है जिसमे आसपास के गांवों पदमाडा खुर्द , छापुर , माजरी खोला , बापडोली , सोड़ावास , झझारपुर , चिरूनी , करनीकोट, अजमेरीपुर ,  हटूंडी , कारोड़ा , कालुका, भिवाड़ा समेत लाखो की संख्या में श्रद्धालु आते है | 

निर्माल्य की है मान्यता :-

बाबा धोकलनाथ आश्रम की आसपास के गांवों के श्रद्धालुओं में बड़ी जबरदस्त मान्यता है | किसी के प्रथम बार गाय , भैंस के ब्याहने पर जब तक दूध का चढ़ावा बाबा के नहीं चढ़ाया जाता तब तक उसको परिवार का कोई सदस्य उपयोग नहीं लेता | इसी प्रकार किसी के नई फसल कटकर आने पर जब तक बाबा के आश्रम में अनाज नहीं पहुंचता तब तक उसको उपयोग में नही लाया जा सकता | संत समागम की यह पवित्र राठ भूमि ऐसे ही महान संतो की कर्मभूमि होने के कारण विश्व पटल पर अपनी पहचान बनाए हुए है जिसका बखान मेरे जैसा एक तुच्छ कलमकार नहीं कर सकता |


लेखक - आचार्य नरेन्द्र शास्त्री,पदमाडा खुर्द ( मुंडावर )

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