Nirjala Ekadashi:कल साल की सबसे बड़ी एकादशी

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सुबह की शुरुआत माता-पिता के चरण स्पर्श से करें !

संस्कार सृजन राम गोपाल सैनी

जयपुर (संस्कार सृजन) सालभर की सभी एकादशियों में निर्जला एकादशी का महत्व सबसे अधिक है। इस व्रत में पूरे दिन अन्न और पानी, दोनों का ही त्याग किया जाता है।भक्त दिनभर भगवान विष्णु का ध्यान करता है। ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में गर्मी पूरे प्रभाव में होती है। ऐसे में दिनभर भूखे-प्यासे रहना आसान नहीं है। निर्जला एकादशी व्रत करना एक तपस्या की तरह ही है। जो भक्त ये व्रत करते हैं, उन्हें सालभर की सभी एकादशियों के व्रत के बराबर पुण्य मिलता है।

अंतर्राष्ट्रीय भविष्यवक्ता पंडित रविन्द्राचार्य के मुताबिकनिर्जला एकादशी को पांडव एकादशी और भीमसेनी एकादशी या भीम एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। पांडवों में दूसरा भाई भीमसेन खाने-पीने का सबसे ज्यादा शौकीन था और अपनी भूख को काबू करने में सक्षम नहीं था इसी कारण वह एकादशी व्रत को नही कर पाता था। भीम के अलावा बाकि पांडव भाई और द्रौपदी साल की सभी एकादशी व्रतों को पूरी श्रद्धा भक्ति से किया करते थे। भीमसेन अपनी इस लाचारी और कमजोरी को लेकर परेशान था। भीमसेन को लगता था कि वह एकादशी व्रत न करके भगवान विष्णु का अनादर कर रहा है। इस दुविधा से उभरने के लिए भीमसेन महर्षि व्यास के पास गया तब महर्षि व्यास ने भीमसेन को साल में एक बार निर्जला एकादशी व्रत को करने कि सलाह दी और कहा कि निर्जला एकादशी साल की चौबीस एकादशियों के तुल्य है। इसी पौराणिक कथा के बाद निर्जला एकादशी भीमसेनी एकादशी और पांडव एकादशी के नाम से प्रसिद्ध हो गई।

रविन्द्राचार्य से जानिए निर्जला एकादशी से जुड़ी खास बातें :-

- इस दिन व्रत-उपवास रखने के साथ ही मौसमी फल जैसे आम, मिठाई, पंखा, कपड़े, जूते-चप्पल, धन, अनाज का दान जरूर करना चाहिए।

- घर में पूजा-पाठ करने के साथ ही किसी पौराणिक महत्व वाले मंदिर में भी दर्शन पूजन करना चाहिए। बाल गोपाल, भगवान विष्णु और महालक्ष्मी का अभिषेक करना चाहिए।

- इस दिन शिवलिंग पर ठंडा जल चढ़ाकर चंदन का लेप करना चाहिए। शिवलिंग का श्रृंगार बिल्व पत्र, हार-फूल से करें।

- निर्जला एकादशी का व्रत निर्जल रहकर किया जाता है। इस दिन अन्न और पानी का सेवन नहीं करना चाहिए, तभी इस व्रत का पूरा फल मिलता है। अभी गर्मी के समय में दिनभर भूखे-प्यासे रहना मुश्किल है, इसी वजह से ये व्रत तपस्या की तरह है।

- किसी मंदिर में या किसी अन्य सार्वजनिक जगह पर प्याऊ लगाएं या किसी प्याऊ में मटके का दान करें। पक्षियों के लिए घर के बाहर अन्न और जल जरूर रखना चाहिए।

- जो लोग एकादशी व्रत करते हैं, उन्हें व्रत-उपवास के साथ ही विष्णु जी के मंत्र ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय का जप करना चाहिए। सुबह-शाम पूजा करें। अगले दिन यानी द्वादशी तिथि पर सुबह जल्दी उठें, पूजा-पाठ करें और जरूरतमंद लोगों को खाना खिलाएं। इसके बाद ही खुद खाना खाएं। इस तरह ये व्रत पूरा होता है।

-जो लोग दिनभर भूखे-प्यासे नहीं रह सकते हैं, उन्हें फल और दूध का सेवन करना चाहिए। एकादशी व्रत करने वाले लोग एकादशी पर सुबह जल्दी उठें और स्नान के बाद घर के मंदिर में पूजा करें।

निर्जला एकादशी व्रत की पूजाविधि

निर्जला एकादशी का व्रत करने के लिए नियम संयम का पालन एक दिन पहले ही यानी कि दशमी तिथि से ही शुरू कर दिया जाता है। भगवान विष्‍णु को पीतांबरधारी माना गया है, इसलिए उनकी पूजा में पीले रंग का खास ध्‍यान रखा जाता है। पीले रंग के वस्‍त्र पहनकर, पीले फूल, पीले फल और पीली मिष्‍ठान के साथ श्रीहरि की पूजा करें। लकड़ी की चौकी पर पीला कपड़ा बिछाकर विष्‍णु भगवान की मूर्ति स्‍थापित करें और पंचामृत से स्‍नान कराएं और उसके बाद पीले फूल, पीले चावल और फल अर्पित करें। सभी सामिग्री अर्पित करने के बाद एकादशी की कथा का पठन करें और उसके बाद ओउम नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जप करें। सबसे अंत में श्रीहरि की आरती करने के बाद पूजा का समापन करें। पूरे दिन सच्‍ची श्रद्धा के साथ व्रत करके शाम के पहर में स्‍नान करके फिर से भगवान की पूजा करें। अगले दिन द्वादशी तिथि में व्रत का पारण करें। इस विधि के साथ व्रत करने और पूजा करने से आपको निर्जला एकादशी व्रत का संपूर्ण फल प्राप्‍त होगा और ईश्‍वर आपसे प्रसन्‍न होंगे।

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