जीवन अनमोल है , इसे आत्महत्या कर नष्ट नहीं करें !
सुबह की शुरुआत माता-पिता के चरण स्पर्श से करें !
संस्कार सृजन @ राम गोपाल सैनी
जयपुर (संस्कार सृजन) पृथ्वी पर मौजूद सभी जीव मात्र की उत्पत्ति जल से हुई है और जल ही समस्त जीव जगत के जीवन का आधार है । अन्य ग्रहों पर भी वैज्ञानिकों द्वारा जल की खोज को ही प्राथमिकता दी गई है ताकि वहां जीवन की संभावनाओं को तराशा जा सके । "जल ही जीवन है" यह सत्य है क्योंकि जल के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती । अधिकांश सभ्यता एवं संस्कृतियों का विकास भी जल स्रोतों जैसे नदियों आदि के किनारे ही हुआ है । पृथ्वी का लगभग दो तिहाई भाग जल से ढका हुआ है लेकिन इसका 2 से 3% जल ही इस्तेमाल योग्य है । शेष भाग पर मानव जीव जंतु जंगल में दान पठार या पर्वत आदि मौजूद है । हर जीव मात्र की जल पर ही निर्भरता रहती है । लेकिन, यह भी सत्य है कि जल का अनावश्यक उपभोग भी हो रहा है । जनसंख्या विस्तार और औद्योगिकीकरण के कारण जल की खपत में बेहिसाब, बेतहाशा इजाफा हुआ है जिसने जल संकट को जन्म दिया है । देश की आजादी के 75 वर्ष बीत जाने के बावजूद भी भारत जैसे सघन आबादी वाला देश का अधिकांश भूभाग पर शुद्ध पेयजल की उपलब्धता का संकट है । चाहे देश ने तकनीकी रूप से कितने भी प्रगति कर ली हो, लेकिन जीवन के लिए बेहद जरूरी जल जैसी मूलभूत सुविधा के लिए संघर्ष आए दिन देखने को मिलते हैं और हजारों लाखों घर परिवारों को शुद्ध पेयजल नसीब नहीं हो रहा है और देशभर में लाखों एकड़ भूमि जलाभाव के चलते बंजर पड़ी है । देश प्रदेशों के अधिकांश प्राकृतिक जल स्रोत मृतप्राय हो चुके हैं, जिससे देश की जैव विविधता को खतरा उत्पन्न होता जा रहा है । आज देश में चहुऔर कृषिजल और शुद्ध पेयजल के लिए त्राहिमाम त्राहिमाम सुनाई दे रहा है, जो जल जनित संघर्षों को जन्म दे रहा है।
विश्व जल दिवस का उद्देश्य: जल का संरक्षण, स्थिरता, विकास उपयोगिता एवं समान वितरण :-
मानव और जीव जंतु के जीवन में जल को प्राथमिकता दी गई है । लेकिन इसके संरक्षण में मानव जाति अभी भी बहुत पीछे है । जल का संरक्षण हर मानव की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए । विश्व स्तर पर जल संरक्षण के कार्यों को प्रोत्साहन प्रदान करने के लिए, संयुक्त राष्ट्र और और उसके सदस्य राष्ट्रों द्वारा हर साल 22 मार्च को "विश्व जल दिवस" के रूप में मनाया जाता है । वर्ष 2023 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने विश्व जल दिवस की थीम "एक्सीलरेटिंग चेंज" यानी "परिवर्तन में तेजी" रखी गई है । इस वर्ष 2023 में जल दिवस को बी दा चेंज "Be the change" अभियान के तहत मनाया जाएगा और इस साल ही संयुक्त राष्ट्र संघ 2023 जल सम्मेलन 22 से 24 मार्च न्यूयॉर्क में आयोजित किया जाएगा, जिसका उद्देश्य विश्व भर में सभी देशों में जल के संरक्षण, विकास, स्थिरता, उपयोगिता एवं महत्व को समझने के लिए और बढ़ते जल संकट की ओर सबका ध्यान आकर्षित करना है ।
जल प्रकृति प्रदत अमूल्य उपहार लेकिन शुद्ध रूप में मिलना हुआ दूभर :-
जल का मानव शरीर सहित समस्त जीवमात्र की जैव रासायनिक प्रक्रियाओं जैसे श्वसन, उत्सर्जन, पाचन, वृद्धि, विकास, जनन, परिसंचरण, नियंत्रण, नियमन, आदि के लिए जल एक बेहद आवश्यक घटक है । जलाभाव की स्थिति में जीवन की आवश्यक सभी जैविक एवं रासायनिक प्रक्रिया प्रभावित होकर रुक जाती है तथा शरीर के अंग प्रत्यंग कार्य करना बंद कर देते हैं । अंततः जीव की जीवन लीला समाप्त हो जाती है । जल हमें प्रकृति की ओर से दिया गया एक अमूल्य उपहार है, जो अब अपने शुद्ध रूप में सशुल्क मिलना भी दूभर होता जा रहा है । देश भर की नदियों के प्रवाह क्षेत्र, तालाबों, गोचर भूमियो जलभराव क्षेत्रों पर औद्योगिक इकाइयों की स्थापना से तेजी से भोमजल स्तर में गिरावट आई है । नदियां मर चुकी हैं तथा बांध सूख चुके हैं । अब उन पर केवल औद्योगिक इकाइयां जहरीला धुआं उगल रही है, जिससे अब हर कृषि योग्य भूमि जल के लिए तरस रही है और हर इंसान की हालत शुद्ध जल के लिए परेशान है । परिणाम स्वरूप जल की उपलब्धता को लेकर सत्ता और जनता के बीच संघर्ष और आंदोलन तेज होते जा रहे हैं ।
प्राकृतिक जल स्रोतों के प्रवाह क्षेत्र पर जल दोहन करने वाले उद्योगों का शिकंजा :-
राजस्थान में जल का एक मुख्य स्रोत वर्षा जल एवं अरावली पर्वत श्रृंखला से उद्गमित होने वाली नदियों की जलराशि को माना जाता है, जो अपने प्रवाह क्षेत्र में आने वाले हजारों तालाबों, बांधों, बावडीयों,नदियों, एनिकट, खेतों, आदि को अपने अमूल्य जलनिधि से पूरीत कर तर करती हैं । इसी अमूल्य जलराशि से प्रदेश में फैली संपूर्ण पहाड़ियों, नदियों के प्रवाह क्षेत्रों, गौचर भूमियों, आदि में सघन जैव विविधता तैयार होती थी । इन प्राकृतिक जल स्रोतों की प्रवाहित व संचित होने वाली जलराशि से कृषि योग्य भूखंडों में भोम जल स्तर ऊपर आता है जिससे लाखों किसान परिवार अपने खेत खलिहानों में कृषि उपजाते हैं और चींटी से लेकर हाथी तक का पेट भरकर, चारों ओर खुशहाली का माहौल रहता हैं । लेकिन, कुटिल राजनीति, लालची, लोभी, अंधे, गूंगे, बहरे, शासन प्रशासन व्यापारियों / उद्योगपतियों का मकड़जाल, प्राकृतिक जल स्रोतों के प्रवाह क्षेत्र अथवा जलभराव वाले क्षेत्रों में औद्योगिक इकाइयां स्थापित कर, अपने गोरखधंधे को फैलाते जा रहे हैं तथा जल दोहन के साथ जनस्वास्थ्य के साथ खुल्लम खुल्ला खिलवाड़ कर रहे हैं । अरावली पर्वत सांखला को मानव की विकृत एवं विध्वंसकारी गतिविधियों से नुकसान पहुंचाया है और इन पवित्र नदियों के प्रवाह क्षेत्रों में औद्योगिक इकाईयो की स्थापनाकर, स्थानीय प्रशासन द्वारा कमीशन के आधार पर अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी कर, ना भोमजल स्तर को पाताल लोक में पहुंचा दिया है, परिणामस्वरूप, प्रदेश के समस्त बांधों, तालाबों, बावडीयों, खेतों को पाने के लिए तरसा दिया है और प्रदेश के लाखों किसान परिवारों एवं पशुपालकों के सामने रोजगार का संकट खड़ा कर दिया हैं।
दृश्यमान भौमजल हुआ अदृश्य, आमजन व खेत खलियान जल के लिए तरसे :-
अब हमेशा धरा पर दृश्यमान रहने वाला भोमजल अब अदृश्य हो गया है । अब केवल ऐसा सुनने में आता है कि कभी इन कचरा पात्र बन चुकी नदियों में पानी भी आया करता था, तालाब एवं बावडीया हमेशा पानी से तरबतर रहा करती थी और समस्त जीवमात्र इनमें संचित रहने वाले जलनिधि से अपना जीवन निर्वहन किया करते थे । लेकिन, नकली, मिलावटी व मानव एवं पर्यावरण स्वास्थ्य के लिए हानिकारक उत्पाद तैयार करने वाली, इन अवैध औद्योगिक इकाइयां में चौबीसों घंटे चलने वाले अवैध बोरिंग कनेक्शन तेजी से क्षेत्र के भोमजल स्तर को चट कर रही हैं । साथ में अपने जहरीले अपशिष्ट उत्पाद इन्हीं नदियों के प्रवाह क्षेत्र में उड़ेलकर, इनको कचरा पात्र या जहरीलेस्थलो में बदल रहे है । शादी समारोह एवं उत्सवो में अपनी उपस्थिति देकर, जीमन जीमने मस्त, राजनीतिक पार्टियों के पालतू सरपंच प्रतिनिधि या जनप्रतिनिधि, इन औधोगिक इकाइयों को जनता की बिना अनुमति लिए, अनापत्ति प्रदान प्रमाण पत्र जारी कर अपना आजीवन कमीशन फिक्स कर रहे हैं । शासन प्रशासन से जुड़े लोग, जनप्रतिनिधि, विधायक, मंत्री सांसद तथा उद्योगपतियों की यह काली श्रंखला, अपने काले कारनामों/कारोबारियों को फलीभूत करने में मशगूल हैं । इस अवैधनिक व अनियंत्रित भोमजल स्तर के दोहन से आज प्रदेश हर कोने कोने से जल संकट को लेकर त्राहिमाम त्राहिमाम सुनाई दे रहा है । प्रदेश में चहूंऔर पेयजल संकट के समाधान की मांग को लेकर मटका फोड़ प्रदर्शन, धरना प्रर्दशन एवं आंदोलन को उग्र आमजन को देखा जा रहा है । किसान अपने खेत को पानी देने के लिए, अपनी जमीन, पशुओं, वाहनों और गहनों को गिरवी रखकर, जल संकट का समाधान अपने स्तर पर ढूंढने में लगा हुआ है, लेकिन अत्यधिक एवम् अनियंत्रित दोहन से भोमजल स्तर के अत्यंत गहराई तक चले जाने एवं विषैले हो जाने के कारण, शुद्ध पीने योग्य एवं कृषि योग्य जल मिलना अब नामुमकिन हो गया है ।
प्राकृतिक जल स्रोतों को पुनर्जीवित करने की जरूरत :-
प्रकृति एवं प्राकृतिक जल स्रोतों के संरक्षण के लिए संघर्षरत पर्यावरणविद शिक्षक कैलाश सामोता "रानीपुरा" ने प्रदेश में पेयजल व कृषि जल संकट का एक मुख्य कारण, शासन प्रशासन द्वारा जल का असमान वितरण एवं प्रबंधन को भी बताया हैं । जल संकट की समस्याओं के निराकरण के लिए, अधिकारी व जनप्रतिनिधि असंवेदनशील है और राजनीतिक रुप से प्रभावशाली व रसूखदार लोगों को अवैध कनेक्शन लगवा दिए जाते हैं । विशेषकर जयपुर ग्रामीण क्षेत्र में जिस प्रकार आबादी के दबाव के चलते तथा राजनीतिक रसूख के चलते, पुरातन व ऐतिहासिक रामगढ़ बांध को पानी पहुंचाने वाली नदियों के प्रवाह क्षेत्र में अनेकों अवैध निर्माण हो गए हैं जिसके कारण रामगढ़ बंदा मृतप्राय हो चुका है, जो संपूर्ण जयपुर शहर को पेयजल आपूर्ति का मुख्य स्रोत हुआ करता था । नदियों एवं गोचर भूमियो, जहां तालाब या नाडिया वर्षा जल से तरबतर हुआ करती थी, उन स्थानों पर चौबीसों घंटे जल दोहन करने वाली फैक्ट्रियों को हटाया जाए और इनको प्रदेश के किसी आबादी से बाहर वाले क्षेत्रों में स्थानांतरित की जाएं । ताकि प्रदेशवासियों एवं किसानों को पेयजल एवं कृषि जल संकट का सामना नहीं करना पड़े । हमारे प्राकृतिक जल स्रोतों को पुनर्जीवित करके ही जल संकट की समस्या से निजात पाया जा सकता है । अन्यथा, स्थिति इतनी विकट होने वाली है कि जल वितरण को लेकर पूरे देश में इंसानी प्रजातियों के बीच भयंकर संघर्ष होगा और इस संघर्ष से उठने वाली लपटे शासन प्रशासन के घर परिवारो तक भी पहुंचेंगी । इसलिए समय रहते शासन प्रशासन को चाहिए कि अवैधानिक रूप से जल का दोहन करने वाली इन औद्योगिक इकाइयों, आदि को बंद कर दोषियों के खिलाफ कठोरतम कार्रवाई करें एवं जन जन के लिए जरूरी जन निधि का समान वितरण हो सके और वर्षा जल निधि के संचय हेतु दीर्घगामी योजना बनाकर, उसे समय रहते पूर्ण करने के प्रयास करें । ताकि वर्षा जल व्यर्थ ना जाए और धरती माता से वाष्प बनकर, ऊपर उठकर, आसमान के चक्कर लगाकर, पुनः धरती माता के गर्भ में समाहित हो सके । तब जाकर ही धरा से अदृश्यमान हो चुके, भोम जल स्तर के दर्शन हो पाएंगे । देश के हर नागरिक को यह संकल्प लेने की जरुरत है कि वर्षा जल को संग्रहित व संचित करने के लिए, आवश्यक सभी आवश्यक प्रयास जैसे वर्षा जल संचय टैंकों के निर्माण करवाना, प्राकृतिक जल स्रोतों की सफाई करना तथा इनके प्रवाह क्षेत्र में आ रही रुकावटें को दूर करना, एनीकट निर्माण तथा तालाबों की गहराई बढ़ाना, आदि कार्य मेरा पहला कर्तव्य है । इन प्राकृतिक जल स्रोतों के पुनर्जीवित होने से ही मेरा जीवन इस धरा पर निर्बाध रूप संभव होगा ।
लेखक : कैलाश सामोता "रानीपुरा" पर्यावरणविद शिक्षक, आमेट, राजसमंद, राजस्थान
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