बुद्ध ने मानव मात्र को एक नई दिशा दी थी : प्रो. त्रिपाठी

जीवन अनमोल है इसे आत्महत्या कर नष्ट नहीं करें !

संस्कार सृजन राम गोपाल सैनी

लाडनूं (संस्कार सृजन) ‘संयम आचार का मूल है। सुख प्राप्ति के लिए एकमात्र संयम का ही मार्ग है। विवेकपूर्वक गति करने को संयम कहते हैं। सबको संयम के मार्ग पर चलना चाहिए। न अधिक लगाव होना चाहिए और न अधिक विरोध किया जावे।’ ये विचार वयोवृद्ध विद्वान प्रो. दामोदर शास्त्री ने यहां जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय में बुद्ध पूूर्णिमा के उपलक्ष में आयोजित कार्यक्रम में कहे। 


उन्होंने कहा कि महात्मा बुद्ध ने जो दर्शन व आचार दिया, उसमें जो करूणा, अहिंसा, अनुकम्पा, मैत्री तत्व हैं, वे लगभग सभी धर्मों में निहित हैं। दर्शनों के आधार तीन चीजों को माना जाता है, जिनमें देव या आराध्य, शास्त्र व गुरू शामिल हैं और तीनों महत्वपूर्ण हैं। आराध्य के रूप में किसे पूजा जावे, किसकी शरण में जाएं या किसके सामने झुको को सभी धर्म व दर्शन अलग-अलग स्वीकार करते हैं। इसी प्रकार शास्त्रों में उनके लिए आचार वर्णित होते हैं। उन्हें क्या करना है, इसका निश्चय होता है। तीसरा गुरू होता है, जिसके माध्यम से देव या आराध्य और शास्त्रों के ज्ञान के बारे में जाना जा सकता है। ये तीनों सभी दर्शनों में भिन्न-भिन्न होती हैं। लेकिन, सबको लक्ष्य एक ही होता है। सबको सुख चाहिए। सारी भिन्नताओं के बाद भी सुख सभी को चाहिए। सुख प्राप्ति के लिए सबके रास्ते अलग-अलग हैं, पर लक्ष्य एक ही है। महात्मा बुद्ध ने निर्वाण का मार्ग बताया, जो पूर्णता की स्थिति है। 

कार्यक्रम में दूरस्थ शिक्षा निदेशक प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने बताया कि महात्मा बुद्ध के सभी महत्वपूर्ण कार्य बुद्ध पूिर्णमा के दिन ही किए गए थे। उनके जन्म से लेकर बोधिसत्व प्राप्ति आदि सभी इसी दिन हुए। बुद्ध ने मानव मात्र को एक नई दिशा दी थी। वे अतिभोग और अतियोग दोनों को नहीं करने और मध्यम मार्ग अपनाने की प्रेरणा देते थे। 40 वर्षों तक उन्होंने भ्रमण किया और लोगों को उपदेश दिए। इस बीच अपने ज्ञान व उपदेश से अनेक लोगों के हृदय परिवर्तन भी किए। 

प्रो. त्रिपाठी ने बताया कि बुद्ध ने बताया था कि सारा संसार दुःखों से भरा हुआ है। उन्होंने 4 आर्य सत्य बताए, जिनमें दुःख, दुःख की प्रवृति, दुःख की उत्पति और दुःख निवारण का मार्ग शामिल हैं। शिक्षा विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. बीएल जैन ने कहा कि बुद्ध ने दुःख निवारण के लिए 8 अंग बताए थे। इन आठ अंगों में सम्यक् दृष्टि, सम्यक् संकल्प, सम्यक् वचन, सम्यक् कर्म, सम्यक् आजीविका, सम्यक् व्यायाम, सम्यक् स्मृति और सम्यक् समाधि शामिल हैं। इस अष्टाह्निक आर्यमार्ग को सिद्ध कर मुक्त हुआ जा सकता है। 

अंग्रेजी विभाग की विभागाध्यक्ष प्रो. रेखा तिवाड़ी ने कहा कि पूरी दुनिया बुद्ध के विचारों से प्रभावित हैं। उनके बताए जीवन दर्शन का अनुसरण करना चाहिए। योग एवं जीवन विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष डा. प्रद्युम्नसिंह शेखावत ने बुद्ध के योग व ध्यान की प्रक्रिया का वर्णन किया और जीवन उद्धार के उनके मार्ग को बताया। अंत में डा. अमिता जैन ने आभार ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन डा. गिरधारीलाल शर्मा ने किया। 

कार्यक्रम में डा. लिपि जैन, डा. आभासिंह, श्वेता खटेड़, प्रमोद ओला, डा. प्रगति भटनागर, डा. गिरीराज भोजक, डा. भाबाग्रही प्रधान, डा. विनोद सैनी, डा. विनोद सियाग, डा. विष्णु कुमार, डा. मनीष भटनागर, डा. विकास शर्मा, डा. सरोज राय आदि एवं छात्राएं उपस्थित रही। 

रिपोर्ट :- जगदीश यायावर 


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