वन औषधि: कचनार पर विशेष लेख

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संस्कार सृजन राम गोपाल सैनी

नई दिल्ली (संस्कार सृजन) कचनार वन औषधि के रूप में प्रचलित है। इसकी भव्य श्रृंखला में 500 से अधिक प्रजातियां व्याप्त हैं। यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जंगलों से लेकर उद्यानों तक में पाया जाता है। कचनार का वानस्पतिक नाम बौतीनिया वैरीगाटा है।

विस्तृत पादप की पहचान -

• कचनार की लंबाई 10 से 12 मीटर के लगभग होती है।

• पत्तियां 10 से 20 सेंटीमीटर के लगभग द्विविभागीय गोल व चौड़ी होती हैं।

• फूल 10 से 12 सेंटीमीटर व्यास वाले ज्यादातर सफेद या गुलाबी पांच पत्तियों के होते हैं।

• फल बीज युक्त 15 से 30 सेंटीमीटर के होते हैं जो पकने पर फट जाते हैं ताकि बीजों से नए पेड़ उग सकें।

कचनार के औषधीय गुण -

छाल: गांठ व बवासीर, कैंसर, नजला व दमा, दंत रोग व दस्त

• कचनार की छाल को पीसकर चूर्ण बनाकर लेने से गांठ व फोड़े ठीक हो जाते हैं। इसका काढ़ा बनाकर लगाने से फोड़े जल्दी पक जाते हैं और ठीक हो जाते हैं। यह बवासीर भी ठीक करता है ।

• कचनार की छाल का काढ़ा पीने से पेट के कैंसर में रोकथाम होती है।

• कचनार की छाल का काढ़ा शहद के साथ दिन में तीन बार लेने से सांस संबंधित रोगों का निवारण होता है।

• कचनार की छाल की राख से मंजन करने से दांत व मसूड़ों के दर्द में आराम मिलता है।

• छाल का काढ़ा दिन में दो बार पीने से दस्त ठीक हो जाते हैं।

जड़: सूजन, अफारा व लिवर

• कचनार की जड़ व पानी का गरम लेप सूजन पर लगाने से सूजन कम होती है।

• कचनार की जड़ का काढ़ा पीने से अफारा ठीक होता है।

• कचनार की जड़ का काढ़ा पीने से लीवर की बीमारियों में भी आराम मिलता है।

पत्तियां: प्रमेह रोग

हरि व सूखी कलियों का चूर्ण बनाकर मिश्री के साथ दिन में तीन बार लेने से कुछ ही हफ्तों में प्रमेह रोग में आराम मिल जाता है।

फूल: पेशाब में खून

• कचनार के फूलों का काढ़ा दिन में 2 बार पीने से पेशाब में खून व रक्त स्त्राव की समस्या ठीक हो जाती है।

कचनार विश्वभर में प्रसिद्ध सुंदर व उपयोगी पादप है। इसकी विस्तृत मौजूदगी व प्रजातियों के माध्यम से इसकी अलौकिकता का वर्णन स्वयं ही हो जाता है।

डॉ. मोनिका रघुवंशी व डॉ. सोनिका कुशवाह, भारतीय जैव विविधता संरक्षण सोसाइटी

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