बद्रीनाथ धाम के कपाट छह महीने के लिए बंद

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संस्कार सृजन राम गोपाल सैनी 

जयपुर (संस्कार सृजन) उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित प्रसिद्ध बद्रीनाथ धाम के कपाट मंगलवार दोपहर 2 बजकर 56 मिनट पर शीतकालीन बंदी के लिए विधि-विधान के साथ बंद कर दिए गए। 

कपाट बंद होने के साथ ही इस साल की चारधाम यात्रा का औपचारिक समापन भी हो गया। मंदिर परिसर को इस मौके पर विशेष रूप से सजाया गया और अंतिम दर्शन के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे। 

परंपरा के अनुसार सर्दियों के छह महीनों तक बद्रीनाथ धाम में नियमित पूजा संभव नहीं होती, इसलिए भगवान बद्रीविशाल की गद्दी अब जोशीमठ स्थित नरसिंह मंदिर में स्थानांतरित कर दी गई है। अगले छह महीने भक्तों के दर्शन और पूजा-अर्चना वहीं होगी। 

शीतकाल में भारी बर्फबारी और प्रतिकूल मौसम को देखते हुए यह व्यवस्था वर्षों से चली आ रही है। मंदिर को पुनः खोलने की तिथि हर साल अक्षय तृतीया के आसपास निर्धारित की जाती है, इसलिए कपाट अब अप्रैल-मई 2026 के बीच शुभ मुहूर्त में फिर से खोले जाएंगे। 

कपाट बंद होने से पहले पुजारियों ने परंपरागत पूजा, आह्वान और शीतकालीन कीर्तन का आयोजन किया, जिसके बाद धाम के द्वार अगले मौसम तक के लिए सुरक्षित रूप से सील कर दिए गए।

भारत के चार धामों में शामिल बद्रीनाथ धाम उत्तराखंड के चमोली जिले में अलकनंदा नदी के किनारे स्थित है। भगवान विष्णु के बदरीनाथ स्वरूप को समर्पित यह मंदिर बदरीनारायण मंदिर नाम से भी प्रसिद्ध है। दो पहाड़ों- नर और नारायण पर्वत के बीच बसे इस पवित्र धाम के बारे में मान्यता है कि यहां भगवान विष्णु के अंश नर और नारायण ने कठोर तपस्या की थी। आगे चलकर नर का जन्म अर्जुन और नारायण का जन्म श्रीकृष्ण के रूप में हुआ।

इस धाम से जुड़ी कई रोचक मान्यताएं हैं। कहा जाता है-“जो जाए बदरी, वो न आए ओदरी”—यानी जो व्यक्ति बद्रीनाथ धाम के दर्शन करता है, उसे दोबारा जन्म नहीं लेना पड़ता। बद्रीनाथ को शास्त्रों में ‘दूसरा बैकुंठ’ भी कहा गया है। पहला वैकुण्ठ क्षीर सागर माना जाता है जहां भगवान विष्णु का निवास है और दूसरा बदरीनाथ धाम बताया गया है।

एक पुरानी कथा के अनुसार, यह स्थान कभी भगवान शिव का निवास था, लेकिन भगवान विष्णु ने तपस्या के लिए इसे शिव से मांगा और शिव ने प्रसन्न होकर यह स्थान उन्हें दे दिया।

कपाट बंद होने से पहले मंदिर में विशेष पूजा, दीपदान और वैदिक मंत्रों के साथ अनुष्ठान होते हैं। मान्यता है कि कपाट बंद रहने के छह महीनों में देवी-देवता स्वयं भीतर पूजा करते हैं और जो दीपक कपाट बंद होने से पहले जलाया जाता है, वह दिव्य शक्ति से जलता रहता है। कपाट खुलने के समय इसी दीपक का दर्शन विशेष शुभ माना जाता है।

बदरीनाथ धाम की पौराणिक महिमा और प्राकृतिक आभा इसे देश ही नहीं, दुनिया भर के श्रद्धालुओं के लिए आस्था का प्रमुख केंद्र बनाती है। हर वर्ष लाखों यात्री यहां दर्शन के लिए पहुंचते हैं और धाम से जुड़ी मान्यताओं को अपनी आध्यात्मिक यात्रा का हिस्सा बनाते हैं।

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