डॉ. जितेंद्र कुमार सोनी के चरण पादुका अभियान से 3 लाख जरूरतमंदों को मिला लाभ

जीवन अनमोल है इसे आत्महत्या कर नष्ट नहीं करें !

सुबह की शुरुआत माता-पिता के चरण स्पर्श से करें !

संस्कार सृजन राम गोपाल सैनी

जयपुर (संस्कार सृजन) डॉ. जितेंद्र कुमार सोनी ने वर्ष 2016 में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, डुडसी जिला, जालोर, राजस्थान से 'चरण पादुका अभियान' शुरू किया था, जिसके तहत स्कूलों में नंगे पांव आने वाले आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के छात्रों को भामाशाहों के सहयोग से जूते उपलब्ध कराए गए। इस अभियान में सभी जनप्रतिनिधियों, स्थानीय भामाशाहों, प्रवासियों और सामाजिक संगठनों ने भी अपना अहम सहयोग देकर अभियान को आगे बढ़ाया और इसके तहत जरूरतमंद बच्चों को चरण पादुका बांटी जा रही है।

सबसे पहले इस अभियान के तहत वर्ष 2016 में राजस्थान के केवल जालोर जिले में लगभग 25 हजार जरूरतमंद बच्चों को जूते उपलब्ध कराए गए | जिसकी प्रशंसा राज्य के तत्कालीन शिक्षा मंत्री प्रोफेसर वासुदेव देवनानी ने की। वर्ष 2017 में राज्य सरकार के शिक्षा विभाग ने सभी जिला कलेक्टरों को पत्र लिखकर डॉ. जितेंद्र कुमार सोनी की पहल पर संचालित इस चरण पादुका अभियान को राज्यभर में लागू करने के निर्देश जारी किये। वर्ष 2018 में चरण पादुका अभियान के माध्यम से केवल झालावाड़ जिले में 36844 बच्चों को जूते प्रदान किए गए। वर्ष 2020-21 में नागौर (राजस्थान) में लगभग 30,000 चरण पादुकाओं का वितरण किया गया।

वर्ष 2016 से अब तक राजस्थान के लगभग सभी जिलों में हजारों सरकारी स्कूलों में चरण पादुका वितरण कार्यक्रम आयोजित करवाकर कुल लगभग 3,00,000 जरूरतमंद छात्रों को चरण पादुकाएं भेंट की गईं। राजस्थान के अतिरिक्त उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब, बिहार आदि राज्यों के स्कूलों में भी जरूरतमंद छात्रों को चरण पादुका प्रदान की गई है। कोरोना की प्रथम लहर के दौरान नंगे पांव यात्रा करने वाले प्रवासी मजदूरों को भी डॉ. सोनी की पहल पर जूते, चप्पल मुहैया कराए गए ताकि वे आराम से अपने गांव घर जा सकें।

चरण पादुका अभियान से निम्नलिखित सफलताएँ प्राप्त हुई हैं :-

1. इस अभियान से देश भर में (विशेषकर राजस्थान राज्य में) गरीब पृष्ठभूमि के लाखों वंचित बच्चों की पीड़ाओं का निवारण हुआ है, उन्हें सर्दी, गर्मी, बारिश आदि में स्कूल आने में कोई समस्या नहीं होती है क्योंकि अब उनके पास अपने खुद के जूते (चरण पादुका) हैं।

2. इस अभियान ने छात्रों की असमानताओं को समाप्त कर दिया है क्योंकि अगर कुछ बच्चे जूते-चप्पल पहनकर आते हैं और कुछ को नंगे पांव स्कूल आने के लिए मजबूर होना पड़ता है तो नंगे पांव वाले बच्चे हीन भावना का शिकार हो जाते हैं।

3. बड़ी बात यह है कि इस अभियान ने स्कूलों में उपस्थिति भी बढ़ा दी है क्योंकि अगर बच्चों को स्कूल आने में परेशानी होती है तो वे स्कूल आना बंद कर देते हैं लेकिन अगर बच्चों के अपने जूते, चप्पल होते हैं तो उन्हें स्कूल आने में परेशानी नहीं होती है और वे नियमित रूप से स्कूल आएंगे। प्राप्त फीडबैक के अनुसार इस अभियान के तहत चरण पादुकाएँ वितरित सरकारी स्कूलों में ड्रॉप आउट की समस्या 10 से 20 प्रतिशत तक कम हुई है।


हम सभी किसी ना किसी रूप में जरूरतमंदों की सेवा कर सकते हैं | पड़ोसी भूखा नहीं सोए इसका ध्यान रखें |

" संस्कार सृजन " कोरोना योद्धाओं को दिल से धन्यवाद देता है |

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