जीवन अनमोल है , इसे आत्महत्या कर नष्ट नहीं करें !
सुबह की शुरुआत माता-पिता के चरण स्पर्श से करें !
संस्कार सृजन @ राम गोपाल सैनी
शाहपुरा / जयपुर (संस्कार सृजन) शाहपुरा में साहित्य सृजन कला संगम संस्थान द्वारा आयोजित लोक कवि मोहन मण्डेला स्मृति 25 वां अखिल भारतीय कवि सम्मेलन हजारों श्रोताओं की उपस्थिति में भोर तक चला। अखिल भारतीय तैराकी संघ के उपाध्यक्ष अनिल व्यास की अध्यक्षता में आयोजित समारोह में मुख्य अतिथि पूर्व विधानसभा अध्यक्ष एवं विधायक कैलाश मेघवाल थे। अखिल भारतीय बैरवा महासभा के उपाध्यक्ष लालाराम बैरवा तथा नगरपालिका पार्षद राजेश सौलंकी कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि थे। सूत्रधार कवि कैलाश मण्डेला ने विगत 25 वर्ष की कवि सम्मेलन की यात्रा के संघर्ष को प्रस्तुत करते हुए लोक कवि के नाम से शाहपुरा में प्रस्तावित टाउन हॉल जिसकी घोषणा 2016 में विधायक कैलाश मेघवाल ने की थी को रेखांकित करते हुए पुनः टाऊन हॉल की आवश्यकता को रेखांकित किया |
कवि सम्मेलन की शानदार शुरूआत भोपाल से आई कवयित्री सुमित्रा सरल की राग पर आधारित सरस्वती वंदना वरदायनी की जय सदा, हर भाव को देती रहे शब्द की हर सम्पदा से की। प्रथम कवि के रूप में राजस्थानी भाषा के हास्य कवि गजेन्द्र कविया ने एक से बढ़कर एक चुटिली बातों से श्रोताओं का भरपूर मनोरंजन किया। किशनगढ़ के हास्य कवि कमल माहेश्वरी ने अपनी चिरपरिचत कविता जब एक बार मेरी शादी हुई तथा खुजली कविताओं से श्रोताओं को खूब गुदगुदाया। गीतकार ईशान दुबे जयपुर ने हिन्दी के श्रेष्ठ गीत ‘चेहरे की चमक जो तूने चाँद को उधार दी, चांद ने उसी दमक से चांदनी संवार दी, सुनाया तो श्रोताओं के साथ-साथ कवियों ने भी उसे खूब सराहा |
भीलवाड़ा के हास्य कवि दीपक पारीक काव्यपाठ हेतु आए तो उन्होंने गजल, कविताओं एवं लोक हास्य में बिखरी बातों तथा प्रसिद्ध चरका उन्दरा, भैर्यों नामक पात्रों के माध्यम से वातावरण को हास्य से सराबोर कर दिया। व्यंग्यकार महेश ओझा ने भी सरकारी सिस्टम में होने वाले भ्रष्टाचार एवं कई हास्य व्यंग्य रचनाओं से श्रोताओं के बीच हास्य को बिखेरा। वाह भाई वाह फेम कवि दिनेश बंटी ने भी कई हास्य फूलझड़ियों के साथ-साथ बैण्ड बाजे वालों की पीड़ाओं पर अपनी प्रसिद्ध हास्य रचना ‘हालांकि ई दुनिया म सब एक दूसरां को बजारिया है बाजो, मगर हे भगवान अगला जनम में बैण्ड बाजा वालों मत बणाजो सुनाकर श्रोताओं को खूब गुदगुदाया।
श्रृंगार रस की कवयित्रि सुमित्रा सरल ने श्रृंगार के गीत कभी जब डूब जाती हूँ तो नैया देख आती हूँ, मैं मानस में लिखा पावन सवैया देख आती हूँ। मेरे मंदिर न जाने का सम्बन्ध सखियों से क्या बोलूं, मैं छत पर शाम को अपना कन्हैया देख आती हूँ सुनाकर श्रृंगार रस की छटा बिखेरी। लोक कवि मोहन मण्डेला सम्मान से सम्मानित कवि इकराम राजस्थानी ने इंजन की सिटी म म्हारों मन डोले तथा कौमी एकता एवं माँ पर बेहतरीन गजल एवं शेरों से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। उन्होंने कलम जिन्दा रहे’ के अतिरिक्त ‘तारां छाई रात’, ‘पल्लो लटके’, ‘गीतां री रमझोल’ की प्रस्तुति देकर सम्मेलन को उंचाईयां प्रदान की। गीतकार सत्येन्द्र मण्डेला ने अपना श्रृंगार का बेहतरीन गीत प्रस्तुत कर कार्यक्रम में रंग भर दिया।
गीतकार राजकुमार बादल काव्यपाठ हेतु आए तो हास्य की चुटिली बातों के साथ-साथ राजस्थानी के बेहतरीन गीतों ‘‘गठजोड़ा री बातां गुळबा म आवै जोर, एक फैरो ओर लाड़ी एक फैरो ओर, पति-पत्नी के सम्बन्धों में वर्तमान में बढ़ते तलाक के प्रति संदेश परक गीत सुनाकर कार्यक्रम को नई ऊंचाईयां प्रदान की | उसी के साथ श्रृंगार का गीत ‘मरवा मोगरा की सोरम रोम-रोम में रमी तथा व्यंग्य गीत खारो है लूण जईयां, नाम मिश्री लाल भैया जैसे गीतों से श्रोताओं को बांधे रखा। मंच संचालक गोविन्द रांठी शाहजहांपुर ने कार्यक्रम का बेजोड़ संचालन किया तथा साथ ही राठी ने भी हास्य व्यंग्य की कविताओं से श्रोताओं को खूब हंसाया।
प्रसिद्ध हास्य कवि बुद्धि प्रकाश दाधीच ने बेहतरीन गीतों एवं काव्यपाठ से कार्यक्रम को समापन तक पहुंचाया। कार्यक्रम के सूत्रधार एवं कवि डॉ. कैलाश मण्डेला ने अपने पिता लोक कवि मोहन मण्डेला के कई गीतों में से लोक रंजन के प्रसिद्ध गीत ढबजा हिन्दा देबा वाळा मांसूं मती करे रे छाळा आदि गीतों से कार्यक्रम को गरिमा प्रदान की। संस्था के अध्यक्ष जयदेव जोशी, उपाध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा, रामप्रसाद पारीक, बालकृष्ण बीरा, शिव प्रकाश जोशी, सुनील भट्ट, सत्यव्रत वैष्णव सहित संस्था के सदस्यों ने सभी का स्वागत किया। परम्परा अनुसार करतल ध्वनि से मोहन मण्डेला को श्रोताओं एवं कवियों ने श्रद्धांजलि अर्पित की।
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