कुपोषण के कारण नौनिहालों में मोटापा व दुर्बलता ज्यादा : सामोता

जीवन अनमोल है इसे आत्महत्या कर नष्ट नहीं करें !

सुबह की शुरुआत माता-पिता के चरण स्पर्श से करें !

संस्कार सृजन राम गोपाल सैनी

राष्ट्रीय पोषण सप्ताहका अंतिम दिन 7 सितंबर 

उत्पादक से उपभोक्ता तक कुपोषण के शिकार

सुपोषित आहार है, स्वस्थ जीवन की कुंजी

चौमूँ / जयपुर (संस्कार सृजन) स्वस्थ भारत एवं सशक्त भारत निर्माण की योजना उत्पादकता, आर्थिक विकास और राष्ट्र के विकास में सहायक है । भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय तथा खाद्य एवं पोषण बोर्ड द्वारा 1 सितंबर 1982 से आरंभ एक स्वस्थ भारत निर्माण की मुहिम को निवर्तमान प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी आरंभ की थी, जिसके तहत अच्छे पोषण के महत्व को समझाते हुए, प्रतिवर्ष सितंबर माह के प्रथम सप्ताह को "राष्ट्रीय पोषण सप्ताह" के रूप में मनाने का निर्णय लिया । ताकि भविष्य में आने वाली पीढ़ी को कुपोषण से बचाकर एवं स्वस्थ समाज निर्माण हेतु जागरूकता लाई जा सके । इस योजना को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर वर्तमान मोदी सरकार ने राजस्थान के झुंझुनू जिले में 8 मार्च 2018 को एक महत्वपूर्ण अभियान "राष्ट्रीय पोषण मिशन" के तहत "स्वस्थ भारत, सशक्त भारत" अभियान के रुप में आरंभ कर की और भारत को सन 2022 तक कुपोषण मुक्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया लेकिन योजनाओं तथा मिशन का दुर्भाग्य ही है कि देश की आजादी के 75 वर्ष बीत जाने के बावजूद भी कुपोषण मुक्त भारत का लक्ष्य हासिल नहीं हो पाना, चिंताजनक है | परिणामस्वरूप देश के अधिकांश बड़े राज्यों में उत्पादक स्तर से लेकर उपभोक्ता तक का बच्चे, महिलाएं एवं बुजुर्ग आज कुपोषण का शिकार है ।

लेखक :- कैलाश सामोता "रानीपुरा"

सुपोषित आहार स्वस्थ जीवन की कुंजी है :-

देश के भावी भविष्य से जुड़ी इस महत्वपूर्ण योजना की में मौजूद पूर्व की खामियों को दूर करते हुए सुदृढ़ निगरानी तंत्र, चरणबद्ध व समयबद्ध रूप से पूरी होने वाले इस मिशन को 30 नवंबर 2017 में राष्ट्रीय पोषण मिशन को स्वीकृति मिली ।  2018 में भारत को कुपोषण मुक्त करने के मकसद से राजस्थान के झुंझुनू से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस योजना को "स्वस्थ भारत, सशक्त भारत" अभियान के रूप में शुरू किया और लोगों के पोषण और जीवन स्तर को ऊपर उठाने के साथ साथ जन स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए, एक जन आंदोलन बनाने की जरूरत पर जोर दिया गया । देश में लागू विभिन्न योजनाओं के बीच समन्वय बिठाकर देश के राज्यो व जिलों को चरणबद्ध रूप से शामिल करते हुए, सन 2017, 18 में 315 जिलों, 2018-19 में 235 जिलों और 2019-20 में शेष जिलों को शामिल करते हुए, उनका परिक्षेपण, लक्ष्य निर्धारण एवं समन्वय का काम आरंभ किया गया । लेकिन, सुपोषण जो कि स्वस्थ जीवन कुंजी होती है, आज भी देश एक तिहाई आबादी के लिए दूभर है ।

नौनिहालों में कुपोषण से मोटापा व दुर्बलता ज्यादा :-

प्रकृति एवं प्राकृतिक जल स्रोतों  के संरक्षण के प्रति संघर्षरत पर्यावरणविद विज्ञान शिक्षक कैलाश सामोता रानीपुरा का मानना है कि वर्तमान समय में पैर पसार चुकी पाश्चात्य जीवन पद्धति की नकल से विशेषकर नौनिहालों तथा युवा वर्ग में फास्ट फूड व पैक्ड फूड के बढ़ते प्रचलन के कारण मोटापा व दुर्बलता के शिकार व्यक्तियों के आंकड़े बढ़ते जा रहे हैं, जो एक प्रकार का कुपोषण है । हालांकि, व्यक्ति की आर्थिक स्थिति कुपोषण के लिए जिम्मेदार नहीं है लेकिन खानपान में लापरवाही बरतने से भी कुपोषण हो रहा है । देश में कुपोषण के चलते हर 5 में से 1 बच्चे में मोटापा व दुर्बलता देखी जा रही है तथा उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता में काफी गिरावट भी देखी जा रही है । जिससे उनका शरीर विभिन्न रोगों के प्रति सुग्राही होकर बीमारियों को आमंत्रण दे रहा है । आजकल पोषण या भोजन लेने की विधि या पद्धति में परिवर्तन/ विकृति जैसे खड़े-खड़े भोजन करना, टीवी कंप्यूटर, लैपटॉप, मोबाइल, आदि चलाते हुए भोजन करना, मुंह को ऊपर करके पानी गिटकना, जैसी बुरी आदतें भी मोटापे जैसी कुपोषण व पाचन सम्बन्धित व्याधियों के लिए जिम्मेदार हैं ।

कुपोषण से मुक्ति के लिए प्रभावी एवं मजबूत तंत्र विकसित किए जाने की जरूरत :-

हालांकि देश में सन 1975 से महिला बाल विकास विभाग विशेषकर विशेषकर गर्भवती महिलाओं, 1 से 5 वर्ष तक की आयु के नौनिहालों सहित  किशोरियों एवं महिलाओं के जननिक स्वास्थ्य को लेकर प्रयास किए जा रहे है । देशभर में 125000 से भी अधिक आंगनबाड़ी केंद्र संचालित है, जहां कार्यकर्ता, सहायिका एवं सहयोगिनियों की टीम के माध्यम से बाल स्वास्थ्य एवं मातृत्व स्वास्थ्य की सभी जानकारियां व सहायता उपलब्ध कराई जाती है । वर्तमान समय में आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को डिजिटल उपकरणों से लैस किए जाने की ओर भी काम शुरू हुआ है, जिसके तहत आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को डिजिटल उपकरणों के कुशल रुप से संचालन के लिए प्रशिक्षण एवं स्मार्टफोन भू उपलब्ध कराए जा रहे हैं । ताकि इन डिजिटल उपकरणों के माध्यम से देश में महिला एवं बाल स्वास्थ्य संबंधी जानकारियां का प्रभावी एवं मजबूत तंत्र विकसित किया जा सके। हालांकि, अब आशा सहयोगनियो को स्वास्थ्य विभाग के अधीन ले लिया है, लेकिन महिला बाल विकास एवं स्वास्थ्य विभाग के बीच समन्वय स्थापित है ।

राजकीय विद्यालयों में मध्यान्ह भोजन कुपोषण मुक्ति की अभिनव पहल :-

देश के प्रधानमंत्री रह चुके डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में राष्ट्रीय खाद सुरक्षा अधिनियम पारित किया गया था जिन्होंने विशेषकर पिछड़े राज्यो में राजकीय विद्यालयों में मध्यान्ह भोजन की व्यवस्था कर, उन्हें कुपोषण से बचाने की अभिनव पहल की है जो वर्तमान समय में भी विभिन्न गैर सरकारी संगठनो एवं राज्य सरकारों की सहायता के माध्यम से जारी है । सरकारी स्कूलों में मिड डे मील की योजना से बच्चों में कुपोषण के आंकड़े जरूर कम हुए हैं, लेकिन शिक्षकों को इस काम में लगाकर, उनके शैक्षणिक स्तर में गिरावट देखने को मिल रहा है । इसलिए मध्यान भोजन के लिए अलग से पोषाहार प्रभारी लगाए जाना ज्यादा हितकारी व फायदेमंद होगा । सरकारी विद्यालयों में विभिन्न गैर सरकारी संगठनों द्वारा वितरित किए जा रहे भोजन, दूध, विटामिंस, फोलिक एसिड की गोलियां, मूंगफली की चक्कियां तथा अन्य वैक्सीनेशन अभियान की प्रभावी मॉनिटरिंग से ही राजकीय विद्यालयों में पल रहे देश के भावी भविष्य के स्वास्थ्य व पोषण स्तर में सुधार की प्रभावी निगरानी रखी जा सकती है ।

हर घर का रसोईघर जहरीले होने से बढ़ रहे हैं कुपोषण के आंकड़े :-

वर्तमान समय में इंसान की लालची लोभी प्रवृत्ति एवं अधिक उपज व आमदनी अर्जित करने के फेर में "हर घर के रसोईघर" को जहरीला बना दिया है, जिसमें खाद्य पदार्थों में मिलावटखोरी, अनाज, फल एवं सब्जियों में विषाक्त प्रतिबंधित कीटनाशकों का अवैधानिक व अत्यधिक प्रयोग, अत्यधिक जनसंख्या वृद्धि, ओधोगिकीकरण व अवैधानिक खनन के कारण प्रदूषित हो गए हो चुके पेयजल व प्राणवायु, मिलावटी डेयरी प्रोडक्ट्स, जैसे दूध, दही, पनीर, घी, आदि मिलावटी मसालों तथा खाद्य तेल ने हर व्यक्ति के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ जारी रखे हुए है । इस स्थिति के लिए स्वास्थ्य विभाग सहित शासन प्रशासन सहित शासन प्रशासन के जिम्मेदारों को जन स्वास्थ्य को प्राथमिकता देते हुए, रोक व लगाम लगाने के सार्थक प्रयास करने होंगे । अन्यथा स्वास्थ्य आरोग्य राजस्थान अथवा राष्ट्र जल्द ही रुग्ण राजस्थान या रुग्ण राष्ट्र का स्वरूप ले लेगा ।

जयपुर जिले में भी मातृत्व स्वास्थ्य के आंकड़े भी है चिंताजनक :-

किसी भी राज्य या राष्ट्र  के विकास के लिए वहां के शिशु एवं मातृत्व स्वास्थ्य में सुदृढ़ता, सशक्तता, स्वस्थ, स्वच्छ, समर्थ होना बेहद जरूरी होता है । लेकिन दुर्भाग्य ही है कि राजस्थान प्रदेश का जयपुर जिला जहां पर सैकड़ों एनजीओ कार्यरत है, में शिशु व मातृत्व स्वास्थ्य के धरातली आंकड़े चौकाने वाले  हैं । विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों व कच्ची बस्तियों के नौनिहालों, मजदूरों एवं मातृत्व स्वास्थ्य की स्थिति बेहद ही दयनीय है, जहां आज भी प्रशव पूर्व तथा प्रशव के बाद के काल में कुपोषण के शिकार वाले आंकड़े डरावने है । उनके लिए संतुलित भोजन और आहार की उपलब्धता आज भी दूर की कोड़ी बनी हुई है तथा नौनिहालों से लेकर नौजवानों एवं बुजुर्गों महिला पुरुष दोनों में तंबाकू, गुटका, अमल, शराब, चिलम जैसे नशे की लत पड़ी हुई है, जिसका सीधा सीधा प्रभाव उनके स्वास्थ्य पर पड़ रहा है । वहीं दूसरी ओर सुविधा संपन्न लोग जो खाने-पीने के प्रति अपने आप को सजग समझते हैं, वे अधिक शुगर व अधिक फैट वाली वाले भोजन का सेवन कर मोटापे व कुपोषण का शिकार हो रहे हैं ।इसलिए केवल गरीबी ही कुपोषण के लिए जिम्मेदार नहीं है, जागरूकता का अभाव भी कुपोषण का कारण बन सकता है । इसके लिए हमें "जन आंदोलन" के रूप में स्वास्थ्य के प्रति सजगता लाने लाने हेतु जन जागृति लाने की जरूरत है, ताकि भविष्य में आने वाली पीढ़ियों को कुपोषण से बचाया जा सके । 

लेखक :- कैलाश सामोता "रानीपुरा" (पर्यावरणविद विज्ञान शिक्षक) 

गोविंदगढ़ चौमूं  जयपुर (राज.)

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