छोटे पत्रकारों को भी मिले अधिमान्यता

जीवन अनमोल है इसे आत्महत्या कर नष्ट नहीं करें !

हम सब मिलकर ऑक्सीजन,बेड,इंजेक्शन और वेंटीलेटर दिलाएं !

मास्क लगाकर रहें ! सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखें !

संस्कार न्यूज़ राम गोपाल सैनी / ओपी त्रिपाठी 

रतलाम (संस्कार न्यूज़) प्रेस दिवस के दिन भले देर से मध्यप्रदेश के मुखिया शिवराजसिंह चौहान ने कोराना महामारी के दौरान पत्रकारों को फ्रंट लाइन का वकर्स घोषित किया है। यह एक स्वागत योग्य एवं सराहनीय कदम है। इस घोषणा में अधिमान्य पत्रकार को इस दायरे में लिया गया है।

बड़ा सवाल ये है कि इस सूबे में हजारों की संख्या में आंचलिक क्षेत्रों में जैसे कस्बा, तहसील आदि क्षेत्रों में बड़ी संख्या में पत्रकार कार्य करते है जो कि अधिमान्य नहीं है। इन क्षेत्रों में 90 प्रतिशत आंचलिक पत्रकार अधिमान्यता से कौसों दूर है। इन पत्रकारों को सरकार की इस घोषणा में शुमार नहीं किया गया है। अधिमान्यता प्राप्त करने के लिए सरकार के कठोर मापदंड है। यहां तक की कई बार जिला स्तर मुख्यालय के पत्रकार भी इन मापदंडों को पूरा नहीं कर पाते है और वे बरसों की पत्रकारिता के मिशन से जुडऩे के बाद भी अधिमान्यता से वंचित है। 


आज की स्थिति में तहसील एवं  कस्बा के पत्रकार भी छोटी-छोटी जगह से समाचार संकलन कर रहे हैं। कोरोना काल में जोखिम उठाकर अपने-अपने कस्बों तथा तहसील मुख्यालयों पर कार्य कर रहे हैं। लेकिन इस घोषणा में अधिमान्य की पात्रता के मापदंड के अभाव में इस सुविधा से ऐसे पत्रकारों को दरकिनार किया गया है। इस सुविधा में इन लोगों को भी शामिल किया जाना चाहिए।   

कितने अधिमान्य पत्रकार

अधिमान्य पत्रकारों की तीन श्रेणियां है। प्रथम तहसील स्तरीय, दूसरी जिला स्तरीय एवं तीसरी राज्य स्तरीय अधिमान्यता का पैमाना है। मप्र शासन जनसंपर्क विभाग की राज्य स्तरीय अधिमान्यता पत्रकार वर्ष 2019-20 की सूची का अध्ययन किया जाए तो मप्र में 1157 राज्य स्तरीय अधिमान्य पत्रकार है। हालांकि नए वर्ष की सूची अपडेट नहीं हुई्र है।  इस राज्य स्तरीय श्रेणी में भोपाल, इंदौर , च्वालियर जैसे महानगरों के ही 80 प्रतिशत पत्रकारों का दबदबा है। शेष तकरीबन 15 से 19 प्रतिशत जिले के पत्रकारों को इस सूची में स्थान है। तहसील स्तर  मुख्यालय के पत्रकारों को तो राज्य स्तरीय अधिमान्यता में समूचे  मप्र में में 8-10 पत्रकारों  को मौका मिला है। इस सूची में आपके इस शुभचिंतक जैसे मात्र एक प्रतिशत पत्रकारों का नाम शुमार है। दूसरे  क्रम की जिला स्तरीय अधिमान्यता में प्रदेश की सूची में 2203 नाम दर्ज है। जबकि तहसील स्तरीय अधिमान्यता में पूरे प्रदेश में महज 915 पत्रकार  है। कुल मप्र में तीनों केटेगिरी में वर्तमान सूची के अनुसार 4275 नाम शामिल है। जिसमें प्रिंट,इलेक्ट्रानिक एवं स्वतंत्र पत्रकार शामिल है। इस सूची में समाचार पत्रों के मालिक बतौर संपादक तथा यहां तक अखबार के प्रबंधन भी है। जनसंपर्क विभाग के कई सेेवानिवृत अधिकारियों के नाम भी शुमार है।  जिनको सरकार यह सुविधा देने जा रही है |

आंचलिक पत्रकारिता में हजारों पत्रकार

अब यह सवाल यह उठता है कि प्रदेश के हर कस्बे, गांव एवं तहसील मुख्यालय तक मीडिया का जाल फैला हुआ है। तहसील स्तर मुख्यालय पर औसतन 50 पत्रकार कार्यरत है। जोकि सरकार के इस कोरोना मिशन में वे भी अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इन पत्रकारों पर दोहरी जिम्मेदारी है। जनसरोकार ,सरकारी समाचार, जननेताओं के समाचार तो देना ही है साथ ही अखबार मालिक के अखबार भी स्वयं की साख पर वितरीत करना है। विज्ञापन भी मालिक को देना है। नेता विज्ञापन का पैसा हजम कर जाए तो जेब से भरना है। समय पर ग्राहक से पैसा नहीं आए तो एक निश्चित समय पर प्रबंधन के समक्ष स्वयं के जेब से जमा कराना है। इसी प्रकार से चेनल से जुडेे पत्रकार भी अपनी सेवाए दे रहे हैं।

यह बात अलग है कि ग्रामीण अंचल में पत्रकारिता का किरदार पाना बहुत सरल है। लेकिन तहसील स्तर पर भी 20 बरस से अधिक मित्र लोग पत्रकारिता कर रहे है जिनको अधिमान्यता नहीं मिल पाई है। क्या वे पत्रकार नहीं है। इन लोगों को सरकार की प्रत्येक घोषणा से बाहर कर दिया जाता है। यह भेदभाव उचित नहीं है। क्या समाचार मालिक उन्हें सिर्फ एजेंट मानते हैॅ और सरकार पत्रकार मानने को तैयार नहीं है। कई पत्रकार आज भी भले अधिमान्यता के दायरे में नहीं आ पाए लेकिन क् वालिटी की पत्रकारिता कर रहे हैं। जनमानस में उनकी पहचान एक आदर्श पत्रकार के रूप में हैं। इन लोगों को भी सरकार ने अपनी घोषणा में शामिल नहीं किया है।

क्या वंचित होते अधिमान्यता से

अधिमान्यता की पात्रता के लिए शासन के कठोर मापदंड है। अधिमान्यता की तीन श्रेणियां है।  राज्य स्तरीय, जिला स्तरीय एवं तहसील स्तरीय। तीनों के अलग- अलग मापदंड है। अधिमान्यता प्रिंट, इलेक्ट्रानिक एवं स्वतंत्र पत्रकार के रूप में प्रदान की जाती है। तहसील स्तरीय अधिमान्यता के लिए प्रथम तो पांच वर्ष का अनुभव व हायर सेकंडरी की शिक्षा अनिवार्य है। अनुभव के लिए समाचार पत्र के संपादक का प्रमाण पत्र प्रस्तुत करना होगा। यह प्रमाणपत्र आम तौर पर मालिक देते नहीं है। फिर समाचार पत्र की प्रसार संख्या का पेैमाना है। संबधित क्षेत्र में 500 प्रतियां के वितरण आवश्यक है। ऐसा भी नहीं हैकि हर तहसील स्तर पर कार्यरत पत्रकार को अधिमान्यता मिल जाएगी। उस समाचार पत्र की प्रसार संख्या का प्रमाण भी प्रस्तुत करना होगा। इस आधार पर प्रत्येक समाचार पत्र का कोटा होता है। कोटा बहुत कम होता है। ऐसी स्थिति में समाचार कई बार मझले समाचार पत्रों के मलिक  अपने परिजनों को इस कोटे में अधिमान्यता दिला देते है। ऐसी स्थिति में आंचलिक क्षेत्र का पत्रकार इन मापदंडों के कारण बाहर हो जाता है। लेकिन वह है तो पत्रकार। इसी प्रकार से यदि बड़े समाचार पत्रों में वेतनभोगी पत्रकार की अनुशंसा समाचार प्रबंधन अमूमन नहीं करते हैं। वे इसलिए नहीं करतें है वे प्रमाणित नहीं करना चाहते हैकि यह हमारी संस्थान का कर्मचारी है। प्रमाणित होने पर मजीठिया वेजबोर्ड का  उच्च वेतन देना पड़ सकता है। इस कारण बड़े समाचार पत्रों के क ई पत्रकार इस दायरे में नहीं आ पाते है। समाचार प्रबंधन से प्रमाण के लिए दवाब के साथ मांग नहीं कर सकते हैं। हालांकि तहसील स्तर पर भी बड़े समाचार के गिने- चुने पत्रकारों को अधिमान्यता मिली हुई है।

अमूमन तहसील मुख्यालय पर एक समाचार पत्र पर एक से अधिक अधिमान्यता जनसंपर्क विभाग नहीं देता है।  राज्य स्तरीय अधिमान्यता में शिक्षा में ग्रेज्युट तथा कम से कम 15 वर्ष की पत्रकारिता का अनुभव मांगा जाता है। स्वतंत्र पत्रकार को भी अधिमान्यता संभव है। इसके लिए पत्रकार के प्रत्येक माह में 2 आर्टिकल कुल 24 आलेख डिफरेंंटिव समाचारों में प्रकाशित होना चाहिए। इसी प्रकार से इलेक्ट्रानिक मीडिया में भी स्टोरियों का मापदंड है। प्रबंधन के अनुभव प्रमाणपत्र का भी पैमाना है।

इसलिए ऐसे भी कई पत्रकार अधिमान्यता से वंचित होते हैं।  ऐसी स्थिति में सरकार को चाहिए कि कुछ मापदंडों के आधार पर इस घोषणा में अधिमान्य पत्रकार के अलावा अन्य पत्रकारों को भी शामिल किया जाए। है। आशा है पत्रकार संघ के संगठन इस मांग को पूरजोर तरीके से उठाएंगे की अधिमान्य के अलावा भी पत्रकारों को इस घोषणा में शामिल किया जाए।

ये मिलती है सुविधा

प्रथम बात यह रहती है कि अधिमान्य को पत्रकार को सरकार से मान्यता रहती है। रेलवे में 50 प्रतिशत यात्रा में रियायत मिलती है। टोल टैक्स फ्री तथा सर्किट हाउस आदि में सुविधा संभव है।  इसी प्रकार से 10 वर्ष की अधिमान्यता तथा 60 वर्ष की उम्र के बाद मप्र में 10 हजार पेंशन की सुविधा उपलब्ध है। राज्य स्तरीय अधिमान्यता को लेपटाप उपलब्ध कराया जाता है। सरकार ने कुछ आयोग में जैसे सूचना आयोग आदि में पत्रकारों को सेवानिवृत आईएस आईपीएस के समकक्ष कमिश्रर आदि का पद मिलना संभव है।


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