दस दिवसीय संस्कृत संभाषण कार्यशाला का हुआ शुभारंभ

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संस्कार सृजन राम गोपाल सैनी 

जयपुर (संस्कार सृजन) सेठ आरएल सहरिया राजकीय पीजी महाविद्यालय कालाडेरा महाविद्यालय के संस्कृत विभाग एवं भारतीय ज्ञान परम्परा केन्द्र के सयुक्त तत्वावधान में दस दिवसीय संस्कृत संभाषण एवं भारतीय ज्ञान परम्परा कार्यशाला का भव्य शुभांरभ किया गया। 

उद्घाटन सत्र का आगाज माँ सरस्वती के पूजन-अर्चन व कार्यशाला प्रशिक्षकों के अभिनंदन व माल्यार्पण से हुआ। कार्यक्रम के संयोजक संस्कृत विभाग के डॉ. विजय कुमार चतुर्वेदी ने कार्यशाला के उ‌द्देश्य, कार्ययोजना एवं पृष्ठभूमि को सदन के पटल पर रखते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति और संस्कारों से परिचय व संरक्षण के लिहाज से उक्त कार्यशाला दस दिवस में व्यवहारिक अभ्यासों द्वारा संस्कृत बोलने में निपूण करेगी। 

भारतीय ज्ञान परम्परा केन्द्र के संयोजक डॉ. शक्ति सिंह शेखावत ने इस कार्यशाला को भारतीय ज्ञान परम्परा से सीधा जुड़ाव का महत्त्वपूर्ण प्रकल्प बताते हुए, सदन में मौजूद सभी संकाय के अधिष्ठाताओं से आ‌ह्वान किया की अपने अपने विषय में भारतीय ज्ञान के पक्षों को रेखांकित कर, इस प्रकार की अन्य कार्यशालाएं भारतीय ज्ञान परम्परा केन्द्र के आयोजन नेतृत्व के साथ आयोजित कर सहगामी बने। 

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए महाविद्याय के प्राचार्य प्रो. जय भारत सिंह ने इस अकादमिक पहल की प्रशंसा करते हुए कहा कि संस्कृत भाषा की दक्षता एक प्रकार से सामाजिक व राष्ट्रीय एकता का प्रबल माध्यम है। 

कार्यशाला के मुख्य संदर्भ वार्ताकार व प्रशिक्षक नरेन्द्र सिंह ने सहज, सरल और रौचकता के साथ संस्कृत बोलने के तरीकों को साझा करते हुए कहा कि संस्कृत हमारी विरासत है, और विरासत का संरक्षण मानव का प्रत्यक्ष व पहला धर्म है। संस्कृत भारती के जयपुर प्रांत संगठन मंत्री विमल कुमार ने प्रशिक्षणार्थियों को एक प्रेरक के रूप में बताया कि संस्कृत सम्पूर्ण भारत की गौरवमयी व साझा सांस्कृतिक भाषा है। इसे बोलना एकता, समरसता और भारतीय पहचान को मजबूत करना ही है। 

उल्लेखनीय है कि इस कार्यशाला में 95 विद्यार्थियों व संकाय सदस्यों ने अपना पंजीकरण करवाकर, संस्कृत भाषा के प्रति अपनी उच्च भावों को दर्शाया है। कार्यशाला के दूसरे तकनीकी सत्र में डॉ. ममता गंगवाल की अध्यक्षता में प्रशिक्षक नरेन्द्र सिंह ने संस्कृत भाषा में परिचय कैसे दिया जाए, वस्तुओं की पहचान कैसे की जाए और संबोधन कैसे हो आदि पक्षों को संस्कृत बोलचाल में उकेरते हुए, प्रशिक्षणार्थियों को इस दिशा में विभिन्न अभ्यासों के माध्यम से दक्ष किया। 

धन्यवाद ज्ञापन का दायित्व डॉ. जितेन्द्र लोढ़ा ने निर्वहन किया। संस्कृत भाषा के माध्यम से कार्यक्रम का सफल संचालन महाविद्यालय के संस्कृत विषय के विद्यार्थी दिनेश कुमार शर्मा ने किया।

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