प्रेस की स्वतंत्रता पर अनुचित दबाव लोकतंत्र के लिए घातक:जीएस दायमा

जीवन अनमोल है इसे आत्महत्या कर नष्ट नहीं करें !

सुबह की शुरुआत माता-पिता के चरण स्पर्श से करें !

संस्कार सृजन राम गोपाल सैनी

सीकर / भीलवाड़ा (संस्कार सृजन) विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर विशेष....

विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस 3 मई को मनाया जाता है। प्रेस किसी भी समाज का आइना होता है। प्रेस की आजादी से यह बात साबित होती है कि उस देश में अभिव्यक्ति की कितनी स्वतंत्रता है। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में प्रेस की स्वतंत्रता एक मौलिक जरूरत है। आज हम एक ऐसी दुनिया में जी रहे हैं, जहां अपनी दुनिया से बाहर निकल कर आसपास घटित होने वाली घटनाओं के बारे में जानने का अधिक वक्त हमारे पास नहीं होता। ऐसे में प्रेस और मीडिया हमारे लिए एक खबर वाहक का काम करती हैं । यही खबरें हमें दुनिया से जोड़े रखती हैं। आज प्रेस दुनिया में खबरें पहुंचाने का सबसे बेहतरीन माध्यम है |  



विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस का उद्देश्य प्रेस की आजादी के मह‍त्व के प्रति जागरूकता फैलाना है। प्रेस की आजादी और समाचारों को लोगों तक पहुंचाकर, सशक्त हो रहे मीडियाकर्मियों का व्यापक विकास करना इसका उद्देश्य है। 

मीडिया के सराहनीय कार्य - मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है। इसी से मीडिया के महत्त्व का अंदाजा लगाया जा सकता है। समाज में मीडिया की भूमिका संचार की होती है। वह समाज के विभिन्न वर्गों, सत्ता केंद्रों, व्यक्तियों और संस्थाओं के बीच पुल का कार्य करता है। आज के युग में मीडिया का सामान्य अर्थ समाचार पत्र, पत्रिकाओं, टेलीविजन, रेडियो, इंटरनेट आदि से लिया जाता है। किसी भी देश की उन्नति व प्रगति में मीडिया का बहुत बड़ा योगदान होता है। इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण भरे पड़े हैं, जब मीडिया की शक्ति को पहचानते हुए लोगों ने उसका उपयोग किसी बड़े परिवर्तन के हथियार के रूप में किया है। मीडिया का जन जागरूकता में भी बहुत योगदान है। बच्चों को पोलियो की दवा पिलाने का अभियान हो या एड्स के प्रति जागरूकता फैलाने का कार्य, मीडिया ने अपनी जिम्मेदारी पूरी तरह से निभाई है। लोगों को वोट डालने के लिए प्रेरित करना, बाल मजदूरी पर रोक लगाने के लिए प्रयास करना, धूम्रपान के खतरों से अवगत कराना जैसे अनेक कार्यों में मीडिया की भूमिका सराहनीय है। मीडिया समय-समय पर नागरिकों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करता रहता है और भ्रष्टाचारियों पर कड़ी नजर रखता है। समय-समय पर स्टिंग आपरेशन कर इन सफेदपोशों का काला चेहरा दुनिया के सामने लाता है। इस प्रकार मीडिया हमारे लिए किसी वरदान से कम नहीं।

मीडिया अभिशाप ना बने - जैसे फूल के साथ काँटे होते हैं, उसी प्रकार मीडिया भी वरदान ही नहीं अभिशाप भी है। मीडिया या प्रेस को स्वतंत्रता मिलनी चाहिए। मिलती भी है। लेकिन स्वतंत्रता जब सीमा लाँघ जाए तो उच्शृंखलता बन जाती है। कुछ ऐसा ही हाल मीडिया का भी है।आज के समाज मे मीडिया पैसा कमाने के लालच में समाज को गुमराह कर रहा है। आज हमारे समाचार पत्र अपराध की खबरों से भरे रहते हैं। जबकि सकारात्मक समाचारों को स्थान ही नहीं मिलता । यदि मिलता भी है तो बीच के पन्नों पर कही किसी छोटे से कोने में। टी.वी. तो इससे भी चार कदम आगे है।टी. वी. पर चैनलों की जैसे बाढ़ सी आई हुई है।हर किसी का ध्येय है ऊँची टी. आर. पी. यानि अधिक से अधिक पैसा। ज़रा देखिए न्यूज़ चैनल पर आप को क्या देखने को मिलता है? सुबह- सुबह चाय के साथ अपना भविष्य जानिये। दिन में टी. वी. सीरियलों की गपशप देखिए। रात को देखिए ‘सनसनी’ या ‘क्राइम पैट्रोल’ चैन से सोना है तो जाग जाइए। ऐसा लगता है कि समाज में या तो केवल अपराध हैं या फिर हीरो-हीरोइनों के स्कैंडल। क्या कहीं कुछ अच्छा नहीं है? ‘सनसनी’ फैलाने के लिए ये देश की सुरक्षा को भी दाँव पर लगाने से नहीं चूकते। 26\11 को हम कैसे भूल सकते हैं। बड़े-बड़े चैनलों पर पूरी कार्यवाही का सीधा-प्रसारण दिखाया गया। जिससे होटल में घुसे आतंकवादी बाहर होने वाली हलचल से वाकिफ होते रहे और हमारा अधिक से अधिक नुकसान करते रहे। मीडिया यदि अपने निहित स्वार्थों को भूलकर अपनी ज़िम्मेदारी निभाए तो समाज को एक दिशा प्रदान कर सकता है।मीडिया अपराध की खबरों को दिखाए पर सकारात्मक समाचारों से भी किनारा न करे। समाज में फैली बुराइयों के अलावा विकास को भी दिखाए ताकि आम आदमी निराशा में डूबा न रहे कि इस देश का कुछ नहीं हो सकता।

प्रेस की स्वतंत्रता - संविधान, अनुच्छेद 19 के तहत वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है, जो वाक् स्वतंत्रता इत्यादि के संबंध में कुछ अधिकारों के संरक्षण से संबंधित है। प्रेस की स्वतंत्रता को भारतीय कानूनी प्रणाली द्वारा स्पष्ट रूप से संरक्षित नहीं किया गया है, लेकिन यह संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (क) के तहत संरक्षित है, जिसमें कहा गया है - "सभी नागरिकों को वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार होगा"। वर्ष 1950 में, रोमेश थापर बनाम मद्रास राज्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने पाया कि सभी लोकतांत्रिक संगठनों की नींव पर प्रेस की स्वतंत्रता पर आधारित होती है। हालाँकि, प्रेस की स्वतंत्रता भी असीमित नहीं होती है। एक कानून इस अधिकार के प्रयोग पर केवल उन प्रतिबंधों को लागू कर सकता है, जो अनुच्छेद 19 (2) के तहत इस प्रकार हैं-भारत की संप्रभुता और अखंडता के हितों से संबंधित मामले, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध, सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता या नैतिकता या न्यायालय की अवमानना के संबंध में, मानहानि या अपराध का प्रोत्साहन।

प्रेस की स्वतंत्रता का महत्त्व - स्वतंत्र मीडिया विचारों की मुक्त चर्चा को बढ़ावा देता है जो व्यक्तियों को राजनीतिक जीवन में पूरी तरह से भाग लेने, निर्णय लेने की अनुमति देता है और परिणामस्वरूप समाज को सशक्त करता है - विशेष रूप से भारत जैसे बड़े लोकतंत्र में। लोकतंत्र के सुचारू संचालन के लिये विचारों का स्वतंत्र आदान-प्रदान, सूचना और ज्ञान का आदान-प्रदान, बहस और विभिन्न दृष्टिकोणों की अभिव्यक्ति महत्त्वपूर्ण होती है। जनता की आवाज़ होने के आधार पर स्वतंत्र मीडिया, उन्हें राय व्यक्त करने के अधिकार के साथ सशक्त बनाता है। इस प्रकार, लोकतंत्र में स्वतंत्र मीडिया महत्त्वपूर्ण है। स्वतंत्र मीडिया के साथ, लोग सरकार के निर्णयों पर प्रश्न करके अपने अधिकारों का प्रयोग करने में सक्षम होते हैं। ऐसा माहौल तभी बनाया जा सकता है जब प्रेस की स्वतंत्रता प्राप्त हो। अतः मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जा सकता है, अन्य तीन स्तंभ विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका हैं।

*एक संस्थागत ढाँचा मज़बूत करना:* भारतीय प्रेस परिषद, एक नियामक संस्था, मीडिया को चेतावनी दे सकती है और विनियमित कर सकती है अगर यह पाती है कि एक समाचार पत्र या समाचार एजेंसी ने मीडिया नैतिकता का उल्लंघन किया है। न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (एनबीए) को वैधानिक दर्ज़ा प्रदान किया जाना चाहिये जो निजी टेलीविजन समाचार एवं करंट अफेयर्स ब्रॉडकास्टर्स का प्रतिनिधित्व करता है। यह महत्त्वपूर्ण है कि मीडिया सत्यता और सटीकता, पारदर्शिता, स्वतंत्रता, औचित्यता एवं निष्पक्षता,उत्तरदायिता जैसे मुख्य सिद्धांतों का पालन करती रहे।

मीडिया की समाज मे भूमिका - लोकतांत्रिक देशों में विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के क्रियाकलापों पर नजर रखने के लिये मीडिया को ‘‘चौथे स्तंभ’’ के रूप में जाना जाता है। 18वीं शताब्दी के बाद से, खासकर अमेरिकी स्वतंत्रता आंदोलन और फ्राँसीसी क्रांति के समय से जनता तक पहुँचने और उसे जागरूक कर सक्षम बनाने में मीडिया ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मीडिया अगर सकारात्मक भूमिका अदा करें तो किसी भी व्यक्ति, संस्था, समूह और देश को आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक रूप से समृद्ध बनाया जा सकता है। वर्तमान समय में मीडिया की उपयोगिता, महत्त्व एवं भूमिका निरंतर बढ़ती जा रही है। कोई भी समाज, सरकार, वर्ग, संस्था, समूह व्यक्ति मीडिया की उपेक्षा कर आगे नहीं बढ़ सकता। आज के जीवन में मीडिया एक अपरिहार्य आवश्यकता बन गया है।  मीडिया एक समग्र तंत्र है जिसमें प्रिंटिंग प्रेस, पत्रकार, इलेक्ट्रॉनिक माध्यम, रेडियों, सिनेमा, इंटरनेट आदि सूचना के माध्यम सम्मिलित होते हैं। अगर समाज में मीडिया की भूमिका की बात करें तो इसका तात्पर्य यह हुआ कि समाज में मीडिया प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से क्या योगदान दे रहा है एवं उसके उत्तरदायित्वों के निर्वहन के दौरान समाज पर उसका क्या सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।मीडिया विभिन्न सामाजिक कार्यों द्वारा समाज सेवक की भूमिका भी निभा सकता है। भूकंप, बाढ़ या अन्य प्राकृतिक या मानवकृत आपदाओं के समय जनसहयोग उपलब्ध कराकर मानवता की बहुत बड़ी सेवा कर सकता है। मीडिया की बहुआयामी भूमिका को देखते हुए कहा जा सकता है कि मीडिया आज विनाशक एवं हितैषी दोनों भूमिकाओं में सामने आया है। अब समय आ गया है कि मीडिया अपनी शक्ति का सदुपयोग जनहित में करे और समाज का मागदर्शन कर उनके विकास मे भागीदार बनें ।

लेखक - जीएस दायमा

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