हाँ मै चाय हूँ-चाय दिवस विशेष

जीवन अनमोल है इसे आत्महत्या कर नष्ट नहीं करें !

सुबह की शुरुआत माता-पिता के चरण स्पर्श से करें !

संस्कार सृजन राम गोपाल सैनी

ज़ी सही समझे मै चाय | कोई कहता है मेरा सेवन बिल्कुल ठीक नहीं | कोई कहता है चाय न पियू तो सुबह खराब हो जाती है. |कोई कहता है चाय न लू तो सरदर्द हो जाता है | मेरे आस पास लाखो करोड़ो की डील हो जाती है | मेरे संगी साथी दूध, निम्बू, अदरक हैं | चीनी नहीं कहूंगी चीनी बड़े बदमाश होते हैं | हां शक़्कर मेरी प्रिय साथी है | मैं बड़े बड़े हॉटेल की शान तो हूँ ही |

टपरी की भी लाडली हूँ और तो और केतली की तो लाडो रही हूँ | पर क्या कहूँ केतली को काल चक्र ने निगल लिया | अब तो दूर के रिश्तेदार थरमस भाई की गोद मे रहती हूँ | केतली बहन से एक बात अवश्य सीखी हूँ | जीवन में कभी घमंड ना करें | घमंड करने वाले की उम्र ज्यादा लंबी नहीं होती | केतली बहन की एक ही गलती थी | मेरी गर्मी का रुआब वह मुझसे ज्यादा झाड़ती थीं | यहां तक कि लोग कहने भी लगे थे चाय से ज्यादा केतली गरम | इसीलिए कहती हूं घमंड ना करें | अब तो थरमस भाई के साथ रहती हूँ | इनका स्वभाव केतली बहन के बिल्कुल उलट | भीतर गरम बाहर से ठंडे | जो होते हैं दिखते नहीं हैं | जो दिखते हैं वह होता नहीं है | इसलिए थरमस भाई के साथ घंटो घंटो आनंद से रहती हूं | जबकि केतली बहन के साथ कुछ ही देर में मैं ठंडी हो जाती थी | इसीलिए कहती हूं केतली बहन की तरह नहीं थरमस भाई की तरह गंभीर बनो | कोई मुझे देसी कहता है कोई मुझे विदेशी कहता है |

अरे भाई मैं धरती मां की गोद से उपजी हूं | फिर विदेशी कैसी हुई | धरती तो एक ही है ना, एक ही मां के बच्चे देसी विदेशी कैसे | इंसान बने रहे देसी विदेशी, मुझे नहीं बनना | मैं सबकी लाडली बनी रहना चाहती हूं | मुझे सीमाओं में ना सीमित करें | मेरी चुस्की ले और तनाव दूर करें | मैंने तो कभी किसी के साथ भेदभाव ना किया | जिन्हें नहीं पसंद मुझे न लें, लेकिन विदेशी का तमगा मुझे ना दें | मैं भारत ही नहीं दुनिया को प्यारी हूं | इसीलिए ना कि मैं धरती मां की दुलारी हूं | जिस तरह भोजन में आजकल स्टार्टर का जमाना है ना | उसी तरह वर्षों वर्षों से मैं इंसान की सुबह सुबह के स्टार्टर हूं | 

वैसे तो मेरा जन्मदिन मुझे याद नहीं | बाजारवाद ने मेरा भी जन्मदिन बना ही दिया है | आज मेरा दिवस है अर्थात चाय दिवस | फिर देर क्या जल्दी से एक चाय पियो | यही है मेरा जन्मदिन मनाने का तरीका | मैं तो तपकर,जलकर, घुलकर मिलकर दूध पानी संग मिल जाती हूं | शक्कर का साथ पाकर अमृत बन जाती हूं | आपकी थोड़ी थकान, थोड़ा तनाव दूर कर जाती हूं | आप मेरे साथी बने मेरे गुलाम नहीं | उतना ही मेरा सेवन करें जिससे आपके स्वास्थ्य का नुकसान न हो | अभी चलती हूं फिर मिलूंगी बातें करूंगी | जो मुझे कागज में मिट्टी के बर्तन में पीते हैं | उनके लिए मैं चरित्रवान हूं | जो लोग कप में पीते हैं गिलास में पीते हैं दुकानों पर, उनके लिए उनकी भाषा में चरित्रहीन हूँ | कइयों के मुँह लगती हूँ न इसलिए, अब आपकी इच्छा पर है चाहे मुझे चरित्रवान बनाएं चाहे चरित्रहीन | चलती हूँ बहुत बातें ही हो  गई फिर मिलूंगी |

लेखक : डॉ रमाकांत क्षितिज

संकलन : विनोद कुमार दुबे, शिक्षक ,भांडुप, मुंबई, महाराष्ट्र

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