इस कारण छोड़ रहे हैं लोग अपने पुस्तैनी घरों को : वृक्षमित्र डॉ सोनी

जीवन अनमोल है इसे आत्महत्या कर नष्ट नहीं करें !

मास्क लगाकर रहें ! सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखें !

संस्कार सृजन राम गोपाल सैनी

देहरादून (संस्कार सृजन) उत्तराखंड का अधिकतर भू भाग पर्वतीय है जहां पर गांव बसे हैं | इन गांव में न जाने कितनी पीढ़ियां रह चुके हैं जो खुशियों से अपना जीवन यापन करते थे | ना खाने की चिंता ना ही रोजगार की, जो अपने खेतों से मिलता था उसी में अपने परिवार के साथ खुश रहते थे | जबकि उस समय परिवार भी बड़े होते थे |एक आदमी के पांच छः बच्चे और सात आठ लड़कियां होती थी| ना उन्हें पालने ,ना पढ़ाने, ना नौकरी ,ना रोजगार, ना ही उनकी शादी की चिंता होती थी | इतनी लड़कियां होने पर भी उस समय कोई कन्या भ्रूण हत्या नही होती थी|  खुशी- खुशी उनका विवाह किया जाता था और अमन चैन से अपना जीवन बिताते थे| लेकिन वक्त के साथ सबकुछ बदल गया | जहां कभी गांव की चहल - पहल व रौनक होती थी | आज वो गांव वीरान से हो गए हैं, ऐसा लगता है इन पहाड़ के गांव पर किसी की नजर लग गई हो|  गांव के गांव खाली होते जा रहे हैं ,ऐसे में उन्हें रोकना जरूरी हैं | कही ऐसा ना हो कि हमारे पूर्वजों की धरोहर गांव जंगलों में तब्दील न हो जाए।

गांव से पलायन कर रहे लोगों के बारे में उत्तराखंड में वृक्षमित्र के नाम से मशहूर पर्यावरणविद् डॉ त्रिलोक चंद्र सोनी का कहना है कि अच्छी शिक्षा पाने के बाद लोग मेहनत नही करना चाहते हैं ,जिस कारण युवा पलायन कर रहें हैं | अगर युवा अपने रोजगार शुरु भी करते हैं तो उन्हें उचित दाम व बाजार नही मिल पाता है, जिस कारण पलायन हो रहा है। 

डॉ सोनी कहते हैं कि पहाड़ जैसी विषम परिस्थितियां गांव के लोगो की हैं | ये जरूर है कि हमारे यहां रोजगार की अपार संभावनाएं हैं ,लेकिन एक सुनियोजित तरीके से कार्ययोजना ना बनने के कारण यहां के उत्पादों को ना उचित मूल्य मिलता हैं, ना ही बाजार मिल पाता है | ऐसे में पहाड़ के युवाओं के पास पलायन के सिवा कुछ नही रहता ,जिस कारण उन्हें बाहरी राज्यों में रोजगार के लिए जाना पड़ता हैं। 


डॉ सोनी ने यह भी कहा कि हमारे गांव में कई फल ऐसे हैं जो यहां के जंगलों में उगते हैं जैसे काफल, बुराँस, हिंसर, किनगोड़, घिंघारू, बेडू, तिमला (जंगली अंजीर), भंबारु, घिनुवा जिनका डिब्बा बंद कर व्यापार किया जा सकता है | खाद्य पदार्थों में जंगोरा, कौड़ी, मडुवा, चीड़ा, पल्टी, फाबर, चौलाई की खेती से रोजगार किया जा सकता है। सेब, खुमानी, बादाम, अखरोट, आड़ू, पुलम, चुली, माल्टा, नीबू, संतरा के लिए उपयुक्त जलवायु होने के कारण इनका उत्पादन किया जा सकता हैं तथा यहां के पर्यटन स्थलों, तीर्थस्थलों का विकास करने से रोजगार मिलेगा और यहां पर अच्छे शिक्षा के केन्द्र, चिकित्सा सुविधा, सड़कें, परिवहन, पानी, बिजली, संचार के विकास से पलायन को रोका जा सकता है। 

इस दौरान केदार राम, दरवान राम, मदन राम, हरीश सोनी, दिनेश चंद्र, चमन लाल, संजय कुमार, गिरीश चंद्र कोठियाल, राकेश सिंह, सचिन कुमार आदि लोग मौजूद रहे |


हम सभी किसी ना किसी रूप में जरूरतमंदों की सेवा कर सकते हैं | पड़ोसी भूखा नहीं सोए इसका ध्यान रखें |

" संस्कार सृजन " कोरोना योद्धाओं को दिल से धन्यवाद देता है |

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